ग्वालियर से मिथुन मोघे ने लिखा-
1. 'क्या ओसामा-बिन-लादेन के खात्मे की अमरीकी कार्रवाई 'ऑपरेशन एल्विस' की जानकारी पाकिस्तान को पहले से थी?
2. या फिर पाकिस्तान की राजधानी व उसकी सैन्य अकादमी के नाक तले छुपे ओसामा को अमरीकी सैनिकों ने खोज निकाला, गोलियों से भूना, लाश को साथ लेकर हेलीकॉप्टरों से उड़ गए और बेचारे पाकिस्तान को कोई खबर तक नहीं हुई?
इन दोनों सवालों के जवाब चाहे वे हां में हो या ना में-पाकिस्तान के गले की हड्डी बन गए हैं जो न उगलते बन रही है न निगलते। आज पाकिस्तान एक ऐतिहासिक राष्ट्रीय शर्म के दौर से गुजर रहा है। उसे पूरी दुनिया धिक्कार रही है। इन हालात के लिए कोई और नहीं पाकिस्तान खुद जिम्मेदार है।'
उदयपुर से नरेन्द्र चतुर्वेदी ने लिखा- 'पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के चीफ शुजा पाशा और पाक सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कियानी को अमरीकी ऑपरेशन की जानकारी नहीं थी- यह कोई नहीं मान सकता। ये दोनों ही पाकिस्तान के सर्वेसर्वा हैं। दोनों को मालूम था ओसामा कहां छुपा है। और यह भी साफ है दोनों को पहले से मालूम था कि अमरीका ऐबटाबाद में क्या करने जा रहा है? सवाल है ये दोनों सर्वशक्तिमान माने-जाने वाले पाक के 'भाग्य विधाता' आखिर खामोश क्यों रहे? क्यों उन्होंने 'ऑपरेशन एल्विस' का जरा सा भी प्रतिवाद नहीं किया? क्या किसी दूसरे राष्ट्र के दस-बीस सैनिक लड़ाकू हेलीकॉप्टरों से आकर इतनी आसानी से सुरक्षित लौट सकते थे?'
प्रिय पाठकगण! ओसामा के खात्मे की अमरीकी कार्रवाई को लेकर भारतीय नागरिकों की क्या प्रतिक्रिया है? कहने को पाकिस्तान में लोकतंत्र है, लेकिन पाठक वहां राज सेना का ही मानते हैं। सवाल है, क्या कट्टरवादी पाक सेना पस्त हो चुकी है या फिर आईएसआई अपनी तयशुदा लाइन से पीछे हट गई है? क्या पाक की चुनी हुई सरकार बिलकुल नकारा है? क्या पाकिस्तान पूरी तरह से एक लुंजपुंज राष्ट्र बन चुका है? पाठकों की प्रतिक्रियाओं में इन सवालों के जवाब तथा भारतीय जनमानस की झलक भी देख सकते हैं।
इंदौर से प्रो. राजेन्द्र मोहन ने लिखा- 'जिस ऐबटाबाद में अमरीकी सैनिक हेलीकॉप्टर से उतरे वह पाकिस्तानी सेना का महत्वपूर्ण क्षेत्र है। वहां आने वाले हर व्यक्ति पर सेना की कड़ी निगरानी रहती है। आश्चर्य है अमरीकी सैनिक आए और ओसामा को मारकर चले गए। क्या पाक सेना सो रही थी?'
रायपुर से राजशेखर ने लिखा-'अमरीका ने ओसामा को ढूंढ निकाला और मार गिराया। यह अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद को एक बहुत बड़ा झटका है। आतंककारियों को इसी तरह ढूंढ-ढूंढ कर मारना चाहिए। पाकिस्तान पर मुझे तरस आता है। वह अब भी झूठ बोल रहा है कि उसे ओसामा की कोई जानकारी नहीं थी।'
जयपुर से सुभाष चन्द्रा ने लिखा- 'पाकिस्तान के हुक्मरानों के पास और कोई चारा भी नहीं था। उन्हें पाकिस्तानी जनता के सामने अपनी खाल बचाने के लिए झूठ बोलना ही पड़ेगा।'
जबलपुर से देवेन्द्र सरीन ने लिखा- 'पाकिस्तान की जनता पाकिस्तानी शासकों को दोनों तरफ से बख्शने वाली नहीं है। चाहे उन्हें अमरीकी कार्रवाई की जानकारी थी तो भी, नहीं थी तो भी।'
बीकानेर से पी.सी. सुथार ने लिखा- 'अमरीका आतंकवाद से लड़ने के लिए पाकिस्तान को प्रतिवर्ष जो 15 हजार करोड़ रुपए देता था, सेना व गुप्तचर एजेंसियों के लोग उसे ऐय्याशियों में उड़ा देते थे। वे आतंककारियों से कभी नहीं लड़े। उल्टे उन्हें मदद करते रहे और मनमाफिक देश को लूटते रहे। आज पाकिस्तान की हालत इतनी खराब है कि अगर अमरीका कर्ज न दे तो पाक जनता को राशन पानी भी नसीब न हो।'
अजमेर से डॉ. सतीश ने लिखा- 'हो सकता है पाकिस्तान को अमरीकी कार्रवाई की बिलकुल भनक न पड़ी हो। पाकिस्तान में कुछ भी हो सकता है।'
भोपाल से प्रियांशु जैन ने लिखा- 'भारत को भी इसी तरह की कार्रवाई करनी चाहिए। पाकिस्तान में भारत के अपराधी ओसामा जैसे एक नहीं कई आतंककारी छिपे बैठे हैं। इनमें कई तो वहां खुलेआम देखे जाते हैं। भारत को मुम्बई बमकांड का सरगना दाउद इब्राहिम और भारतीय संसद पर हमले का दोषी मौलाना मसूद अजहर के साथ वही करना चाहिए जो अमरीका ने ओसामा के साथ किया।'
कोटा से रामसिंह तंवर ने लिखा- 'पाक अधिकृत कश्मीर में भारत के खिलाफ सक्रिय आतंककारियों के 42 शिविर हैं। शिविरों को हमें हमला करके नष्ट कर देना चाहिए।'
जोधपुर से करणसिंह भूणी ने लिखा- 'संपादकीय 'हम क्यों खामोश' (पत्रिका: 4 मई) पढ़कर प्रत्येक स्वाभिमानी भारतीय का मस्तक शर्म से झुका होगा, परन्तु सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेताओं को स्वाभिमान की जरा-सी भी परवाह नहीं है। भारत की कमजोर सरकार अब तक संसद पर हुए हमले के मुख्य आरोपी अफजल गुरु को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद मृत्युदंड देने में हिचकिचा रही है। उससे क्या उम्मीद करें।'
पाली से दीपक मेहता ने लिखा- 'मैं कलीम बहादुर के लेख 'अब तो सुधरे पाकिस्तान' (पत्रिका: 3 मई) से सहमत हूं। हमें पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहिए। सीधा हमला ठीक नहीं होगा।'
बेंगलूरु से सोमेन्द्र मैसी ने लिखा- 'ओसामा को खत्म करने के बाद अमरीका के राष्ट्रपति ओबामा ने कहा- हम जो ठानते हैं कर दिखाते हैं। क्या भारत के प्रधानमंत्री भी पाक में छिपे आतंककारियों के लिए ऐसा कहेंगे?'
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