RSS

मनोरंजन, मजाक और मौत!

यह पाठकों, मीडिया और सरकार, तीनों के लिए महत्वपूर्ण समय है। जहां मीडिया को अपनी सीमा का ध्यान रखना चाहिए। वहीं सरकारों को भी आलोचना बर्दाश्त करनी चाहिए। कोई भी सरकार आदर्श सरकार नहीं होती। इसलिए आलोचना से ऊपर नहीं हो सकती। ऐसे में मीडिया अगर जनहित के मुद्दे उठाकर लोगों का ध्यान खींचे, तो क्या बुराई है?
रेडियो जॉकी की 'हॉक्स कॉल' के बाद मौत को गले लगा लेने वाली नर्स जेसिंथा सल्दान्हा का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। जेसिंथा मीडिया के एक क्रूर मजाक का शिकार बन गई। भारतीय मूल की जेसिंथा सल्दान्हा लंदन के मशहूर किंग एडवर्ड सप्तम अस्पताल में नर्स थी। उसकी ड्यूटी एक खास मरीज की सेवा में लगी थी। यह खास मरीज थी ब्रिटेन के शाही परिवार की बहू केट मिडिल्टन, जो इन दिनों गर्भवती हैं।
गत सप्ताह अस्पताल की रिसेप्शनिस्ट के पास फोन आया। यह फोन ऑस्ट्रेलिया के २ डे एफ.एम. के दो रेडियो जॉकी ने मिलकर किया। महिला जॉकी मेल ग्रेग ने ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय का स्वांग रचते हुए कहा, 'क्या मैं अपनी बहू केट से बात कर सकती हूं।' रिसेप्शनिस्ट ने तत्काल फोन मिला दिया। उधर से नर्स जेसिंथा ने बात की। निस्संदेह जेसिंथा ने महारानी एलिजाबेथ समझकर ही रेडियो जॉकी से बात की। उसे जरा भी संदेह नहीं हुआ, क्योंकि बीच-बीच में वह एक पुरुष आवाज भी सुन रही थी, जिसे महारानी 'प्रिंस चाल्र्स' कहकर सम्बोधित कर रही थी। प्रिंस चाल्र्स का रोल माइकल क्रिश्चियन निभा रहा था। जेसिंथा ने शाही बहू की तबीयत का पूरा ब्यौरा भी दिया और चिंतित महारानी को ढांढस भी बंधाया कि उनकी बहू ठीक हैं और सो रही हैं। जेसिंथा ने भोलेपन में मरीज से मिलने का माकूल समय भी बता दिया। तभी दोनों रेडियो जॉकी ठहाका लगाकर हंस पड़े। हकीकत पता चलने पर जेसिंथा बहुत शर्मिन्दा हुई। अगले दिन वह अपने फ्लैट में फंदे से लटकी पाई गई। आत्महत्या से पूर्व उसने तीन पत्र लिखे। पत्र में उसने अपनी मौत के लिए दोनों रेडियो जॉकी को जिम्मेदार ठहराया। उसके शव को भारत लाकर उड्डुपी के पास पैतृक गांव में गमगीन माहौल के बीच अंतिम संस्कार कर दिया गया।
एक कत्र्तव्यनिष्ठ नर्स की दुखद मृत्यु ने झकझोर दिया। सोशल मीडिया में गुस्सा फूट पड़ा। रेडियो जॉकी व एफ.एम. चैनल की जबर्दस्त निन्दा की गई। लंदन में शोकसभा कर जेसिंथा को श्रद्धांजलि दी गई। ऑस्ट्रेलिया की प्रधानमंत्री जूलिया गेलार्ड ने इसे 'भयानक हादसा' बताया। खबर है २ डे एफ.एम. रेडियो की लोकप्रियता में गिरावट आ गई। कई विज्ञापनदाताओं ने रेडियो से मुंह फेर लिया। ऑस्ट्रेलिया के संचार और मीडिया प्राधिकरण ने स्वत: संज्ञान लेकर रेडियो के खिलाफ जांच शुरू कर दी।
इधर सोशल नेटवर्क पर कई लोगों ने मांग की है कि शाही बहू केट मिडिल्टन के होने वाले बच्चे का नाम जेसिंथा रखा जाए। कुछ लोगों ने सोशल नेटवर्क पर वेबपेज बनाया, 'नेम द रॉयल बेबी जेसिंथा इन द मेमोरी ऑफ नर्स जेसिंथा सल्दान्हा'। 'हॉक्स कॉल' करते हुए दोनों रेडियो जॉकी को अंदाज नहीं था कि बात इस हद तक पहुंच जाएगी। वे तो नर्स को मजाक का पात्र बनाकर श्रोताओं का मनोरंजन करना चाहते थे। नर्स ही क्यों, किसी का भी मजाक उड़ाकर लोगों का मनोरंजन हो, तो क्या हर्ज है! यही सोच आज मीडिया पर हावी है। जेसिंथा त्रासदी की वजह भी यही है। ब्रिटिश पत्रकार एंड्रयू ब्राउन ने 'द गार्जियन' में सही लिखा कि मीडिया को अपने कामकाज के तरीकों पर गौर करने की जरूरत है।
छत्तीसगढ़ में प्रेस का दमन
मीडिया ही क्यों, सरकारों को भी अपने कामकाज के तरीकों पर गौर करने की जरूरत है। जनता के वोटों से चुनी हुई सरकारें जब जनता के हकों पर ही कुठाराघात करें, तो लोकतंत्र का खतरे में पडऩा निश्चित है। छत्तीसगढ़ में यही हो रहा है। यहां की रमन सिंह सरकार प्रेस का दमन करने में सबको पीछे छोड़ चुकी है। सरकार जब सत्ता के मद में डूब जाती है, तो उसे ठकुरसुहाती के अलावा कुछ पसंद नहीं आता। सरकारी तंत्र के घपले-घोटाले उजागर करके पत्रिका ने लोगों के हकों पर हो रहे कुठाराघात की ओर ध्यान खींचा। यही नहीं, मुख्यमंत्री रमन सिंह के भी कुछ कारनामों को उजागर किया, जो पहली बार छत्तीसगढ़ की जनता के सामने आए। सरकार की भवें तन गईं। पत्रिका को सरकारी विज्ञापन बंद कर दिए गए। इसकी परवाह न करते हुए पत्रिका जनता के प्रति अपना दायित्व लगातार निभाता रहा। पिछले विधानसभा सत्र में पत्रिका संवाददाताओं के प्रवेश पत्र निरस्त कर दिए गए थे।
पत्रिका को सुनवाई का मौका तक नहीं दिया। अगला सत्र शुरू होने के बावजूद पत्रिका संवाददाताओं के विधानसभा प्रवेश पर रोक जारी है। जबकि जब छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के निर्देश हैं कि पत्रिका के आवेदन करने पर उसके संवाददाताओं को विधानसभा कवरेज के लिए प्रवेश पत्र जारी करने पर निर्णय करें। विधानसभा लोकतंत्र का मंदिर है, जहां कानून का सम्मान होता है। न्यायालय के आदेश के बावजूद पत्रिका संवाददाताओं को प्रवेश से रोकना क्या कानून और न्याय की अवहेलना नहीं है?
छत्तीसगढ़ की जनता को जानने का हक है कि सदन में उसके हितों के लिए राज्य सरकार क्या कदम उठा रही है। इस हक से वंचित करना जनता की अवहेलना है, जिसने सरकार को सत्ता सौंपी। यह सीधे अभिव्यक्ति व प्रेस की स्वतंत्रता का दमन है। यह दूसरी बात है कि पत्रिका अपने स्रोतों से विधानसभा के समाचार प्रकाशित कर रहा है और जनता के प्रति अपना दायित्व निभा रहा है।  
गांव का 'स्मार्ट' अखबार
गत दिनों अखबारों की दुनिया में एक नई शुरुआत हुई। लखनऊ के पास छोटे से गांव कुनौरा से नया हिन्दी अखबार निकला—'गांव कनेक्शन'। यह गांवों की 'स्मार्ट' तस्वीर पेश करेगा। अखबार के सम्पादक नीलेश मिश्र के अनुसार, मीडिया में यह भ्रान्ति है कि गांव का मतलब सिर्फ खेती-बाड़ी या फिर ऑनर किलिंग है। आप कुनौरा आकर देखिए। यहां लोगों को डेनिम्स पहने हुए और गांव की स्टॉल पर मोमोज खाते हुए देख सकते हैं। 'गांव कनेक्शन' का पहला अंक ही स्मार्ट तेवर के साथ आया है। एक फीचर ग्रामीण शादियों में लोकप्रिय हो रहे 'बुफे डिनर' पर है, तो एक लेख बलिया के निवेश बैंकर पर है, जो मूलत: न्यूयार्क में स्थित है।
'गांव कनेक्शन' में युवा ग्रामीण पत्रकारों को रखा गया है, जिनमें ज्यादातर संवाददाता मॉस कम्यूनिकेशन व पत्रकारिता स्कूलों के स्थानीय विद्यार्थी हैं।

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

0 comments: