राजस्थान विश्वविद्यालय के शोधार्थी आलोक शर्मा ने लिखा- 'कई बार सोचता हूं, हमारा देश आखिर इतने बड़े-बड़े घोटालों को कैसे झोल लेता है? किसी दूसरे देश में इतने घोटाले और भ्रष्टाचार होते तो उसकी अर्थव्यवस्था लुट गई होती। लेकिन जब हमारी लागत और मूल्य-प्रणाली पर गौर करता हूं तो बात समझ में आ जाती है। बीसियों तरह के करों और शुल्कों के नाम पर सरकार के पास ऐसी जादुई छड़ी है, जिसे वह विकास के नाम पर जनता के ऊपर फटकारती है, और भ्रष्टाचार के घाटे को पूरा करती है। विश्वास न हो तो राष्ट्रीय जीवन की धुरी बन चुके पेट्रोल की कीमतों को ही देख लीजिए। ताजा मूल्य वृद्धि के बाद जो पेट्रोल जनता को आज 60 रुपए लीटर मिल रहा है, उसकी लागत सिर्फ 27 रुपए है। बाकी राशि करों और शुल्कों के नाम पर जनता की जेब से निकाली जा रही है। यानी लागत से दुगनी! यह 'जनता के लिए जनता की सरकार' तो कतई नहीं, जो अपने भ्रष्ट कारनामों का बोझ भी जनता के कंधों पर डाल रही है।'
जयपुर के डॉ. के.सी. गुप्ता के अनुसार- 'गोविन्द चतुर्वेदी (पत्रिका: 16 दिसम्बर, स्पॉट लाइट) का आकलन बिल्कुल सही है कि केन्द्र व राज्य सरकारें अपने घाटे और विभिन्न घोटालों का पूरा भार पेट्रोल की कीमतों के जरिए आम आदमी पर ही डालती है। अगर यह सच नहीं होता तो सरकार पिछले छह साल में 30 बार पेट्रोल के दाम नहीं बढ़ाती। वह भी झूठा प्रचार करके। तेल कंपनियों के घाटे का प्रचार करके। जबकि तीनों प्रमुख तेल कंपनियों की गत वर्ष की ही बैलेंसशीट देखिए- आई ओसी ने तो 10220.55 करोड़ रुपए का शुद्ध मुनाफा कमाया। दूसरी ओर बीपीसीएल ने1632.36 करोड़ तथा एचपीसीएल ने 1301.37 करोड़ रुपए का शुद्ध मुनाफा कमाया।'
प्रिय पाठकगण! पेट्रोल की कीमतें आम लोगों को किस कदर प्रभावित करती हैं, यह पाठकों की प्रतिक्रियाओं से आप जान सकते हैं। इसी पखवाड़े पेट्रोल की कीमत 3.15 रुपए प्रति लीटर बढ़ाने पर आम आदमी खासा नाराज है। भारत में पेट्रोल का उत्पादन मांग से 80 प्रतिशत कम है और इसकी आपूर्ति अन्तरराष्ट्रीय बाजार से करनी पड़ती है, जिसकी बढ़ती कीमतों का असर भारत पर भी पड़ता है। इस सारी जानकारी के बावजूद आम जनता पेट्रोल के मौजूदा दामों से नाराज है तो आखिर क्यों? लोगों का मानना है कि सरकार की दोषपूर्ण पेट्रोलियम नीति और असंगत कर ढांचे के कारण पेट्रोल महंगा होता जा रहा है न कि अन्तरराष्ट्रीय बाजार के कारण। पाठकों ने तथ्यों और आंकड़ों के आधार पर अपने तर्क रखे हैं।
इंदौर से देशबंधु गुप्ता ने लिखा- 'छह माह पहले केन्द्र सरकार ने पेट्रोल की कीमत पर से नियंत्रण हटा लिया। उसके बाद तो पेट्रोलियम कंपनियों ने जनता को लूटना ही शुरू कर दिया। सिर्फ छह माह में ही पेट्रोल के दाम 20 फीसदी बढ़ा दिए गए। इतनी बढ़ोतरी किसी भी देश में नहीं हुई।'
कोटा से रामस्वरूप राही ने लिखा- यूरोप के एक-दो विकसित देशों को छोड़ दें तो भारत अकेला ऐसा देश है, जहां पेट्रोल पर 50 प्रतिशत तक कर और शुल्क वसूले जाते हैं। जबकि अमरीका जैसा विकसित देश भी अपने नागरिकों से पेट्रोलियम पदार्थों पर 19 प्रतिशत से ज्यादा टैक्स नहीं लेता। हम तो पड़ोसी देशों से भी गए गुजरे हैं। पाकिस्तान में पेट्रोल पर 29 प्रतिशत, श्रीलंका में 39 प्रतिशत और नेपाल में 32 प्रतिशत कर ही पेट्रो पदार्थों पर लगाए जा रहे हैं।'
भोपाल से रविन्द्र सिंह भदौरिया ने लिखा- 'लगता है सरकार सारा राजस्व पेट्रोल से ही वसूलने पर तुली हुई है। वित्त वर्ष 2009-10 में पेट्रो पदार्थों से अकेले केन्द्र सरकार ने 90 हजार करोड़ रुपए की राजस्व वसूली की। इस साल यह आंकड़ा सवा लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है। इसमें राज्य सरकारों द्वारा वसूले गए शुल्कों को भी जोड़ दें तो यह आंकड़ा कहां जाकर पहुंचेगा- कल्पना की जा सकती है। माना पेट्रो-राजस्व हमारी अर्थव्यवस्था की धुरी है, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि लोगों पर अंधाधुंध भार लाद दिया जाए।'
जोधपुर से कल्पना सोलंकी ने लिखा- 'पेट्रोल के दाम पूरे महंगाई-चक्र को प्रभावित करते हैं, इसलिए इसके दामों में बढ़ोतरी बहुत सोच- समझ कर ही की जानी चाहिए। सुना है अब सरकार डीजल और रसोई गैस के दाम भी बढ़ाने पर सोच रही है। अगर ऐसा हुआ तो आम आदमी का जीना दुश्वार हो जाएगा।'
अजमेर से हरिश्चन्द्र अजवानी ने लिखा- 'सरकार की नीति 'जबरा मारे, रोने भी न दे' जैसी है। एक तरफ तो देश में वाहनों की रिकार्ड बिक्री हो रही है, वाहन निर्माता बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां आ रही हैं। सस्ते वाहन ऋण उदारता से बांटे जा रहे हैं। पेट्रोल-डीजल जैसे सीमित प्राकृतिक संसाधनों के संयमपूर्ण उपभोग को प्रोत्साहित करने की कोई योजना भी कहीं नजर नहीं आ रही है। ऐसे में पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी आम आदमी के लिए 'कोढ़ में खाज' साबित हो रही है।''
भरतपुर से छात्र गौरव शर्मा ने लिखा- 'कुछ नहीं तो राजस्थान सरकार प्रदेश के नागरिकों को पेट्रोल पर वैट घटाकर राहत दे ही सकती है। अभी राज्य में सर्वाधिक वैट है जो पंजाब, हरियाणा जैसे पड़ोसी राज्यों से अधिक है।'
बीकानेर से सूरज परमार ने लिखा- 'सरकारों को पेट्रोल पर कर और शुल्क लगाते समय केवल अपनी आमदनी पर ही नजर नहीं रखनी चाहिए। जनहित सर्वोपरि है। सरकारों के पास कर वसूली के अनेक स्रोत हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि पेट्रोल पर एक तय सीमा में ही शुल्क व कर लगाए जाएं, जैसा कि अमरीका में है। यह आज की जरूरत है।'
मुसीबतें भी अलग अलग आकार की होती है
1 year ago
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