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राडिया के टेप

   इंदौर के युवा छात्र राजेश एस. निगम ने लिखा- 'जिस व्यक्ति (ए. राजा) ने संचार मंत्री के रूप में सरेआम राष्ट्र को लूट लिया, क्या उसकी समस्त कारगुजारियों को जानने का हक राष्ट्र को नहीं है?
क्या हमें यह जानने का हक नहीं है कि खराब रिकार्ड व प्रधानमंत्री की नापसंदगी के बावजूद वह व्यक्ति दुबारा संचार मंत्रालय हासिल करने में कैसे सफल हुआ? किन लोगों ने परदे के पीछे रहकर उसकी मदद की? किसलिए की? मददगारों को मंत्री ने किस तरह फायदा पहुंचाया? और, सबसे बढ़कर यह सवाल कि आजाद भारत के अब तक के सबसे बड़े घोटाले की संरचना के घटक-सूत्र क्या हैं- यह जानना क्या हर देशवासी का हक नहीं? अगर हां, तो नीरा राडिया के समस्त टेप राष्ट्र के सामने आने चाहिए।'
उदयपुर से डॉ. अभिमन्यु ने लिखा- 'नितान्त निजी बातचीत को छोड़कर मीडिया को वे सारे 5800 टेप उजागर करने चाहिए जिनका सम्बन्ध भ्रष्टाचार से जुड़े किसी भी मुद्दे से हो।'
बेंगलूरु से उपेन्द्र माहेश्वरी ने लिखा- 'यह बिलकुल सही वक्त है, जब देश को खोखला कर देने वाले भ्रष्टाचार के दानव का सिर बेरहमी से कुचल दिया जाए।'
   प्रिय पाठकगण! नीरा राडिया के 'आउटलुक' और 'ओपन' पत्रिकाओं में प्रकाशित कुछ फोन टेपों ने न केवल 2 जी स्पैक्ट्रम घोटाले बल्कि भ्रष्टाचार के कई अन्य पहलुओं को भी उजागर किया है। पाठकों की राय में ये टेप सार्वजनिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं और अगर हम सचमुच भ्रष्टाचार का खात्मा चाहते हैं तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाना चाहिए।
अजमेर से पंकज जैमन ने लिखा- '2 जी का काला सच (पत्रिका: 8 दिसम्बर) पढ़ा तो आंखें फटी रह गईं। किस तरह कुछ कम्पनियों को देश की सम्पदा लुटा दी गई- वरिष्ठ पत्रकार एस. गुरुमूर्ति के इस लेख से स्पष्ट है। यूनिटेक को 1658 करोड़ में लाइसेंस दिया गया जिसकी कीमत थी- 9100 करोड़ रुपए। स्वान को 1537 करोड़ रुपए में मिला जबकि कीमत थी-7192 करोड़ रुपए। एसटेल को 25 करोड़ में लाइसेंस मिला जबकि कीमत थी 4251 करोड़ रुपए! बिना निविदा के कम्पनियों को जो सरकारी बंदरबांट की गई, उससे देश को कैग के अनुसार 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपए चपत लगी। संचार मंत्री को जब इस तरह देश को लुटाने का अधिकार मिला हो तो साफ समझ में आता है कि ए. राजा को मंत्रालय दिलाने में कुछ कम्पनियों ने क्यों एड़ी चोटी का जोर लगाया।'
  उज्जैन से देवज्ञ भट्ट ने लिखा- 'अगर राडिया के टेप सामने नहीं आते तो पता ही नहीं चलता कि कॉरपोरेट घरानों, राजनेताओं, पत्रकारों और बिचौलियों की मिलीभगत से ए. राजा को संचार मंत्री का पद मिला। यह टेपों से ही पता चला कि कॉरपोरेट कम्पनियों की लॉबिंग करने वाली नीरा राडिया ने 24मई, 2009 यानी एक दिन पहले ही राजा को फोन करके दूरसंचार मंत्री बनाने की सूचना दे दी थी।'
अहमदाबाद से दीपक भाटी ने लिखा- 'राडिया के टेपों में कुछ पत्रकारों की बातचीत भी सामने आई है। बातचीत से साफ है कि नीरा राडिया के खेल में पत्रकार भी शामिल थे। यह सम्पूर्ण मीडिया-जगत के लिए चिंतन का विषय होना चाहिए। फिलहाल तो पत्रकार भी भ्रष्ट राजनीतिज्ञों, उद्योगपतियों, नौकरशाहों और बिचौलियों की तरह कठघरे में खड़े हैं।'
जबलपुर से डॉ. रंजीत ने लिखा- 'पेड न्यूज के बाद यह दूसरा अवसर है जब मीडिया की साख को बट्टा लगा है। जिस तरह इन दिनों न्यायपालिका (संदर्भ: सुप्रीम कोर्ट की इलाहाबाद हाईकोर्ट पर टिप्पणी) अपने भीतर के भ्रष्टाचार को लेकर मुखर है, उसी तरह मीडिया संगठनों को भी अपने भीतर सफाई अभियान छेड़ देना चाहिए।'
जोधपुर से जमनादास पुरोहित ने लिखा- 'देश में व्याप्त भ्रष्टाचार सिर चकराने वाला है। यह मेरी नहीं सुप्रीम कोर्ट (पत्रिका: 1 दिसम्बर) की टिप्पणी है। शीर्ष अदालत का दर्द समझ में आता है क्योंकि जब भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाला देश का मुख्य सतर्कता आयुक्त ही बेदाग न हो तो किससे उम्मीद करें।'
भीलवाड़ा से जे.के. बंसल ने लिखा- 'इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ (पत्रिका: 4 दिसम्बर) ने उचित चेतावनी दी कि भ्रष्टाचार के कारण देश की एकता पर खतरा पैदा हो गया है और यह भी कहा कि अगर सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम नहीं उठाए तो जनता कानून अपने हाथ में ले लेगी। मेरी राय में इन चेतावनियों पर गौर करने का यह उचित समय है।'
भोपाल से चिन्मय गर्ग ने लिखा- 'भ्रष्टाचार के खात्मे का सबसे अचूक उपाय यह है कि हमारा शासन तंत्र और सार्वजनिक व्यवस्था पूरी तरह पारदर्शी हो। जब कुछ छुपाने के लिए होगा ही नहीं, तब भ्रष्टाचार भी नहीं होगा।'
कोटा से बहादुर सिंह ने लिखा- 'ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट (पत्रिका: 10 दिसम्बर) हमें हर साल शर्मशार करती है लेकिन हम हैं कि सुधरते ही नहीं।'
बीकानेर से पी.सी. सुथार ने लिखा- 'हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं। देश में पहली बार एक शक्तिशाली पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव ने जेल की हवा खाई है। भ्रष्टाचार के खिलाफ न्यायपालिका की मौजूदा सक्रियता पर 'देर है अंधेर नहीं' (पत्रिका: 11 दिसम्बर) विशेष सम्पादकीय टिप्पणी में सटीक लिखा कि न्यायपालिका यदि इसी प्रकार दुर्गा बनकर मैदान में उतर जाती है तो विधायिका और कार्यपालिका को हर हाल में घुटने टेकने पड़ेंगे। मैं इसमें खबरपालिका (मीडिया) को भी जोड़ना चाहूंगा जो लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है और जो भ्रष्टाचार के खात्मे में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।'

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