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चीन को जवाब

प्रिय पाठकगण! भारत के खिलाफ चीन की हरकतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। हाल ही हमारे सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह ने स्वीकार किया कि पाक-अधिकृत कश्मीर में करीब 4 हजार चीनी सैनिकों ने डेरा जमा रखा है। ऐसे में यह सवाल मजबूती से उठाया जा रहा है कि हमारे लिए चीन से सुरक्षा ज्यादा महत्वपूर्ण है या व्यापार। क्या हमें चीन की करतूत की अनदेखी करनी चाहिए? आखिर चीन से हमें कैसा बर्ताव करना चाहिए ताकि हमारी सम्प्रभुता को कोई चुनौती न दे सके। आइए देखें, पाठक क्या कहते हैं।

इंदौर
अरविन्द खरे ने लिखा—'न्यूयार्क टाइम्स ने खबर दी थी कि पीओके में करीब 11 हजार चीन के सैनिक मौजूद हैं। इसके बाद हमारे सेनाध्यक्ष की स्वीकारोक्ति आई (पत्रिका: 6 अक्टूबर) कि वहां 4 हजार चीनी सैनिक हैं। इसी दिन यह खबर भी छपी कि हमारे विदेश मंत्रालय ने चीन और भारत की राजधानियों में उच्चस्तरीय कूटनीतिक सैन्य मुख्यालयों की घोषणा की है। दोनों देशों की सहमति से ही यह घोषणा हुई होगी, लेकिन हमारी सीमा पर सैनिकों का जमावड़ा कर चीन ने बदनीयत जाहिर कर दी। हमें भी मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए। विदेश मंत्रालय को तुरंत विरोध स्वरूप सैन्य मुख्यालयों की घोषणा को एकतरफा रद्द कर देना चाहिए।'
जयपुर
हरीश शुक्ल ने लिखा—'हम आतंकवाद, नक्सलवाद, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों में इतने उलझे  हुए हैं कि हमें चीन की कारगुजारियों की तरफ ध्यान देने की फुरसत ही नहीं है। हम अक्सर पाकिस्तान की करतूत तक ही सिमट जाते हैं, जबकि चीन एक चालाक दुश्मन की तरह भारत के चारों तरफ जाल बुनता जा रहा है। दरअसल, हमें पाकिस्तान से ज्यादा चीन से खतरा है। यह बात हमारा रक्षा मंत्रालय अपनी एक रिपोर्ट में कह चुका है।'
जबलपुर
प्रमोद कुमार वाजपेयी के अनुसार—'पिछले दिनों चीन ने अरुणाचल प्रदेश में सीमा पर हमारी ओर से खड़ी की गई दीवार को गिरा दिया। यह चीन की अब तक की सबसे गंभीर हरकत थी, लेकिन भारत सरकार बयानों तक सीमित रही। अगर भारत चीनी सीमा में ऐसी कोई हरकत करता तो चीन जमीन-आसमान एक कर देता। हम कभी भी ऐसे मुद्दों को अन्तरराष्ट्रीय रूप नहीं दे पाते।'
कोटा
प्रसून गर्ग ने लिखा—'हमारी नरमी के कारण ही चीन का हौसला बढ़ता गया। हमने जब कभी थोड़ी सी भी आंख दिखाई, चीन लाइन पर आ गया। हाल ही चीन ने भारत को वियतनाम की ओर से प्रस्तावित चीन सागर में तेल की खोज से दूर रहने की चेतावनी दी। भारत ने चीन की आपत्ति सिरे से खारिज कर दी, तो चीन ने भी चुप्पी साध ली। वरना वह अपना तेवर दिखाए बिना बाज नहीं आता।'
भोपाल
शैलेन्द्र चुघ ने लिखा—'चीन की पाकिस्तान में बढ़ती गतिविधियां भारत के लिए खतरनाक हैं। आर्थिक रूप से कंगाल पाक अमरीका की धमकी के बाद चीन की गोद में पूरी तरह से बैठ गया है। हमारे आसपास तिब्बत, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश के जरिए चीन हमें चारों ओर से घेरने की कोशिश कर रहा है। इस खतरे को हमने अब भी नहीं भांपा तो हमें पश्चाताप के सिवा कुछ हासिल नहीं होगा।'
जोधपुर
यमुना प्रसाद पुरोहित ने लिखा—'मुझे घोर आश्चर्य है कि चीन की करतूत से आंखें मूंद कर हमारे हुक्मरान चीन के रिश्तों की थोथी दुहाई देते हैं। प्रधानमंत्री चीन को हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक साझोदार बताते हैं, तो रक्षा मंत्री चीन के साथ करीबी रिश्तों की दुहाई देते हैं। क्या कोई करीबी रिश्तेदार हमारी महत्वपूर्ण नदी ब्रह्मपुत्र पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाकर नदी के प्रवाह को रोकने की तैयारी कर सकता है?'
रायपुर
दीपचन्द कौशिक ने लिखा—'हमें चीन से व्यापारिक रिश्तों से कोई परहेज नहीं है, लेकिन उसे हमारी सम्प्रभुता का पूरा ख्याल रखना पड़ेगा। चीन ने भारतीय सीमा में घुसपैठ के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। एक ही वर्ष में उसने 270 बार भारत में घुसपैठ की।'
अहमदाबाद
डॉ. सरयू भोजानी ने लिखा—'भारत हर तरह से चीन की चुनौती से मुकाबला करने में सक्षम है, लेकिन सरकारी तौर पर हमें ढुलमुल रवैया छोडऩा होगा। एक सक्षम प्रतिद्वन्द्वी की तरह हमें चीन से पेश आना होगा।'
ग्वालियर
अनूप सिंह ने लिखा—'भारत को आक्रामक कूटनीति अपनानी पड़ेगी। चीन की तरह भारत भी चीन के आसपास के देशों से घनिष्ठता बढ़ाए। लाओस, कंबोडिया, सिंगापुर, मलेशिया, वियतनाम, थाईलैण्ड आदि देशों से आर्थिक-सामरिक रिश्ते मजबूत करे। उत्तरी कोरिया, जापान जैसे विकसित देशों से सम्बन्ध गहरे करे। चीन को चीन की भाषा में ही जवाब देने की रणनीति अपनाए।'
भिलाई
देशराज गुप्त के अनुसार—'यह सही है कि हमें आर्थिक विकास पर ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत है परन्तु दुश्मनों की कारगुजारियों की अनदेखी की कीमत पर नहीं। चीन ने साइबर हमला कर हमारा महत्वपूर्ण डाटा चुरा लिया। हमें क्यों पीछे रहना चाहिए।'
उदयपुर
डी.सी. चंदेल ने लिखा—'अगर देश ही नहीं बचेगा तो व्यापार क्या खाक करेंगे? हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता देश की सम्प्रभुता होनी चाहिए।'

  प्रिय पाठकगण! यह सही है कि पड़ोसी देशों से परस्पर तनाव और झागड़े हमारी प्राथमिकता में नहीं है, लेकिन कोई अगर राष्ट्र की सम्प्रभुता को चुनौती पेश करे तो वह हमें कतई स्वीकार नहीं होनी चाहिए। किसी भी कीमत पर नहीं। चीन या भारत के प्रति दुश्मनी रखने वाले देश को यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि भारत एक कमजोर देश है, जिसे कभी भी आंख दिखाई जा सकती है। भारत की तरफ तिरछी नजर करने से पहले उसे सौ बार सोचने की जरूरत पड़े।

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