- क्या कश्मीर में शांति के लिए भारत सरकार को पाकिस्तान से बातचीत करनी चाहिए?
- क्या कश्मीर का भारत में विलय अंतिम नहीं है?
- क्या कश्मीरवासी सचमुच आजादी मांग रहे हैं और भारत को उसे स्वीकार कर लेना चाहिए?
- और, क्या कश्मीर कभी भारत का अभिन्न अंग नहीं रहा?
किसने क्या कहा, गौर करें।
- कश्मीर मसले का स्थायी समाधान पाकिस्तान को शामिल किए बिना नहीं हो सकता- दिलीप पडगांवकर (श्रीनगर में)
- कश्मीर का भारत में विलय अंतिम नहीं है- उमरअब्दुल्ला (श्रीनगर में)
- अब आजादी ही कश्मीर का रास्ता है- सैयद अली शाह गिलानी (हुर्रियत के कट्टरपंथी नेता, दिल्ली की एक सेमिनार में)
- कश्मीर कभी भी भारत का अभिन्न अंग नहीं रहा- अरुंधति राय (दिल्ली की इसी सेमिनार में)
सेवानिवृत्त शिक्षक आत्माराम गर्ग (जयपुर) ने लिखा, 'पत्रिका (25 अक्टूबर) में जब पढ़ा कि दिलीप पडगांवकर ने श्रीनगर दौरे में कहा कि कश्मीर समस्या का समाधान पाकिस्तान को शामिल किए बगैर नहीं हो सकता तो मुझे बड़ा आघात लगा। मैं पडगांवकर साहब की लेखनी का प्रशंसक रहा हूं। लेकिन उनके इस बयान से असहमत हूं। पूरी दुनिया जानती है कि कश्मीर घाटी में नफरत का जहर फैलाने वाला कौन है? भारत ने एक बार नहीं सैकड़ों बार अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की कारगुजारियों के सबूत रखे हैं।
कौन नहीं जानता पाक की शह पर कश्मीर के गैर मुस्लिमों को आतंकित करके योजनाबद्ध ढंग से
निकाला गया? आज लाखों कश्मीरवासी घर-बार और संपत्ति छोड़कर भारत के विभिन्न हिस्सों में शरणार्थियों की तरह रहने को मजबूर हैं। अपनी धरती से बिछुड़ने का गम कैसा होता है, कोई इनसे पूछे। इन सबको वापस कश्मीर में बसाए बगैर कश्मीर समस्या का समाधान कैसे सोचा जा सकता है।'
जबलपुर से डॉ. सतीश चंद्र दुबे ने लिखा- 'अगर पडगांवकर का कश्मीर से आशय पाक अधिकृत कश्मीर से है तो उनके बयान का स्वागत है। पाकिस्तान ने कश्मीर के जिस हिस्से को बलपूर्वक हड़प रखा है, उसे वापस पाने के लिए बातचीत में कोई हर्ज नहीं। भारतीय संसद ने 1994 में यह सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया था कि पाक के कब्जे से कश्मीर को मुक्त कराके उसे पुन: भारत में शामिल करना है। यह संकल्प संसद का ही नहीं, पूरे देशवासियों का है। रही जम्मू-कश्मीर की बात तो इसमें पाकिस्तान का क्या काम? यह भारत का अंदरूनी मामला है। क्या बलूचिस्तान की समस्या के लिए पाकिस्तान कभी भारत को बातचीत के लिए आमंत्रित करेगा?'
इंदौर से जितेन्द्र पी. मालवीय ने लिखा, 'उमर अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री पद पर एक क्षण के लिए भी काबिज नहीं रहना चाहिए। आखिर उन्होंने पद की गरिमा भुलाकर गैर संवैधानिक बयान जो दिया। उमर अब्दुल्ला 26 अक्टूबर1947 की तारीख कैसे भूल गए, जब कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने अपनी रियासत का विलय भारत में करने की स्वीकृति दी। आजादी के बाद पांच सौ रियासतों का विलय भी भारत में इसी प्रकार हुआ। और ये सभी हिस्से आज विधिक तौर पर भारत के अभिन्न अंग हैं। फिर उमर अब्दुल्ला ने कैसे कहा कि कश्मीर का भारत में विलय अंतिम नहीं।'
देशबंधु पालीवाल (उदयपुर) ने लिखा- 'बड़े अफसोस की बात है कि अरुंधति राय जैसी बुद्धिजीवी लेखिका ने यह बयान दिया कि कश्मीर कभी भी भारत का अभिन्न अंग नहीं रहा। उन्हें प्राचीन भारत का ग्रंथ 'राजतरंगिणी' पढ़ना चाहिए जिसमें लेखक और इतिहासवेत्ता कल्हण ने कश्मीर का इतिहास लिखा है। महर्षि कश्यप ने इस क्षेत्र को बसने योग्य बनाया। सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के मगध साम्राज्य का कश्मीर भी एक हिस्सा था। चन्द्रगुप्त के पौत्र सम्राट अशोक ने राजधानी श्रीनगर को बसाया। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने तत्कालीन कश्मीरी राजा दुर्लभवद्र्धन के राज्य का वर्णन अपने यात्रा-वृत्तांत में किया है। महाकवि भवभूति और वाक्पतिराज ने कश्मीर में ही कालजयी साहित्य रचा।'
प्रीति कुमावत, नवलगढ़ (झुंझुनूं) ने लिखा, 'भारत में अभिव्यक्ति की आजादी है, इसका मतलब यह नहीं कि जिस राष्ट्र ने यह आजादी आपको दी है आप उसको ही तोड़ने की बात करें। कश्मीर की आजादी की बात कहकर इन लोगों ने भारत के करोड़ों लोगों की भावनाओं को आहत किया है।'
विनय व्यास (रायपुर) ने लिखा, 'भारत के मुकुट कश्मीर पर आज पड़ोसी मुल्कों की बुरी नजर है। पाक अधिकृत कश्मीर में चीन ने डेरा जमा लिया है। वहां चीन निरन्तर अपनी शक्ति बढ़ा रहा है। विश्व पर नजर रखने के लिए भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सम्पूर्ण कश्मीर को वह अपने पिछलग्गू देश पाकिस्तान के कब्जे में देखना चाहता है। भारत को इस साजिश से सावधान रहना होगा।'
सुमन्त सिंह सोलंकी (जोधपुर) ने लिखा, 'यह सही है कि कश्मीर की समस्या अतीत में की गई कुछ गलतियों का परिणाम है। इसमें जवाहरलाल नेहरू द्वारा कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना, धारा- 370 और सैनिकों की कुछ ज्यादतियां भी शामिल हैं। लेकिन कश्मीर का मतलब केवल कश्मीर घाटी नहीं है। लद्दाख और जम्मू भी इसी राज्य के हिस्से हैं इसलिए केवल घाटी में चंद लोगों की राय सम्पूर्ण कश्मीर पर थोपी नहीं जा सकती।'
सोमदेव सोढी (भोपाल) ने लिखा, 'कश्मीर सदियों से भारत का अभिन्न अंग था, है और भविष्य में भी रहेगा। भारत के दुश्मनों को यह बात अच्छी तरह जान लेनी चाहिए।'
0 comments:
Post a Comment