प्रिय पाठकगण! दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर आतंकी धमाके पर पाठकों की तीखी प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने में विफल सरकार और नेताओं के प्रति लोगों में किस कदर गुस्सा है, इसकी साफ झलक देखी जा सकती है।
जयपुर
मनोज पूर्बिया ने लिखा- 'सात सितम्बर को टीवी चैनलों पर धमाके की खबर देखकर बहुत दुखी था। लेकिन अगले दिन सुबह अखबार (पत्रिका) में गृहमंत्री पी. चिदम्बरम का बयान पढ़कर गुस्से को काबू करना मुश्किल हो गया था। गृहमंत्री के अनुसार- दिल्ली पुलिस को जुलाई में खुफिया अलर्ट दिया गया था, लेकिन हमला नहीं रुक सका। इन्हीं गृहमंत्री महोदय ने 26/11 के मुंबई हमलों के दौरान फरमाया था मुंबई पुलिस को खुफिया जानकारी नहीं मिल पाई, इसलिए हमले हो गए। यानी एक आतंकी हमला इसलिए हुआ कि खुफिया जानकारी नहीं थी। और एक आतंकी हमला इसके बावजूद हुआ कि खुफिया जानकारी थी। आखिर चिदम्बरम देश की जनता को क्या समझते हैं। चिदम्बरम के ये बयान सही थे तो भी और गलत हैं तो भी- उन्हें गृहमंत्री का पद सुशोभित करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। 10 सितम्बर की पत्रिका में उनका बयान फिर पढ़ने के बाद तो साफ लगता है कि उन्हें अब घर बैठ जाना चाहिए। आपको याद दिलाऊं उन्होंने क्या कहा- 'कोई नहीं कह सकता कि आगे कोई आतंकी हमला नहीं होगा।' यानी जनता तैयार रहे- भारत में कहीं भी, कभी भी दिल्ली हाईकोर्ट जैसे धमाकों के लिए!'
इंदौर
राहुल मोघे ने लिखा- 'ये नेता, जो जिम्मेदार पदों पर बैठे हैं, ऐसे बयान कैसे दे सकते हैं। क्या इनकी जिम्मेदारी सिर्फ बयानों तक सीमित है। क्या इन लोगों ने अपने-अपने पदों की जिम्मेदारियां निभाने की शपथ नहीं ली। बहुत अफसोस हुआ जब हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी कह दिया- 'हमारे सिस्टम में कमी है। सिस्टम में स्पष्ट रूप से ऐसी दिक्कते हैं जिसका आतंककारी फायदा उठाते हैं।' लगातार 7 वर्ष से अधिक समय तक प्रधानमंत्री रहने के बावजूद अगर वे सिस्टम में कमियों को नहीं सुधार पाये तो दोष किसका?'
ग्वालियर
गिरीश नैथानी ने लिखा- 'दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को बड़ी कोफ्त होती है जब लोग 9/11 की घटना के बाद अमरीका का उदाहरण देते हैं। अरे भई, यह इंडिया है। यहां और वहां फर्क है। अमरीका ने 9/11 के बाद 10 वर्षों में कोई आतंकी वारदात अमरीका की धरती पर नहीं होने दी। इंडिया 10 वर्ष में 19 वारदातें झेल गया।'
उदयपुर
दीप शिखा गुप्ता ने लिखा- 'आतंकी घटनाओं से देशवासियों में कितना रोष है, यह हाईकोर्ट परिसर में विस्फोट से घायलों को अस्पताल देखने पहुंचे नेताओं के सामने साफ नजर आ रहा था। मैं उस वक्त टीवी देख रही थी। राहुल गांधी को देखकर लोग भड़क रहे थे। और राहुल सिर झुकाए पतली गली से निकलते दीखे। नितिन गडकरी, विजय मल्होत्रा जैसे नेताओं को घायलों के परिजनों ने बोलने नहीं दिया। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ा। आम तौर पर स्वागत करने वाली भीड़ राजनेताओं पर भड़क रही थी। यह सिर्फ विस्फोट में मारे गए या घायलों के परिजनों का रोष नहीं था, यह देशवासियों के रोष की अभिव्यक्ति थी।'
भोपाल
शीतल उपाध्याय ने लिखा-'हूजी या किसी आतंकी संगठन की हिम्मत कैसे हो गई मीडिया को ई-मेल करने की। लगता है भारत जैसे 'नरम राष्ट्र' को इन आतंककारियों ने धर्मशाला समझ लिया है- अफजल की फांसी रद्द करो, नहीं तो और हमले होंगे। ब्लैकमेल जैसी आतंकियों की यह चेतावनी सीने में नश्तर की तरह चुभ रही है। अगर हमारी सरकार अफजल के मामले में ढिलमुल नीति नहीं अपनाती तो क्या यह नौबत आती।'
कोटा
कमल सिंह ने लिखा-'जयपुर, बेंगलुरु, अहमदाबाद, सूरत, पुणे, वाराणसी आदि शहरों में जब-जब भी धमाके हुए गृहमंत्री ने एक ही राग अलापा- यह हमला खुफिया चूक का परिणाम नहीं था। आतंकियों ने आसान निशाने को लक्ष्य बनाकर कार्रवाई की। सवाल है आतंकी मुश्किल निशानों को क्यों लक्ष्य बनाएंगे? और जिन्हें वे आसान निशाना कहते हैं उनमें मरने वाला कोई वीआईपी नहीं आम आदमी होता है। नेताओं के खोखले वक्तव्यों में अब किसी को दिलचस्पी नहीं रह गई।'
रायपुर
सौमित्र सेन ने लिखा- 'गृहमंत्री और प्रधानमंत्री के बयानों में ही विरोधाभास है। राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि हमारा खुफिया तंत्र कमजोर है जिसे चुस्त करने की जरूरत है। ये बयानबाजियां ही चलेंगी या कोई सख्त निर्णय भी लेगी सरकार।'
जोधपुर
नवीन परिहार ने लिखा- 'सरकार के रवैये और नेताओं के बयानों से साफ झलकता है कि यह सब ऐसे ही चलता रहेगा। बेगुनाह लोग मारे जाते रहेंगे। आतंकी हमले होते रहेंगे, क्योंकि कोई नहीं कह सकता कि आगे कोई आतंकी हमला नहीं होगा। क्या इन लोगों को राज करने का कोई हक है?'
प्रिय पाठकगण! पाठकों की प्रतिक्रियाओं का सार है कि आतंकियों का खात्मा करना सरकार का दायित्व है। आखिर लोगों को सुरक्षा के लिए आश्वस्त कौन करेगा? जब सरकार ही हताश-निराश और निरूपाय दिखेगी तो जनता का क्या होगा। शायद इसीलिए सभी पाठकों की प्रतिक्रियाओं में जितना आतंकी घटनाओं पर रोष नजर आता है उतना ही सरकार की ढिलाई पर भी गुस्सा दिखाई पड़ता है।
जयपुर
मनोज पूर्बिया ने लिखा- 'सात सितम्बर को टीवी चैनलों पर धमाके की खबर देखकर बहुत दुखी था। लेकिन अगले दिन सुबह अखबार (पत्रिका) में गृहमंत्री पी. चिदम्बरम का बयान पढ़कर गुस्से को काबू करना मुश्किल हो गया था। गृहमंत्री के अनुसार- दिल्ली पुलिस को जुलाई में खुफिया अलर्ट दिया गया था, लेकिन हमला नहीं रुक सका। इन्हीं गृहमंत्री महोदय ने 26/11 के मुंबई हमलों के दौरान फरमाया था मुंबई पुलिस को खुफिया जानकारी नहीं मिल पाई, इसलिए हमले हो गए। यानी एक आतंकी हमला इसलिए हुआ कि खुफिया जानकारी नहीं थी। और एक आतंकी हमला इसके बावजूद हुआ कि खुफिया जानकारी थी। आखिर चिदम्बरम देश की जनता को क्या समझते हैं। चिदम्बरम के ये बयान सही थे तो भी और गलत हैं तो भी- उन्हें गृहमंत्री का पद सुशोभित करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। 10 सितम्बर की पत्रिका में उनका बयान फिर पढ़ने के बाद तो साफ लगता है कि उन्हें अब घर बैठ जाना चाहिए। आपको याद दिलाऊं उन्होंने क्या कहा- 'कोई नहीं कह सकता कि आगे कोई आतंकी हमला नहीं होगा।' यानी जनता तैयार रहे- भारत में कहीं भी, कभी भी दिल्ली हाईकोर्ट जैसे धमाकों के लिए!'
इंदौर
राहुल मोघे ने लिखा- 'ये नेता, जो जिम्मेदार पदों पर बैठे हैं, ऐसे बयान कैसे दे सकते हैं। क्या इनकी जिम्मेदारी सिर्फ बयानों तक सीमित है। क्या इन लोगों ने अपने-अपने पदों की जिम्मेदारियां निभाने की शपथ नहीं ली। बहुत अफसोस हुआ जब हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी कह दिया- 'हमारे सिस्टम में कमी है। सिस्टम में स्पष्ट रूप से ऐसी दिक्कते हैं जिसका आतंककारी फायदा उठाते हैं।' लगातार 7 वर्ष से अधिक समय तक प्रधानमंत्री रहने के बावजूद अगर वे सिस्टम में कमियों को नहीं सुधार पाये तो दोष किसका?'
ग्वालियर
गिरीश नैथानी ने लिखा- 'दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को बड़ी कोफ्त होती है जब लोग 9/11 की घटना के बाद अमरीका का उदाहरण देते हैं। अरे भई, यह इंडिया है। यहां और वहां फर्क है। अमरीका ने 9/11 के बाद 10 वर्षों में कोई आतंकी वारदात अमरीका की धरती पर नहीं होने दी। इंडिया 10 वर्ष में 19 वारदातें झेल गया।'
उदयपुर
दीप शिखा गुप्ता ने लिखा- 'आतंकी घटनाओं से देशवासियों में कितना रोष है, यह हाईकोर्ट परिसर में विस्फोट से घायलों को अस्पताल देखने पहुंचे नेताओं के सामने साफ नजर आ रहा था। मैं उस वक्त टीवी देख रही थी। राहुल गांधी को देखकर लोग भड़क रहे थे। और राहुल सिर झुकाए पतली गली से निकलते दीखे। नितिन गडकरी, विजय मल्होत्रा जैसे नेताओं को घायलों के परिजनों ने बोलने नहीं दिया। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ा। आम तौर पर स्वागत करने वाली भीड़ राजनेताओं पर भड़क रही थी। यह सिर्फ विस्फोट में मारे गए या घायलों के परिजनों का रोष नहीं था, यह देशवासियों के रोष की अभिव्यक्ति थी।'
भोपाल
शीतल उपाध्याय ने लिखा-'हूजी या किसी आतंकी संगठन की हिम्मत कैसे हो गई मीडिया को ई-मेल करने की। लगता है भारत जैसे 'नरम राष्ट्र' को इन आतंककारियों ने धर्मशाला समझ लिया है- अफजल की फांसी रद्द करो, नहीं तो और हमले होंगे। ब्लैकमेल जैसी आतंकियों की यह चेतावनी सीने में नश्तर की तरह चुभ रही है। अगर हमारी सरकार अफजल के मामले में ढिलमुल नीति नहीं अपनाती तो क्या यह नौबत आती।'
कोटा
कमल सिंह ने लिखा-'जयपुर, बेंगलुरु, अहमदाबाद, सूरत, पुणे, वाराणसी आदि शहरों में जब-जब भी धमाके हुए गृहमंत्री ने एक ही राग अलापा- यह हमला खुफिया चूक का परिणाम नहीं था। आतंकियों ने आसान निशाने को लक्ष्य बनाकर कार्रवाई की। सवाल है आतंकी मुश्किल निशानों को क्यों लक्ष्य बनाएंगे? और जिन्हें वे आसान निशाना कहते हैं उनमें मरने वाला कोई वीआईपी नहीं आम आदमी होता है। नेताओं के खोखले वक्तव्यों में अब किसी को दिलचस्पी नहीं रह गई।'
रायपुर
सौमित्र सेन ने लिखा- 'गृहमंत्री और प्रधानमंत्री के बयानों में ही विरोधाभास है। राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक में प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि हमारा खुफिया तंत्र कमजोर है जिसे चुस्त करने की जरूरत है। ये बयानबाजियां ही चलेंगी या कोई सख्त निर्णय भी लेगी सरकार।'
जोधपुर
नवीन परिहार ने लिखा- 'सरकार के रवैये और नेताओं के बयानों से साफ झलकता है कि यह सब ऐसे ही चलता रहेगा। बेगुनाह लोग मारे जाते रहेंगे। आतंकी हमले होते रहेंगे, क्योंकि कोई नहीं कह सकता कि आगे कोई आतंकी हमला नहीं होगा। क्या इन लोगों को राज करने का कोई हक है?'
प्रिय पाठकगण! पाठकों की प्रतिक्रियाओं का सार है कि आतंकियों का खात्मा करना सरकार का दायित्व है। आखिर लोगों को सुरक्षा के लिए आश्वस्त कौन करेगा? जब सरकार ही हताश-निराश और निरूपाय दिखेगी तो जनता का क्या होगा। शायद इसीलिए सभी पाठकों की प्रतिक्रियाओं में जितना आतंकी घटनाओं पर रोष नजर आता है उतना ही सरकार की ढिलाई पर भी गुस्सा दिखाई पड़ता है।
0 comments:
Post a Comment