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ऑन-लाइन विचारों पर गाज!

घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोपों से बुरी तरह घिरी सरकार को हाल ही एफ.डी.आई. के मुद्दे पर मात खानी पड़ी। इधर लोकपाल को लेकर भी वह चौतरफा घिरी हुई है। ऐसे में सोशल मीडिया पर हाथ डालना बर्र के छत्ते को छेडऩे जैसा है। यही कारण है कि आज पूरी नेटवर्किंग सोसाइटी सरकार से नाराज है और उस पर जोरदार प्रहार कर रही है।


आई.टी. मंत्री कपिल सिब्बल का बयान (नेट पर नकेल कसेगी सरकार पत्रिका: 7 दिसंबर) पढ़कर बहुत कोफ्त हुई। सिब्बल केन्द्र सरकार की बची-खुची साख को भी पलीता लगा रहे हैं। उन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर लगाम कसने की बात उस वक्त कही, जब केन्द्र सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ निम्नतर स्तर पर है। घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोपों से बुरी तरह घिरी सरकार को हाल ही एफ.डी.आई. के मुद्दे पर मात खानी पड़ी। इधर लोकपाल को लेकर भी वह चौतरफा घिरी हुई है। ऐसे में सोशल मीडिया पर हाथ डालना बर्र के छत्ते को छेडऩे जैसा है। यही कारण है कि आज पूरी नेटवर्किंग सोसाइटी सरकार से नाराज है और उस पर जोरदार प्रहार कर रही है।'
जयपुर से श्याम बिहारी माथुर ने उक्त प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इन शब्दों में आक्रोश जाहिर किया— 'कपिल सिब्बल पहले भी बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के आन्दोलनों में सरकार की किरकिरी करा चुके। अब सोशल मीडिया पर हमला बोलकर उन्होंने न केवल कांग्रेस बल्कि यूपीए के अन्य घटक दलों को भी मुश्किल में डाल दिया है।'
प्रिय पाठकगण! पिछले दिनों केन्द्र सरकार के सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने फेसबुक, गूगल आदि वेबसाइट्स संचालकों को बुलाकर चेतावनी दी कि राजनेताओं (कांग्रेस) के बारे में की गई आपत्तिजनक टिप्पणियां हटाई जाएं। अगर वेबसाइट्स कंपनियां कोई कदम नहीं उठाएंगी तो सरकार कदम उठाएगी। प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इस सोशल मीडिया पर सरकारी नियंत्रण के विरोध में कहा गया कि सरकार साम्प्रदायिकता या संवेदनशीलता की आड़ लेकर विरोधी स्वरों को दबाना चाहती है। हाल ही में फेसबुक पर भावनाओं को भड़काने वाला एक पोस्ट किया गया था जिसे तत्काल हटा दिया गया। परन्तु ऐसी घटनाओं के बहाने सरकार आपत्तिजनक सामग्री की बजाय अपनी आलोचनाओं पर रोक लगाना चाहती है। यह स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर कुठाराघात है। पाठकों की कुछ और प्रतिक्रियाएं भी यहां दी जा रही हैं, जो इस ज्वलंत मुद्दे के कई पहलुओं को स्पष्ट करती हैं।
रायपुर से हरिश सब्बरवाल ने लिखा— 'इसमें दो राय नहीं कि राष्ट्रीय सुरक्षा और संवेदनाओं को भड़काने वाली सामग्री तत्काल हटाई जानी चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि अपवाद स्वरूप ही ऐसी सामग्रियां अपलोड होती हैं। किसी सिरफिरे ने कुछ लिख भी दिया तो उसके विपरीत प्रतिक्रियाओं का दबाव ही  प्रबल रहता है कि वेबसाइट्स को यह सामग्री हटानी पड़ती है।'
भोपाल से देवेन्द्र भदौरिया ने लिखा— 'नेटवर्किंग की दुनिया विराट और विशाल है जिसमें विविधताओं का अम्बार है। इसमें ज्यादातर युवा अपनी अभिव्यक्ति और सपनों पर फोकस करते हैं। किसे फुरसत है भड़काने वाले मुद्दों पर उलझाने की?'
कोटा से स्वप्निल जोशी ने लिखा— 'सरकार नाहक घबरा रही है। नेटवर्किंग सोसाइटी खुले दिमाग वालों की है। उसमें संकीर्णता को कोई जगह नहीं। हां, भ्रष्टाचारियों को लेकर इधर खूब कमेन्ट्स किए जा रहे हैं।'
इंदौर से सुशील चन्द्र जैन ने लिखा— 'सरकार अपनी आलोचना को लेकर कितनी डरी हुई है, यह इसी से साबित है कि गूगल को पेश 358 शिकायतों में से 255 तो उसकी आलोचना से सम्बंधित सामग्री ही पोस्ट है। इनमें संवेदनशील मुद्दों पर महज 8 पोस्टें थीं जिसे सरकार की शिकायत के बाद हटा दिया गया।'
उदयपुर से आलोक श्रीवास्तव ने लिखा— 'नेट को बदनाम करने की क्या जरूरत है। क्या 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, गोपालगढ़ में साम्प्रदायिक हिंसा और संसद व मुम्बई में आतंकी हमले के लिए फेसबुक जिम्मेदार है?'
अलवर से रागिनी शर्मा ने लिखा— 'सोशल नेटवर्किंग पर सेंसर लगाने की सरकार की मंशा भांपते ही दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों ने 'राइट टू इंटरनेट एंड सोशलाइज' पेज बनाकर अपलोड किया है। इसमें तेजी से युवा जुड़ते जा रहे हैं।'
जोधपुर से डा. सौरभ ने लिखा— 'सरकार ने अगर साइबर विचारों पर पहरेदारी बिठाई तो उसकी दुनिया भर में बदनामी होगी। चीन ने जिस तरह से सायबर वल्र्ड पर सेन्सर लगा रखा है, उसे कोई पसंद नहीं करता।'
अजमेर से प्रो. देवकृष्ण शर्मा ने लिखा— 'अभिव्यक्ति का खुलापन कई समस्याओं का समाधान स्वत: कर देता है। समाज में यह दृष्टिकोण 'सेफ्टी वाल्व' का काम करता है। इससे डरने की जरूरत नहीं है।'
उज्जैन से डी.डी. भट्ट ने लिखा— 'सोशल मीडिया से वही घबराते हैं जो या तो भ्रष्टाचारी हैं या फिर अत्याचारी। आम जनता के लिए यह खूबसूरत मंच है।'
जबलपुर से मनमोहन 'विश्वास' ने लिखा— 'भारत में फेसबुक और ट्विटर के करीब 8 करोड़ उपभोक्ता हैं। इंटरनेट, मोबाइल आदि को जोड़ें तो करीब 20  करोड़ भारतीय इस सोशल मीडिया से जुड़े हैं। यह एक बहुत बड़ी ताकत है जिससे सरकार का डरना लाजिमी है।'
जबलपुर से दिव्या मिश्रा ने लिखा— 'आज का नेटवर्किंग युवा जागरूक और जिम्मेदार है। वह हिंसा भड़काने व घृणा फैलाने वाली सामग्री को पसंद नहीं करता।'
ग्वालियर से विजेता सिंह ने लिखा— 'बेहतर होगा सरकार सेंसर की बजाय लोगों को आपत्तिजनक सामग्री हटाने के विकल्पों के लिए शिक्षित व प्रेरित करे। ऐसे आइटम हटाने के लिए 'रिपोर्ट एब्यूज' का विकल्प मौजूद है। पहले कंटेट पर क्लिक करें, फिर रिपोर्ट पर एब्यूज पर क्लिक करें। ज्यादा उपभोक्ता जब ऐसा करेंगे तो साइट अपने आप उसे हटा देने के लिए मजबूर हो जाएगी।'
प्रिय पाठकगण! अभिव्यक्ति को बाधित करके कभी महान लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता। हमें असहमति को बर्दाश्त करना सीखना होगा। नुकसानदेह व असत्य सामग्री को नेट पर अस्वीकार करने के हमारे पास विकल्प मौजूद हैं। जैसा कि विजेता सिंह ने लिखा लोगों को इसकी जानकारी मिलनी चाहिए और इसके इस्तेमाल के लिए प्रेरित करना चाहिए। न कि सेंसर की तलवार चलानी चाहिए।

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