RSS

लोकपाल जनता का या सरकार का!

काफी जद्दोजहद के बाद लोकपाल विधेयक का नया मसौदा लोकसभा में पेश किया गया है। चर्चा के लिए खास तौर पर संसद सत्र की अवधि बढ़ाई गई। अब इस पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं। अन्ना हजारे इसे कमजोर बिल बताकर ठुकरा चुके। सरकार ने भी अपना रुख सख्त कर रखा है। दोनों पक्ष अड़े हैं। आखिर क्या होगा समाधान? पाठकों की प्रतिक्रियाओं में ऐसे ही प्रश्न हैं तो उनके कुछ समाधान भी हैं।

प्रिय पाठकगण! देश में भ्रष्टाचार को लेकर जो फिक्रमंद हैं, उनके जेहन में आज यही सवाल उठ रहा है—क्या लोकपाल विधेयक पारित हो पाएगा? या पिछले 43  साल से इस विधेयक का जो हश्र होता आया है, वही इस बार भी होने जा रहा है। सरकार ने काफी जद्दोजहद के बाद नया मसौदा लोकसभा में पेश किया। चर्चा के लिए खास तौर पर सत्र की अवधि बढ़ाई गई। अब पूरे देश की निगाहें टिकी हैं। यह ऐतिहासिक विधेयक कब, कैसे और किस रूप में पारित होगा। क्या यह एक मजबूत लोकपाल विधेयक है? अन्ना हजारे इसे कमजोर बिल बताकर ठुकरा चुके। सरकार ने भी अपना रुख सख्त कर रखा है। दोनों पक्ष अड़े हैं। इधर विभिन्न राजनीतिक दलों के अपने-अपने पेंच हैं। आखिर क्या होगा समाधान? होगा भी या नहीं। हो तो क्या होना चाहिए? पाठकों की प्रतिक्रियाओं में ऐसे ही प्रश्न हैं तो उनके कुछ समाधान भी हैं।
भोपाल से रवीन्द्र एस. मलैया ने लिखा— 'लोकपाल के लिए हमने 43 वर्षों का लम्बा इन्तजार किया तो क्यों नहीं हम नए साल पर एक मजबूत और प्रभावी लोकपाल के तोहफे की उम्मीद करें। लेकिन सरकार ने हमें तोहफे की बजाय ठेंगा बताने की तैयारी कर रखी है। उसने जो बिल पेश किया है, उसमें सब कुछ है—लोकपाल नहीं। जिस लोकपाल के पास न प्रशासनिक न वित्तीय अधिकार हों, वह क्या खाक भ्रष्टाचार मिटाएगा?'
जयपुर से गुणप्रकाश विजयवर्गीय ने लिखा— 'यह जनभावनाओं का लोकपाल नहीं, जिसके लिए अन्ना हजारे संघर्ष कर रहे हैं। सरकार ने लोकतंत्र और संसदीय मर्यादाओं की आड़ लेकर इसे मकड़ी का जाल बना दिया है। जिस संसद की बार-बार दुहाई दी जा रही है, उसे चुना किसने है। अन्ना हजारे कोई चार-पांच लोगों के आन्दोलन का नाम नहीं, यह जन-आन्दोलन है, जिसकी शक्ति नेताओं को दिखाई नहीं पड़ रही है।'
रायपुर से सुशीला त्यागी ने लिखा— 'अब भी वक्त है। सरकार हमारी भावनाओं को समझो। हम भ्रष्टाचार पर कोई समझाौता नहीं चाहते। भ्रष्टाचार का खात्मा करने के लिए अगर एक मजबूत लोकपाल के सर्वशक्तिमान बन जाने का अंदेशा है तो एकबारगी हमें वह भी मंजूर है।'
अजमेर से रोहित, दिव्या और मनीष ने लिखा— 'हमें भ्रष्ट राजनीतिक नेता बिल्कुल मंजूर नहीं। इन्हीं की वजह से पूरे देश में करप्शन फैला हुआ है।'
कोटा से हिमांशु गोयल ने लिखा— 'अन्ना हजारे के खिलाफ सारे नेता पार्टी लाइन भूलकर एक हो गए। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, जनता दल-यू, यहां तक कि कम्युनिस्ट पार्टी व भाजपा के नेता भी एक सुर में बोल रहे हैं। क्या कभी आपने ऐसी एकता देखी? सभी को अन्ना का डर सता रहा है।'
प्रिय पाठकगण! पाठकों ने नए 'लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक-2011' के प्रावधानों पर खुलकर प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं, जो इस ज्वलन्त मुद्दे के अनेक पहलुओं पर प्रकाश डालती हैं। साथ ही उनके इस दृष्टिकोण को भी स्पष्ट करती है कि भ्रष्टाचार का खात्मा जरूरी है इसलिए सशक्त लोकपाल भी जरूरी है।
इंदौर से अनिल देशमुख ने लिखा— 'लोकपाल विधेयक के आधार पर राज्यों में लोकायुक्त बनाने का प्रावधान संविधान सम्मत नहीं है। इससे संघीय ढांचे पर असर पड़ेगा। इसके तहत राज्यों से कानून बनाने की शक्तियां छीन ली गई हैं। इस प्रावधान को अदालत से चुनौती मिलना तय है। यानी बिल अटक जाएगा।'
उज्जैन से दीपेन्द्र महर्षि ने लिखा— 'लोकपाल में आरक्षण का पेंच डालकर इसे ठंडे बस्ते में डालने की चाल रची गई है। इसके लिए लोकसभा में तीन-चौथाई सदस्यों की सहमति जरूरी है, जो संभव नहीं लगती।'
उदयपुर से राजेन्द्र पूर्बिया ने लिखा— 'लोकपाल विधेयक में झाूठी शिकायत करने पर एक साल की सजा व एक लाख का जुर्माना शिकायतकर्ता पर थोपा गया है। दूसरी तरफ शिकायत झाूठी पाई जाने पर अफसर का मुकदमा सरकार लड़ेगी और उसका पूरा खर्च उठाएगी। ताकतवर नौकरशाही अपने खिलाफ शिकायतों को किस तरह झाूठी साबित कर देती है, यह किसी से छिपा नहीं है। क्या कोई ऐसे भ्रष्ट और ताकतवर अफसर के खिलाफ शिकायत करने की हिम्मत करेगा?'
ग्वालियर से स्वप्नदास गुप्ता ने लिखा— 'बात-बात पर आरक्षण का राग अलापने वाले नेता कायर और डरपोक हैं। इन नेताओं की सुरक्षा करने वाले बॉडीगार्ड के लिए ये कभी आरक्षण की मांग नहीं करते। ये सेना में भर्ती के लिए भी कभी आरक्षण की मांग नहीं करते।'
जोधपुर से अरविन्द सोलंकी ने लिखा— 'भ्रष्टाचार के मामलों में सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव जांच की प्रक्रिया है। जांच करने वाली प्रमुख एजेन्सी सीबीआई सरकार के नियंत्रण में है। यानी भ्रष्टाचार के खिलाफ समूची जांच सरकार के नियंत्रण में रहेगी न कि लोकपाल के नियंत्रण में।'
सीकर से श्याममनोहर शर्मा ने लिखा— ''लोकपाल बिल को लेकर कुछ नेता किस तरह सांसदों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं ये इनके बयानों से साफ जाहिर है (पत्रिका: 22 दिसंबर) मुलायम सिंह ने कहा—लोकपाल आ जाएगा तो एस.पी., डी.एम., दरोगा जब चाहेंगे हमें जेल भेज देंगे। लालू यादव बोले— ये लोग जब चाहेंगे सांसदों को मारेंगे-पीटेंगे। हमारी इज्जत नहीं रहेगी। जबकि हकीकत यह है कि लोकपाल से सिर्फ भ्रष्ट नेता को खतरा है। मगर इनके बयानों से लगता है लोकपाल के नाम से ही इनके पसीने छूट रहे हैं।'
जबलपुर से ब्रजेन्द्र मिश्रा ने लिखा— 'लोकपाल बिल पर अन्ना टीम को फिलहाल टकराव छोड़कर बिल को पारित होने तक खामोश रहना चाहिए। एक बार बिल पारित तो हो। फिर मजबूत लोकपाल की लड़ाई लड़ी जा सकती है।'
प्रिय पाठकगण! पाठकों के पत्रों का सार है कि लोकपाल विधेयक पर चर्चा खूब हो चुकी। इसकी अच्छाइयों और कमियों पर देश में साल भर से बहस चल रही है। अब यह बिल पारित होना चाहिए। सरकार और सांसद देश को ऐसा लोकपाल दे जो भ्रष्टाचार का खात्मा करने में सक्षम हो। यह तभी संभव है जब लोकपाल मजबूत और पर्याप्त अधिकारों से सम्पन्न हो।

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

0 comments: