जयपुर से डॉ. विवेक रॉय ने लिखा- 'तिरंगे पर गरमाई राजनीति (पत्रिका: 6 जनवरी ) समाचार पढ़ा तो मन में कई सवाल कौंध गए-
- क्या भारत के अलावा दुनिया में कोई ऐसा राष्ट्र है जहां देश के भीतर राष्ट्र-ध्वज फहराना अपराध माना जाता हो? वह भी प्रमुख राष्ट्रीय दिवस 26 जनवरी के अवसर पर?
- क्या श्रीनगर का लालचौक इस देश का हिस्सा नहीं है, जहां तिरंगा फहराना जुर्म है?
अगर इन सवालों का जवाब 'ना' है तो क्या सभी राजनीतिक दलों को मिलकर कश्मीरी अलगाववादियों को मुंहतोड़ जवाब नहीं देना चाहिए जिन्होंने श्रीनगर में तिरंगा फहराने पर हिंसा फैलाने की धमकी दी है?'
प्रिय पाठकगण! पिछले कुछ वर्षों से भारतीय जनता पार्टी की ओर से 26 जनवरी को श्रीनगर के लालचौक में तिरंगा फहराया जाता रहा है। इस बार भी गणतंत्र दिवस पर दल की युवा शाखा ने लालचौक में राष्ट्र-ध्वज फहराने की घोषणा की है। इस घोषणा का कश्मीरी अलगाववादियों ने तो विरोध किया ही है, बल्कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी नाराजगी जाहिर की है। कुछ लोगों का मानना है कि भाजपा की तिरंगा फहराने की कार्रवाई उग्रवादियों को भड़काएगी। कश्मीर में मुश्किल से शांति लौटी है, इसलिए भाजपा को लालचौक से दूर ही रहना चाहिए। दूसरी तरफ कइयों का मानना है कि भाजपा की यह कार्रवाई उचित है और राष्ट्रवाद से प्रेरित है। एक तीसरा मत यह भी है कि भाजपा ही क्यों- कश्मीर के सभी राजनीतिक दलों को मिलकर 26 जनवरी को पूरे कश्मीर में जगह-जगह तिरंगा फहराना चाहिए। इससे कश्मीर की आम जनता का हौसला बुलन्द होगा और अलगाववादियों को भी मुंहतोड़ जवाब मिल जाएगा।
आइए देखें पाठक क्या कहते हैं।
भोपाल से भानुप्रताप सिंह ने लिखा- 'जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल चाहे नेशनल कांफ्रेंस हो या पीडीपी, यहां तक कांग्रेस भी भाजपा के तिरंगा फहराने की कार्रवाई को राजनीतिक हथकंडा बताती है, लेकिन जेकेएलएफ जैसे उग्रवादी संगठन की धमकी पर सभी दल चुप्पी साधे रहते हैं। यह दोहरा चरित्र नहीं चलेगा। जेकेएलएफ के प्रमुख मोहम्मद यासीन मलिक ने खुलेआम चेतावनी दी है कि लालचौक में भाजपा तिरंगा फहराकर दिखाए। नहीं तो हम बताएंगे कि झंडा कैसे फहराया जाता है। ये लोग खुलेआम तिरंगे का अपमान करें। 15 अगस्त को काला झंडा फहराएं और एक दिन पहले 14 अगस्त को पाकिस्तान का झंडा फहराकर भारत विरोधी नारे लगाएं तो सारी पार्टियां मुंह बंद कर लेती हैं। लेकिन अगर एक राजनीतिक दल भारतीय संविधान के तहत प्राप्त अधिकार से राष्ट्र-ध्वज फहराना चाहे तो यह राजनीतिक हथकंडा है!'
अजमेर से रजनीकान्त शर्मा ने लिखा- 'यासीन मलिक को ऐसा बयान देने पर तत्काल गिरफ्तार कर लेना चाहिए और आपराधिक मुकदमा दायर करना चाहिए। इसके उलट मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला तो तिरंगा फहराने वालों को ही चेतावनियां दे रहे हैं। '
कोटा से कौशल गुप्ता ने लिखा- 'तिरंगा फहराने से कश्मीर में आग सुलग सकती है- यह मेरी समझ से परे है। उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर में सरकार के मुखिया हैं। यह उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वे राष्ट्र-ध्वज फहराने वालों की हौंसला अफजाई करें और आगे बढ़कर मदद करें।'
इंदौर से सत्येन्द्र तोमर ने लिखा- 'अगर कश्मीर में तिरंगा फहराने से ही अशांति पैदा होती है तो राष्ट्रहित में भाजपा अपना यह कार्यक्रम छोड़ सकती है। लेकिन कोई इस बात की गारंटी देता है कि कश्मीर में शांति बनी रहेगी? कश्मीर में किसी राजनीतिक दल में यह ताकत नहीं कि वह ऐसी गारंटी दे सके। 1989 में कश्मीर में आतंकवाद और हिंसा चरम पर थी, तब तो भाजपा ने लालचौक में तिरंगा फहराने की शुरुआत भी नहीं की थी।'
पाली से अंशुल परिहार ने लिखा- 'आखिर भाजपा को ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी कि वह शांति के मौजूदा माहौल में चिंगारी भड़काने का काम करे। अगर यह राष्ट्रीय एकता का संदेश देना चाहती है तो उसे सभी दलों को साथ लेकर तिरंगा फहराना चाहिए। उसे अन्य दलों को विश्वास में लेकर ही लालचौक में तिरंगा फहराना चाहिए।'
जोधपुर से भानुकुमार पारीक ने लिखा- 'अगर कश्मीर का वर्तमान माहौल किसी एक राजनीतिक दल के ध्वज फहराने से बिगड़ता है तो यह कार्रवाई रोकनी चाहिए।'
अजमेर से सत्यप्रकाश आर्य ने लिखा- 'लालचौक में तिरंगा फहराना एक सांकेतिक कार्रवाई है, जिसका राष्ट्रीय महत्व है। लालचौक आतंककारियों की कार्रवाइयों का हमेशा से केंद्र रहा है। आतंकी यहां पाकिस्तान का झंडा फहरा चुके हैं, भारतीय ध्वज जला चुके हैं और अनेक हिंसक कार्रवाइयों को अंजाम दे चुके हैं। गत वर्ष जनवरी में पाक आतंकियों ने लालचौक पर 22 घंटे तक कब्जा जमाए रखा। अब भी वे चुनौती दे रहे हैं कि तिरंगा फहराकर तो देखो। यह समूचे भारतीय गणतंत्र का अपमान है। क्या इसका जवाब कायरतापूर्ण चुप्पी साधकर दिया जाए? अलगाववादियों की धमकी न केवल राजनीतिक दलों के लिए बल्कि हर भारतीय के लिए चुनौती है जो अपने देश से प्रेम करता है।'
जबलपुर से श्याम महर्षि 'राही' ने लिखा- 'यह कैसा लोकतंत्र है जहां राष्ट्र-ध्वज संहिता की धज्जियां उड़ाने वालों की अनदेखी की जाती है और राष्ट्र-ध्वज फहराने वालों को चेतावनी दी जाती है।'
उज्जैन से भानु पारीक ने लिखा- 'तिरंगे की शान के लिए हिन्दू हो या मुसलमान, भगतसिंह हो या अशफाक उल्ला खां- सबने कुर्बानियां दी है। तिरंगे की खातिर हमने फिरंगियों से लोहा लिया तो क्या अलगाववादियों से नहीं ले सकते?'
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