भोपाल के पाठक धर्मेन्द्र सोलंकी का पत्र यहां हूबहू दिया जा रहा है-
'कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन में एक ट्रक भरकर घोटाले सामने आ चुके हैं। भारतीय करदाता के टैक्स से भरा सरकारी खजाना सोमालिया के समुद्री लुटेरों की तरह लूटा जा चुका है। फिर भी कुछ भले मानुषों का यह सद्विचार है कि फिलहाल इन सबको छोड़ दो। पहले आयोजन हो जाने दो। फिर सब घोटालेबाजों से एक-एक कर देख लेंगे। कुछ महानुभावों का तर्क है कि भ्रष्टाचारियों पर अभी प्रहार करने से कार्यकर्ता मायूस होंगे। खेल इंतजाम, जो पहले से ही गड़बड़ाए हुए हैं, वे पूरी तरह मटियामेट हो जाएंगे। मीडिया को इन लोगों की चेतावनी है कि वह थोड़ा चुप रहे, वरना पूरी दुनिया में हमारी नाक कट जाएगी।
'बिलकुल ठीक। नाक की चिंता हर भारतवासी को है। वह खेलों का नहीं भ्रष्टाचार का विरोधी है। इसलिए एक भारतीय के तौर पर मेरी चिंता यह है कि जिस आयोजन समिति पर कालिख पुत चुकी है, वह अपने दागिल चेहरे के साथ कॉमनवेल्थ खेलों के प्रबंध में जब देश की ओर से भागीदारी करेगी तो हमारी नाक कटेगी या बचेगी?'
कोटा से अर्जुन देव सारस्वत ने लिखा- 'देश की गरिमा की दुहाई देने वाली हमारी सरकार और मंत्रियों को यह तो मालूम होगा कि हमारा देश दुनिया के दस सबसे अधिक भ्रष्ट देशों की सूची में शामिल है। इसलिए जब राष्ट्रमंडल खेलों के लिए देश का 35 हजार करोड़ रुपए का खजाना दांव पर लगा हो तो जनता को पाई-पाई का हिसाब कौन देगा? कुछ लोग यह खर्च 80 हजार करोड़ रुपए तक आंक रहे हैं। जाहिर है, यह भारी-भरकम धनराशि हमारा देश अन्तरराष्ट्रीय श्रेय हासिल करने के लिए खर्च कर रहा है, न कि भ्रष्टाचारियों, दलालों और कमीशनखोरों के घर भरने के लिए।'
प्रिय पाठकगण! कॉमनवेल्थ खेल आयोजनों में निरन्तर भ्रष्टाचार उजागर होने के बाद केन्द्र सरकार ने देशवासियों को आश्वस्त किया है कि एक बार आयोजन सफलतापूर्वक हो जाए, उसके बाद भ्रष्टाचारियों को बक्शा नहीं जाएगा। कुछ अधिकारियों को निलम्बित करके तो कुछ नए अधिकारियों को नियुक्त करके उसने अपने मंसूबे जाहिर करने की कोशिश की है। लेकिन क्या आम नागरिक इससे संतुष्ट हैं? उसे सरकार के वादे पर कितना भरोसा है? पाठकों की प्रतिक्रियाओं में उनका मंतव्य स्पष्ट है।
जयपुर से अनिल खण्डेलवाल ने लिखा- 'दिल्ली कॉमनवेल्थ खेलों में भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड टूट चुके हैं। 7 लाख रुपए में दुनिया की सबसे उम्दा ट्रेड मिल खरीदी जा सकती है। सामान्य मशीन की कीमत 1 लाख रुपए है। लेकिन अधिकारियों ने महज किराए पर 10 लाख रुपए प्रति मशीन खर्च कर डाले। पन्द्रह-बीस हजार में बिकने वाले फ्रिज के किराए पर ही 42 हजार रुपया प्रति फ्रिज फूंक दिया गया। और देखिए- सौ रुपए में बाजार में बिकने वाला डस्टबिन 1,167 रुपए में किराए पर लिया गया। लिक्विड सोप डिस्पेन्सर का खरीद मूल्य 92 रुपए, किराया 3,397 रुपए। लेपटाप का खरीद मूल्य 22,943 रुपए। किराया 89,502 रुपए। बहुत लंबी सूची है ऐसी चीजों की जिनकी कीमत से चार-पांच गुना ज्यादा तो किराया ही चुका दिया गया। यह तो भ्रष्टाचार का एक मामूली नमूना है। अंदाज लगाएं उन निर्माण कार्यों का, जिनमें बहुत बड़ी-बड़ी डील की गई। प्रारंभिक रूप से जो तथ्य सामने आ रहे हैं उससे साफ है कि यह भ्रष्टाचार नहीं, देश की संपत्ति की बेरहमी से लूट है।'
अजमेर से जयदीप ने लिखा- 'नेहरू स्टेडियम में रंग-रोगन पर ही 900 करोड़ रुपए का खर्चा कर दिया। हम खेलों में तो स्वर्ण पदक जीत सकते हैं, लेकिन विश्वसनीयता में कांस्य पदक भी नहीं जीत पाएंगे।'
कोलकाता से डी.सी. डागा ने लिखा, 'शुक्रिया अदा करना चाहिए केन्द्रीय सतर्कता आयोग का जिसने सबसे पहले खेल सम्बन्धी 15 परियोजनाओं में घपला पाया। इसी आधार पर केंद्रीय जांच ब्यूरो ने प्राथमिकी दर्ज की। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने लगातार भ्रष्टाचार के मामले उजागर किए। शुरुआत में आयोजन समिति से जुड़े अफसर और पदाधिकारी बहुत भुनभुनाए। मीडिया पर लाल-पीले हुए। सुरेश कलमाड़ी ने तो अखबार और न्यूज चैनलों पर मानहानि का मुकदमा करने की धमकी तक दी। लेकिन बाद में सब ठंडे पड़ गए। भ्रष्टाचार की परतें रोजाना उधड़ती ही रही।'
सिरोही से पंकज सिंह ने लिखा- 'राष्ट्रमंडल खेल दिल्ली में आयोजित होंगे, यह वर्ष 2003 में ही तय हो गया था। इतने वर्षों बाद भी अगर हमारी तैयारियां अधूरी है तो दोषी कौन है?'
उदयपुर से दीप जोशी ने लिखा- 'सरकार ने एक केबिनेट सचिव को जिम्मा सौंपा है जो दस बड़े अफसरों के जरिए खेलों के आयोजन की निगरानी रखेंगे। इसके अलावा शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी की अध्यक्षता में मंत्री समूह पहले से ही कार्य कर रहा है। क्या ये लोग खेल आयोजन समिति के वे सभी सौदे रद्द करेंगे, जिनमें भ्रष्टाचार की बू आ रही है? क्या ये लोग वे सभी वसूलियां कर पाएंगे जिनमें चीजों को उनके दामों से चौगुनी दरों पर किराए पर लिया गया? ऐसे कई सवाल अभी अनुत्तरित हैं।'
इंदौर से गौरव मयंक के अनुसार, 'जब जमैका और मलेशिया जैसे विकासशील और छोटे देश राष्ट्रमंडल खेलों का सफलतापूर्वक आयोजन कर चुके तो भारत क्यों नहीं कर सकता। मुझो यकीन है, हम कामयाब होंगे, खेलों में भी और आयोजन में भी। लेकिन अफसोस! यह सब भ्रष्टाचार की काली छाया में होगा।'
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