RSS

सितारे को सजा या माफी!

क्या कानून और संविधान की गरिमा नहीं रखी जाए? क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना हो? क्या न्याय का सिद्धान्त भंग हो? इसमें कोई शक नहीं कि राज्यपाल को माफी का अधिकार संविधान प्रदत्त है, लेकिन इस अधिकार का उपयोग करते हुए हमें नहीं भूलना चाहिए कि इन्साफ कहीं से भी आहत न हो। क्या संजय दत्त की माफी की मांग करते हुए इसका ध्यान रखा गया है?




फिल्म अभिनेता संजय दत्त को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार सजा हो या फिर राज्यपाल उनकी सजा माफ कर दें? इस बहस में जहां प्रिन्ट मीडिया की संतुलित भूमिका रही, वहीं न्यूज चैनलों की भूमिका पर अंगुलियां उठ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तत्काल बाद ही ज्यादातर न्यूज चैनल संजय दत्त के पक्ष में भावपूर्ण माहौल बनाने में जुट गए। वे संजय दत्त को इस तरह से पेश कर रहे थे मानो एक सितारे के साथ बहुत बड़ा अन्याय हो गया हो। संजय दत्त की फिल्मों के चुन-चुन कर दृश्य दिखाए जाने लगे। उनकी गांधीगिरी वाली फिल्मी भूमिका को बार-बार उभारा गया। उनके जुड़वां बच्चों, पत्नी मान्यता, सांसद बहन प्रिया दत्त और माता-पिता सुनील दत्त व नरगिस को लेकर भावुक कहानियां बताई जाने लगीं। बॉलीवुड सितारों के एक-एक करके इंटरव्यू लिए गए। सबने एक स्वर में कहा- संजू बाबा बहुत नेक इन्सान हैं। रही-सही कसर प्रेस परिषद अध्यक्ष जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने पूरी कर दी। उन्होंने कहा, संजय दत्त को माफी मिलनी चाहिए। जस्टिस काटजू ने महाराष्ट्र के राज्यपाल को पत्र लिखा कि संजय दत्त संविधान के अनुच्छेद १६१ के तहत माफी के हकदार हैं। वे पहले ही १८ माह जेल भुगत चुके हैं, इसलिए राज्यपाल महोदय को उनकी बाकी सजा माफ कर देनी चाहिए। इसके बाद तो राजनीतिक दलों के नेताओं में भी संजय दत्त को बचाने की होड़-सी लग गई। कांग्रेस, सपा, एनसीपी आदि दल जहां संजय दत्त के पक्ष में हैं, तो भाजपा, शिव सेना विरोध में उतर पड़ी हैं। दरअसल, सवाल पक्ष या विरोध का नहीं है। सवाल इससे कहीं ऊपर उठकर है। क्या कानून और संविधान की गरिमा नहीं रखी जाए? क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना हो? क्या न्याय का सिद्धान्त भंग हो? इसमें कोई शक नहीं कि राज्यपाल को माफी का अधिकार संविधान प्रदत्त है, लेकिन इस अधिकार का उपयोग करते हुए हमें नहीं भूलना चाहिए कि इन्साफ कहीं से भी आहत न हो। न्याय के प्रति पीडि़तों व आम जन की भावनाओं को ठेस न पहुंचे। क्या राज्यपाल से संजय दत्त की माफी की मांग करते हुए इसका ध्यान रखा गया? टीआरपी की होड़ में न्यूज चैनलों ने भी सब कुछ भुला दिया। संजय का अतीत दरकिनार कर दिया गया, जिसकी सोशल मीडिया में खूब आलोचना हो रही है। यहां तक कहा जा रहा है कि एक अपराधी को कानूनसम्मत सजा दिलाने में मीडिया को अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। लोगों की इस धारणा के पीछे निश्चय ही १९९३ का स्याह अतीत है, जिसे याद कर आज भी रूह कांप उठती है।
मुम्बई में १२ मार्च १९९३ को दोपहर डेढ़ बजे से बम धमाके शुरू हुए। सवा दो घंटे तक जगह-जगह धमाके होते रहे। चीख-पुकार के बीच २५७ निर्दोष लोगों की मौत हो गई। ७१३ घायल हो गए। पूरी मुंबई दहल गई। ये धमाके भारत के पहले सुनियोजित शृंखलाबद्ध धमाके थे। आतंक का एक नया और भयावह चेहरा सामने आया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा, विस्फोट की घटनाओं में पाकिस्तान का पूरा हाथ था। मुंबई की अलग-अलग जगहों पर विस्फोटक रखने के लिए जिन १९ अपराधियों को चुना गया, उनमें १७ को पाकिस्तान में ट्रेनिंग दी गई। पाकिस्तान से लौटकर इन लोगों ने विस्फोटों को अंजाम दिया। हथियार और विस्फोटक भी तस्करी करके लाए गए। इनके सरगना दाउद इब्राहिम, टाइगर मेमन व कई गुर्गे भागकर पाकिस्तान चले गए और आज वहां शान से रह रहे हैं। यह पहला अवसर है, जब सुप्रीम कोर्ट ने भारत में भारतीयों द्वारा की गई आतंकी घटना के लिए पाकिस्तान को सीधे दोषी ठहराया है।
खैर... विस्फोटों में संजय दत्त का कोई हाथ नहीं था। टाडा कोर्ट ने पहले ही उन्हें आपराधिक साजिश से बरी कर दिया था और उन्हें छह साल की सजा सुना दी थी। ध्यान रहे यह सजा उन्हें ए.के. ५६ रायफल और एक पिस्तौल अवैध रूप से रखने पर सुनाई गई थी। आतंकी इसी रायफल का इस्तेमाल करते हैं। धमाकों के लिए भारत में तस्करी से लाए गए हथियारों में से एक संजय दत्त के पास भी पहुंची। आखिर कैसे? संजय दत्त तब ३३ वर्ष के दुस्साहसी और एक लापरवाह नौजवान थे। लापरवाही का खमियाजा भुगतना ही पड़ता है। संजय दत्त ने भी भुगता। सबक भी सीखे होंगे, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संजय दत्त का मामला एक सामान्य लापरवाही तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसी घटना से जुड़ा हुआ है, जो शायद ही कभी भुलाई जाएगी। लाखों-करोड़ों लोगों की भावनाएं भी इससे जुड़ी हैं। पीडि़तों और मृतकों के परिजनों की तो है ही। इसलिए कानूनसम्मत जो भी सजा हो, वह उन्हें भुगतनी होगी। जाने-माने कानूनविद् जस्टिस आर.एस. सोढ़ी के अनुसार, 'संजय दत्त बहुत सस्ते में छूट गए। उन्हें सिर्फ पांच वर्ष की सजा मिली है, जो उनके अपराध के हिसाब से बहुत कम है। इससे उन्हें संतुष्ट हो जाना चाहिए।' सही है, एक बार टाडा कानून में मुकदमा दर्ज हो जाने के बाद हटाया नहीं जाता। टाडा में बंद जब्बुनिशा काजी से पूछिए, जिसकी दलील है कि उसका गुनाह तो संजय दत्त से भी कम था। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील कमलेश जैन का कहना है- 'बेशक उस वक्त (बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद) मुंबई के हालात भयावह थे और पुलिस से संजय दत्त और उनके परिवार को सुरक्षा नहीं मिल रही थी। इसलिए उन्होंने भय व अपने बचाव में गैर-कानूनी तरीके से हथियार रखे, लेकिन अपने आप में यह दलील नाकाफी है। आखिर बहुत सारे लोग मुम्बई में उसी हालात में रह रहे थे और अगर वे भी यही कदम उठाते, तो क्या होता?'
जैसा कि पहले कहा, एके-५६ रायफल आतंकी रखते हैं। बेशक संजय दत्त ने इसका इस्तेमाल नहीं किया। आतंकियों से उनका परिचय भी नहीं होगा, परन्तु हथियारों की तस्करी करने और उनकी अवैध खरीद-बिक्री करने वाले असामाजिक तत्वों के सम्पर्कों में तो वे आए ही थे। कानून के जानकार कहते हैं कि मुम्बई में इतना बड़ा आतंकी मनसूबा कामयाब नहीं होता, अगर जिम्मेदार तंत्र के साथ ही स्थानीय लोगों ने भी लापरवाही न बरती होती। संजय दत्त तो एक नामी परिवार से ताल्लुक रखते थे। उन्हें तो खास सावधानी बरतनी चाहिए थी। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक इन्सान की जिम्मेदारी तय करता है। सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीशों जस्टिस पी. सदाशिवम व जस्टिस बी.एस. चौहान ने फैसला सुनाते हुए कहा कि दत्त परिवार के रुतबे के बावजूद यह नहीं माना जा सकता कि संजय दत्त अवैध ढंग से हथियार रखें। उन्हें सजा पूरी करनी ही होगी। संजय दत्त को माफी की मांग करना सुप्रीम कोर्ट की मंशा की अवमानना ही मानी जाएगी। संजय दत्त को माफ किया जाता है, तो यह संदेश जाएगा कि बड़े और रुतबे वाले लोग अपराध करके बच निकलते हैं या फिर रियायत पा लेते हैं भले ही शीर्ष अदालत उन्हें दोषी माने। आम जनता के इन मनोभावों को मीडिया को भी अनदेखा नहीं करना चाहिए।

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

2 comments:

dr.mahendrag said...

परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले
क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते
Khoobsurat shero ke sath khoobsurat gazal

dr.mahendrag said...

विडंबना ये है कि सभी लोग न्याय पालिका को निर्णय देने के लिए कोस रहें हैं,पर इस बात पर नहीं सोचते कि इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं.इस में तो कोई दो रे नहीं कि संजय ने अपराध किया.यदि वे चाहते तो पुलिस को खबर दे कर इस पुरे घटना क्रम को बदल सकते थे.३३ साल कि उम्र में उनको समझ नहीं थी. यह तर्क भी बेमानी है.यदि ऐसा है तो फिर वोट देने कि ,बालिग होने कि उम्र भी कम से कम ३५ साल कर देनी चाहिए.
इसके अलावा स्वंयं संजय इस अपराध को पहले स्वीकार कर चुके हैं,यह भी अच्छी बात है कि वे आज भी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को अपनी गलती समझ कर शिरोधार्य करने की बात कह रहे हैं, किन्तु कुछ लोग अपनी छवि बनाने,राजनीती चमकाने के लिए माफ़ी की बात कह रहे हैं, काश अन्य दोषियों कि ऐसी पैरवी करने वाला कोई होता.शायद उनमें से भी कई अपनी गलती समझ कर पश्चाताप कर रहे होंगे,वे भी सुधर गए होंगे,उन्होंने भी २० साल आराम से नहीं गुजारे होंगे, उनके भी परिवार,बच्चे होंगे,उन पर भी यह नियम लागू हो जाये तो क्या अच्छा न होगा?
देश की जेलों में अनुचित हथियार रखने के आरोप में न जाने कितने ही लोग बंद हैं, उनके लिए भी सोच लेना चाहिए.
हमारी संजय से कोई दुश्मनी नहीं लेकिन देश का कानून सब के लिए सामान हो,यह बात हर नागरिक चाहेगा ,और वही सरकार लोकप्रिय सरकार होगी जो इस आधार पर काम करेगी.