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वादी का सच

उन्तीस जून के अंक में प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित फोटो 'वादी का सच' देखकर जयपुर के पाठक जितेन्द्र एस. चौहान ने लिखा- 'उस दिन पत्रिका में फोटो देखा, तभी माजरा समझा में आ गया कि कश्मीर में क्या चल रहा है। सुरक्षा पैड से सुसज्जित एक हथियारबंद सिपाही सड़क पर लाचार पड़ा जान की भीख मांग रहा था। तीन-चार उग्र युवक चेहरों पर नकाब ओढ़े लाठियों, पत्थरों और लात-घूंसों से उसे घेरकर नृशंसतापूर्वक पीट रहे थे। जनता की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मी के जान के लाले पड़े थे। बेचारे को प्रदर्शनकारियों पर किसी तरह की सख्ती न किए जाने के आदेश का पालन जो करना था। आखिर क्या हुआ? पहले हिंसक प्रदर्शन करो, पथराव करो, कानून तोड़ो, कफ्र्यू का उल्लंघन करो। गोली से मौत हो जाए फिर बड़ा प्रदर्शन करो। फिर मौत और फिर उससे भी बड़ा प्रदर्शन... तांडव... अराजकता...! यही तो चाहते थे सीमा पार बैठे हमारे दुश्मन। घाटी में शांति लौट रही थी। कोई बड़ा वाकिया नहीं हुआ था एक साल से। सैलानियों की चहल-पहल बढ़ गई थी। वर्ष 2008 से ही सुखद वातावरण बनने लगा था। रिकार्ड मतदान हुआ। पहले विधानसभा उसके बाद लोकसभा में जन प्रतिनिधि चुने गए तो शांति के दुश्मनों के सीने पर सांप लोटने लगे। वे अपने मकसद में कामयाब हो गए। कश्मीर घाटी फिर सेना के सुपुर्द हो गई। यही तो चाहते थे वे।'

प्रिय पाठकगण! कश्मीर के वर्तमान माहौल पर पाठकों ने व्यापक प्रतिक्रियाएं की हैं। पाठकों के विचार कश्मीर समस्या पर जनमानस की एक झालक है। महत्वपूर्ण बात यह है कि पाठकों ने कश्मीर के मौजूदा अशांतिपूर्ण हालात से कैसे निपटा जाए, उस पर खुलकर अपनी बात कही है।

बांसवाड़ा से चन्द्रमोहन शर्मा ने लिखा- 'जुलाई में अमरनाथ यात्रा शुरू होती है। कश्मीर के अलगाववादी नेताओं ने जून की शुरुआत में ही अशांति के बीज बोने शुरू कर दिए ताकि इस धार्मिक यात्रा में विघ्न पड़े और देशव्यापी प्रतिक्रिया हो। पिछले वर्ष 15दिन में देश भर से कोई 35 लाख श्रद्घालुओं ने पवित्र गुफा के दर्शन किए थे। यह बात लश्कर-ए-तैयबा को नागवार गुजर रही थी। इसलिए उसने कश्मीर में बैठे अहमद शाह गिलानी जैसे हुर्रियत के गुर्गों के जरिए अमरनाथ यात्रा को 15 दिनों तक सीमित करने की दुर्भावनापूर्ण मांग रखी।'

इंदौर से कार्तिक गर्ग ने लिखा- 'एक प्रसिद्घ साप्ताहिक पत्रिका में सुरक्षा विशेषज्ञ के हवाले से छपा कि पाक समर्थित आतंकी गुट अब इंतिफादा मॉडल पर काम कर रहे हैं। यह मॉडल फिलिस्तिनियों ने इजरायल के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन करके तैयार किया था। इसके तहत कम उम्र के किशोर और बेरोजगार युवकों को चंद रुपयों के लालच देकर सड़कों पर उतरने के लिए तैयार किया जाता है। हाल के कश्मीर में प्रदर्शनों से इसकी तुलना की जा सकती है।' अहमदाबाद से हिमांशु मेहता ने लिखा, 'हाल ही कश्मीर घाटी में जितने प्रदर्शन हुए उनमें हिंसा फैलाने वालों को साफ तौर पर पहचाना जा सकता था। ये लोग मुंह ढांपकर अपनी पहचान छुपाते हुए खुले तौर पर पत्थरबाजी करते कैमरों के सामने आ रहे थे। क्या ये लोग कश्मीर की आम जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं?' बेंगलुरु से दमयन्ती नैयर ने लिखा- 'अलगाववादी संगठन कश्मीर में अक्सर अफवाहें फैलाकर माहौल खराब करने की कोशिश करते रहे हैं। शोपियां कांड इसका जीता जागता नमूना था।'

उज्जैन से दीपेन्द्र गोस्वामी के अनुसार, 'कश्मीर के वर्तमान हालात के लिए जम्मू-कश्मीर की सरकार भी कम दोषी नहीं है। एक तरफ तो कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अ?दुल्ला कश्मीर में 'आम्र्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट' को खत्म करने की मांग करते हैं दूसरी तरफ खतरा बढ़ते ही सेना को बुलाना चाहते हैं।'
इसके विपरीत भोपाल से रविन्द्र ठाकुर की प्रतिक्रिया मिली- 'कश्मीर में बिगड़े हालात के लिए केन्द्र सरकार का रवैया जिम्मेदार है। सेना को मिले विशेषाधिकार को केन्द्र सरकार खुद खत्म करने पर तुली हुई है। प्रधानमंत्री ने अभी जून माह में ही कश्मीर दौरे में राज्य को एक हजार करोड़ रुपए की विशेष सहायता की घोषणा की थी। क्या नतीजा निकला? सेना के अधिकार खत्म करने को तैयार बैठी सरकार को कश्मीर में सेना नहीं भेजने का अपना संकल्प महज एक सप्ताह के भीतर तोड़ देना पड़ा।'

जोधपुर से दिनेश परिहार नेलिखा- 'कश्मीर में उपद्रवियों से निपटने के लिए सेना को पूरे अधिकार दिए जाएं। अलगाववादियों के साथ देशद्रोहियों जैसा सलूक हो।'

बीकानेर से रवि भारती ने लिखा- 'आम्र्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट का इस्तेमाल दंगाइयों के लिए है न कि आम जनता के लिए।'

उदयपुर से जवाहर सिंह ने लिखा- 'कश्मीर का सच क्या है, इसे पत्रिका समूह के प्रधान संपादक ने अपनी संपादकीय टिप्पणी (नीतियों का भ्रष्टाचार, 2जुलाई) में स्पष्ट तौर से व्यक्त किया है।'

भरतपुर से गजेन्द्र सिंह ने लिखा- 'कश्मीर में हुई मौतें दुखद है। लेकिन वहां के हालात को सख्ती से ही कुचला जा सकता है।'

जयपुर से ज्योत्सना अग्रवाल के अनुसार- 'भारत सरकार अलगाववादियों को बातचीत का बार-बार न्यौता देकर देशवासियों को क्यों अपमानित कर रही है।'

अजमेर से विजय सेन ने लिखा- 'कश्मीर में अशांति व आतंक का जवाब वहां की जनता ही दे सकती है जिसकी शुरुआत पिछले वर्ष बहादुर युवती रुखसाना कौसर ने की थी।'

जबलपुर से दीपक रॉय ने लिखा- 'कश्मीरी जनता की सुरक्षा राज्य और केन्द्र दोनों की जिम्मेदारी है जिसकी राजनीतिक कारणों से अनदेखी नहीं की जा सकती है।'

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