सरकार में बैठे लोगों का मानना है कि आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ी है इसलिए वह महंगाई से इतना त्रस्त नहीं है, जितना मीडिया में बताया जा रहा है। तेल कंपनियों की सोच भी यही है कि लोग बढ़े हुए दाम चुकाने में सक्षम हैं। जिन पर महंगाई को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी है, वे अजीबो-गरीब तर्क देते हैं। वे कहते हैं खाद्य वस्तुओं के दाम बढऩा अर्थव्यवस्था
के विकास का प्रतीक है।
'मौत की ओर ले जा रही महंगाई' (पत्रिका: 5 नवम्बर) समाचार पढ़ा तो लगा केरल हाईकोर्ट ने मुझ जैसे करोड़ों भारतवासियों के दिल की बात कह दी। यह प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जयपुर से श्याम सिंह आढ़ा ने लिखा— 'महंगाई ने पहले से ही मार रखा है। उस पर महीने-दो महीने से बढ़ती पेट्रोल की कीमतें मरे हुए पर लात मारने जैसी लगती है। आम आदमी महंगाई से कराह रहा है, लेकिन यूपीए सरकार कुंभकर्ण की तरह बेसुध होकर सोई हुई है।'
प्रिय पाठकगण! पिछले दिनों महंगाई बढऩे के समाचार मीडिया में लगातार सुर्खियां बने हुए थे। इसी बीच तेल कंपनियों ने भी फिर पेट्रोल की कीमतें बढ़ाने की घोषणा कर दी। सरकार में बैठे लोगों का मानना है कि आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ी है इसलिए वह महंगाई से इतना त्रस्त नहीं है, जितना मीडिया में बताया जा रहा है। तेल कंपनियों की सोच भी यही है कि लोग बढ़े हुए दाम चुकाने में सक्षम हैं। जिन पर महंगाई को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी है, वे अजीबो-गरीब तर्क देते हैं। वे कहते हैं खाद्य वस्तुओं के दाम बढऩा अर्थव्यवस्था के विकास का प्रतीक है।
क्या वाकई ऐसा है? क्या सचमुच महंगाई से लोग परेशान नहीं है? एक नमूना आपने ऊपर देखा। आइए देखते हैं, क्या कहते हैं आम नागरिक।
रायपुर से उमा धरेन्द्रा ने लिखा— 'हम पति-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं। दो बच्चे और सास-ससुर हैं। कुल छह सदस्यों का परिवार चलाना हम दोनों के लिए दिनोंदिन मुश्किल होता जा रहा है। ग्रोसरी, दूध व सब्जियों पर ही आधा वेतन खर्च हो जाता है। रही-सही कसर पेट्रोल निकाल देता है। बच्चों की स्कूल फीस कमर तोड़ देती है। बीमार सास के लिए बहुत महंगी दवाएं खरीदनी पड़ती है। ऊपर से कार की किस्त! हम दोनों अब कार बेचने की सोच रहे हैं। लेकिन बच्चे रोक रहे हैं। उन्हें कैसे समझाएं।'
इंदौर से कृष्णदास 'कौशल' ने लिखा— 'हमारे देश जैसा शायद ही कहीं विचित्र आर्थिक-तंत्र होगा। महंगाई रोकने के लिए रिजर्व बैंक बार-बार ब्याज दरें बढ़ाता है। पेट्रोल कंपनियां बार-बार दाम बढ़ाकर पानी फेर देती हैं।'
उदयपुर से प्रवीण भनोत ने लिखा— 'केन्द्र सरकार झूठी है। वह कहती है पेट्रोल की कीमतों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। जबकि उसका पूरा नियंत्रण है। पिछली बार कुछ राज्यों में चुनाव होने वाले थे। घाटा उठाकर भी तेल कंपनियां दाम बढ़ा नहीं पा रही थीं। क्यों? चुनाव हो गए तो ये कंपनियां एक दिन भी नहीं रुकी। इन्हें चुनाव होने तक कौन रोक रहा था, क्या जनता नहीं जानती?'
कोटा से इंद्र मोहन थपलियाल ने लिखा— 'तेल कंपनियों से सरकार की साठगांठ साफ समझ में आती है। पेट्रोल के दाम कंपनियों को बढ़ाने है, लेकिन लोगों को मानसिक रूप से तैयार करने का काम सरकार करती है। कुछ दिनों पहले से ही मंत्रियों के बयान छपने लगते हैं। इस बार भी कंपनियों ने पेट्रोल के दाम ३ नवम्बर को बढ़ाए थे लेकिन पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी का बयान २२ अक्टूबर को ही अखबारों में प्रकाशित हो गया।'
भोपाल से संदीप राठोड़ ने लिखा— 'पेट्रोल की कीमतों को सरकार क्यों रोकेगी? उसकी तो चांदी ही चांदी है। एक ही झाटके में करोड़ों रु. का कर सरकारी खजाने को भर देता है। पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सही कहा— अगर सरकार पेट्रोल पर करों का मोह छोड़ दे, तो आज जनता को २३.३७ रु. लीटर पेट्रोल मिल सकता है।'
जोधपुर से के.एल. पंवार ने लिखा— 'पेट्रोल की कीमतों को अन्तरराष्ट्रीय बाजार की कीमतों से जोडऩा एक सही तर्क तभी होगा, जब अन्य पेट्रो उत्पादों के दाम भी बढ़े। केरोसिन के दाम इसलिए नहीं बढ़ते, क्योंकि वह गरीबों के लिए है। डीजल इसलिए महंगा नहीं कर सकते, क्योंकि ट्रक मालिकों की लॉबी बहुत मजबूत है। पेट्रोल के उपभोक्ता असंगठित हैं। सबसे ज्यादा मार इसी वर्ग पर पड़ रही है।'
ग्वालियर से असीम गुप्ता ने लिखा— 'तेल कंपनियां पेट्रोल के दाम बढ़ाने से पहले हर बार घाटे का तर्क देती है। कोई इनकी बैलेंस शीट तो देखें। करोड़ों का मुनाफा कमा रही है।'
उदयपुर से शरद माथुर ने लिखा— 'चीन ने महंगाई को कैसे काबू में किया, इससे भारत को सीखना चाहिए। चीन ने मुक्त बाजार के दौर में भी मूल्य नियंत्रण की नीति अपनाई। कंपनियों को दो टूक आदेश दिया कि किसी भी सूरत में 5 फीसदी से ज्यादा कीमतें नहीं बढ़ाई जाएंगी।'
अलवर से सुरेश यादव के अनुसार— 'अच्छे मानसून और गोदाम भरे होने के बावजूद महंगाई बढ़ी। साफ है कि जमाखोरों, कालाबाजारियों और बिचौलियों पर हमारी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।'
जबलपुर से शीतल मिश्र ने लिखा— 'इजरायलवासियों की तरह हमें भी महंगाई के विरोध में सड़कों पर उतरना चाहिए। केरल हाईकोर्ट ने सही टिप्पणी की—लोगों को राजनीतिक दलों से महंगाई से राहत का इंतजार नहीं करना चाहिए। खुद आगे आकर विरोध करना चाहिए। (पत्रिका: 5 नवम्बर)'
प्रिय पाठकगण! बेलगाम कीमतों और अनियंत्रित महंगाई पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी से न तो केन्द्र और न ही राज्य सरकारें बच सकती हैं। चुनाव के दौरान हर राजनीतिक दल महंगाई कम करने का राग अलापता है। जनता से वादे करता है और सत्ता हाथ में आते ही सब कुछ भूल जाता है। सौ दिन में महंगाई कम करने का वादा जनता भूली नहीं है। सरकार भूल गई है तो उसे याद दिलाने के लिए केरल हाईकोर्ट की टिप्पणी पर जनता को गौर करना चाहिए।
के विकास का प्रतीक है।
'मौत की ओर ले जा रही महंगाई' (पत्रिका: 5 नवम्बर) समाचार पढ़ा तो लगा केरल हाईकोर्ट ने मुझ जैसे करोड़ों भारतवासियों के दिल की बात कह दी। यह प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जयपुर से श्याम सिंह आढ़ा ने लिखा— 'महंगाई ने पहले से ही मार रखा है। उस पर महीने-दो महीने से बढ़ती पेट्रोल की कीमतें मरे हुए पर लात मारने जैसी लगती है। आम आदमी महंगाई से कराह रहा है, लेकिन यूपीए सरकार कुंभकर्ण की तरह बेसुध होकर सोई हुई है।'
प्रिय पाठकगण! पिछले दिनों महंगाई बढऩे के समाचार मीडिया में लगातार सुर्खियां बने हुए थे। इसी बीच तेल कंपनियों ने भी फिर पेट्रोल की कीमतें बढ़ाने की घोषणा कर दी। सरकार में बैठे लोगों का मानना है कि आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ी है इसलिए वह महंगाई से इतना त्रस्त नहीं है, जितना मीडिया में बताया जा रहा है। तेल कंपनियों की सोच भी यही है कि लोग बढ़े हुए दाम चुकाने में सक्षम हैं। जिन पर महंगाई को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी है, वे अजीबो-गरीब तर्क देते हैं। वे कहते हैं खाद्य वस्तुओं के दाम बढऩा अर्थव्यवस्था के विकास का प्रतीक है।
क्या वाकई ऐसा है? क्या सचमुच महंगाई से लोग परेशान नहीं है? एक नमूना आपने ऊपर देखा। आइए देखते हैं, क्या कहते हैं आम नागरिक।
रायपुर से उमा धरेन्द्रा ने लिखा— 'हम पति-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं। दो बच्चे और सास-ससुर हैं। कुल छह सदस्यों का परिवार चलाना हम दोनों के लिए दिनोंदिन मुश्किल होता जा रहा है। ग्रोसरी, दूध व सब्जियों पर ही आधा वेतन खर्च हो जाता है। रही-सही कसर पेट्रोल निकाल देता है। बच्चों की स्कूल फीस कमर तोड़ देती है। बीमार सास के लिए बहुत महंगी दवाएं खरीदनी पड़ती है। ऊपर से कार की किस्त! हम दोनों अब कार बेचने की सोच रहे हैं। लेकिन बच्चे रोक रहे हैं। उन्हें कैसे समझाएं।'
इंदौर से कृष्णदास 'कौशल' ने लिखा— 'हमारे देश जैसा शायद ही कहीं विचित्र आर्थिक-तंत्र होगा। महंगाई रोकने के लिए रिजर्व बैंक बार-बार ब्याज दरें बढ़ाता है। पेट्रोल कंपनियां बार-बार दाम बढ़ाकर पानी फेर देती हैं।'
उदयपुर से प्रवीण भनोत ने लिखा— 'केन्द्र सरकार झूठी है। वह कहती है पेट्रोल की कीमतों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। जबकि उसका पूरा नियंत्रण है। पिछली बार कुछ राज्यों में चुनाव होने वाले थे। घाटा उठाकर भी तेल कंपनियां दाम बढ़ा नहीं पा रही थीं। क्यों? चुनाव हो गए तो ये कंपनियां एक दिन भी नहीं रुकी। इन्हें चुनाव होने तक कौन रोक रहा था, क्या जनता नहीं जानती?'
कोटा से इंद्र मोहन थपलियाल ने लिखा— 'तेल कंपनियों से सरकार की साठगांठ साफ समझ में आती है। पेट्रोल के दाम कंपनियों को बढ़ाने है, लेकिन लोगों को मानसिक रूप से तैयार करने का काम सरकार करती है। कुछ दिनों पहले से ही मंत्रियों के बयान छपने लगते हैं। इस बार भी कंपनियों ने पेट्रोल के दाम ३ नवम्बर को बढ़ाए थे लेकिन पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी का बयान २२ अक्टूबर को ही अखबारों में प्रकाशित हो गया।'
भोपाल से संदीप राठोड़ ने लिखा— 'पेट्रोल की कीमतों को सरकार क्यों रोकेगी? उसकी तो चांदी ही चांदी है। एक ही झाटके में करोड़ों रु. का कर सरकारी खजाने को भर देता है। पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सही कहा— अगर सरकार पेट्रोल पर करों का मोह छोड़ दे, तो आज जनता को २३.३७ रु. लीटर पेट्रोल मिल सकता है।'
जोधपुर से के.एल. पंवार ने लिखा— 'पेट्रोल की कीमतों को अन्तरराष्ट्रीय बाजार की कीमतों से जोडऩा एक सही तर्क तभी होगा, जब अन्य पेट्रो उत्पादों के दाम भी बढ़े। केरोसिन के दाम इसलिए नहीं बढ़ते, क्योंकि वह गरीबों के लिए है। डीजल इसलिए महंगा नहीं कर सकते, क्योंकि ट्रक मालिकों की लॉबी बहुत मजबूत है। पेट्रोल के उपभोक्ता असंगठित हैं। सबसे ज्यादा मार इसी वर्ग पर पड़ रही है।'
ग्वालियर से असीम गुप्ता ने लिखा— 'तेल कंपनियां पेट्रोल के दाम बढ़ाने से पहले हर बार घाटे का तर्क देती है। कोई इनकी बैलेंस शीट तो देखें। करोड़ों का मुनाफा कमा रही है।'
उदयपुर से शरद माथुर ने लिखा— 'चीन ने महंगाई को कैसे काबू में किया, इससे भारत को सीखना चाहिए। चीन ने मुक्त बाजार के दौर में भी मूल्य नियंत्रण की नीति अपनाई। कंपनियों को दो टूक आदेश दिया कि किसी भी सूरत में 5 फीसदी से ज्यादा कीमतें नहीं बढ़ाई जाएंगी।'
अलवर से सुरेश यादव के अनुसार— 'अच्छे मानसून और गोदाम भरे होने के बावजूद महंगाई बढ़ी। साफ है कि जमाखोरों, कालाबाजारियों और बिचौलियों पर हमारी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।'
जबलपुर से शीतल मिश्र ने लिखा— 'इजरायलवासियों की तरह हमें भी महंगाई के विरोध में सड़कों पर उतरना चाहिए। केरल हाईकोर्ट ने सही टिप्पणी की—लोगों को राजनीतिक दलों से महंगाई से राहत का इंतजार नहीं करना चाहिए। खुद आगे आकर विरोध करना चाहिए। (पत्रिका: 5 नवम्बर)'
प्रिय पाठकगण! बेलगाम कीमतों और अनियंत्रित महंगाई पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी से न तो केन्द्र और न ही राज्य सरकारें बच सकती हैं। चुनाव के दौरान हर राजनीतिक दल महंगाई कम करने का राग अलापता है। जनता से वादे करता है और सत्ता हाथ में आते ही सब कुछ भूल जाता है। सौ दिन में महंगाई कम करने का वादा जनता भूली नहीं है। सरकार भूल गई है तो उसे याद दिलाने के लिए केरल हाईकोर्ट की टिप्पणी पर जनता को गौर करना चाहिए।
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