'ना-ना करते आखिर चीन ने यह मंजूर कर लिया कि वह ब्रह्मपुत्र नदी पर एक अरब 20 करोड़ डॉलर की लागत से विश्व का सबसे बड़ा बांध बनाने जा रहा है।'
जबलपुर से डॉ. पी.के. वाजपेयी आगे लिखते हैं- 'पांच साल पहले खुफिया सैटेलाइट के आधार पर सबसे पहले अमरीका ने बताया कि चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बना रहा है। इस पर भारत सरकार ने विरोध जताया तो चीन ने भरोसा दिलाया कि वह कोई बांध नहीं बना रहा। उल्टे अमरीका की इस सूचना को दुष्प्रचार बताया, लेकिन धीरे-धीरे छनकर जब सारी जानकारियां विश्व के सामने आ गईं तो अब चीन निर्लज्जतापूर्वक यह स्वीकार कर रहा है कि हां वह ब्रह्मपुत्र पर बांध बना रहा है। चीन विश्वसनीय देश न कभी था न कभी रहेगा। कम से कम भारत के संदर्भ में यह निष्कर्ष सौ फीसदी सही है।'
कोटा से योगेश गोयल ने लिखा- 'पत्रिका के 24 जून के अंक में अफसर करीम ने सही लिखा (चीन का हथियार पानी) कि ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा बड़ा बांध बनाने से भारत और बांग्लादेश में नदी के प्रवाह पर विपरीत असर पड़ेगा। यह नदी दोनों देशों की अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा स्रोत है। नदी का प्रवाह बाधित होने से दोनों देशों के नागरिकों की रोजमर्रा की जिन्दगी पर असर पड़ेगा। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने केन्द्र सरकार से अनुरोध किया कि वह दोनों देशों के बीच जल संसाधनों के मुद्दे पर नदी-जल संधि पर दस्तखत करें क्योंकि ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने से असम समेत उत्तर पूर्व के राज्यों में पानी की उपलब्धता पर विपरीत असर पड़ेगा।'
जयपुर से प्रसून श्रीवास्तव के अनुसार 'एक तरफ ब्रह्मपुत्र नदी में जल- उपलब्धता को लेकर भारत में विभिन्न स्तरों पर चिन्ता व्यक्त की जा रही है, दूसरी तरफ हमारे विदेश मंत्री हैं जो चैन की बंसी बजा रहे हैं। विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा का कहना है कि हमने अपने सूत्रों से पता लगा लिया कि चीन की इस हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना से नदी का प्रवाह नहीं रुकेगा। मेरा विश्वास है कि तुरन्त खतरे का कोई कारण नहीं है। मैं विदेश मंत्रीजी से यह जानना चाहता हूं, उनके विश्वास का आधार क्या है? बीसियों बार हम चीन से धोखा खा चुके हैं। वह कभी हमारा विश्वसनीय दोस्त नहीं रहा। हमारे ही रक्षा मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट (पत्रिका 29 जून) में साफ कहा कि हमारे लिए पाकिस्तान नहीं, चीन सबसे बड़ा खतरा है। फिर हमारे विदेश मंत्री किस खामख्याली में हैं।'
प्रिय पाठकगण! भारत की सीमा के निकट तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन एक विशालकाय बांध का निर्माण कर रहा है। ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत से होकर भारत में प्रवेश करती है। शुरू में इनकार के बाद चीन ने अब स्वीकार कर लिया है कि वह इस पर बांध बना रहा है और भारत को इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है। चीन का तर्क है कि यह महज एक 'रन ऑफ द रीवर' योजना है जिसके तहत पानी को रोककर बिजली उत्पादित की जाएगी और बाद में पानी को पुन: नदी में छोड़ दिया जाएगा। भारत सरकार चीन के इस तर्क से आश्वस्त है, लेकिन पाठक नहीं। ज्यादातर पाठकों का कहना है कि चीन भरोसे लायक नहीं है।
भिलाई से देशराज गुप्ता ने लिखा- 'चीन की नीयत पर शक करना इसलिए जायज है कि अगर वह ब्रह्मपुत्र पर बांध बना रहा था तो इस तथ्य को छुपाता क्यों रहा? और अब जब सारे तथ्य नेशनल रिमोट सेन्सिंग एजेंसी ने कमेटी ऑफ सिक्रेटरीज के सामने रख दिए हैं तब भी चीन बांध को लेकर सारी सूचनाएं जाहिर नहीं कर रहा। इसके विपरीत वह भारत को बरगलाने की कोशिश कर रहा है। चीन का कहना है कि इस परियोजना का उद्देश्य सिर्फ बिजली उत्पादन करना है, जबकि कई विशेषज्ञों का मानना है कि चीन बिजली परियोजना की आड़ में ब्रह्मपुत्र की धारा को मोड़कर उत्तरी चीन में ले जाना चाहता है। उसका उद्देश्य ब्रह्मपुत्र के पानी को पम्प कर उत्तरी चीन की पूरी तरह सूख चुकी हुआंग हो नदी को पुनर्जीवित करना है। ऐसा कर वह अपने शिजियांग के रेगिस्तानी इलाके को भी सर-सब्ज कर लेगा।'
इंदौर से आशीष पंवार ने लिखा- 'चीन के लिए अपने राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं- यहां तक तो किसी को ऐतराज नहीं हो सकता, लेकिन वह दूसरे देशों के राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करे- यह हमें मंजूर नहीं। चीन को ब्रह्मपुत्र की धारा मोड़ने का कोई अधिकार नहीं है। हमें उसकी बिजली परियोजना पर नजर रखनी होगी। हमारे हिस्से के पानी पर आंच नहीं आए, इसकी पुख्ता व्यवस्था अभी से कर ली जाए।'
भोपाल से सुभाष तोमर ने लिखा- 'चीन की यह परियोजना उसके उस अभियान का एक हिस्सा भर है, जो वह तिब्बत के विशाल जल भंडारों पर नियंत्रण करने के लिए पूरा करना चाहता है। चीन ने तिब्बत में मेकांग नदी पर बड़े-बड़े बांध बनाकर सारा पानी निचोड़ लिया। अगर चीन इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो वह दक्षिण-पूर्व एशिया के कई राष्ट्रों के हितों को प्रभावित कर सकता है। इसलिए भारत को चीन से कूटनीतिक स्तर पर भी निपटना होगा। हमें नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश, थाइलैंड, कंबोडिया, वियतनाम, लाओस आदि देशों को अपने साथ लेना होगा।'
उदयपुर से कल्याण चन्द्र शर्मा ने लिखा- 'चीन की इस परियोजना को अब तक गुप्त रखने से उसकी बदनीयती साफ झलकती है। वह पानी को भारत के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है। ब्रह्मपुत्र के पानी को रोककर सूखे के हालात पैदा कर सकता है तो अचानक पानी छोड़कर बाढ़ की स्थिति पैदा कर सकता है।'
जोधपुर से विक्रम पुरोहित ने लिखा- 'यह सही है कि आज बाजार का युग है, इसलिए हमें सामरिक मसलों में उलझने की बजाय आर्थिक और विकास के मुद्दों पर सहयोग की बात करनी चाहिए, लेकिन बात जब राष्ट्रीय हितों की हो तो हमें भी चीन की तरह सर्वोपरिता का सिद्धान्त अपनाना चाहिए। आखिर ब्रह्मपुत्र हमारी न केवल अर्थ-तंत्र की बल्कि सभ्यता और सांस्कृतिक तंत्र की भी रीढ़ है। अरुणाचल पर नजर गड़ाते हुए अब चीन की नजर ब्रह्मपुत्र के पानी पर भी पड़ना हमारे लिए शुभ संकेत नहीं है।'
जबलपुर से डॉ. पी.के. वाजपेयी आगे लिखते हैं- 'पांच साल पहले खुफिया सैटेलाइट के आधार पर सबसे पहले अमरीका ने बताया कि चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बना रहा है। इस पर भारत सरकार ने विरोध जताया तो चीन ने भरोसा दिलाया कि वह कोई बांध नहीं बना रहा। उल्टे अमरीका की इस सूचना को दुष्प्रचार बताया, लेकिन धीरे-धीरे छनकर जब सारी जानकारियां विश्व के सामने आ गईं तो अब चीन निर्लज्जतापूर्वक यह स्वीकार कर रहा है कि हां वह ब्रह्मपुत्र पर बांध बना रहा है। चीन विश्वसनीय देश न कभी था न कभी रहेगा। कम से कम भारत के संदर्भ में यह निष्कर्ष सौ फीसदी सही है।'
कोटा से योगेश गोयल ने लिखा- 'पत्रिका के 24 जून के अंक में अफसर करीम ने सही लिखा (चीन का हथियार पानी) कि ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा बड़ा बांध बनाने से भारत और बांग्लादेश में नदी के प्रवाह पर विपरीत असर पड़ेगा। यह नदी दोनों देशों की अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा स्रोत है। नदी का प्रवाह बाधित होने से दोनों देशों के नागरिकों की रोजमर्रा की जिन्दगी पर असर पड़ेगा। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने केन्द्र सरकार से अनुरोध किया कि वह दोनों देशों के बीच जल संसाधनों के मुद्दे पर नदी-जल संधि पर दस्तखत करें क्योंकि ब्रह्मपुत्र पर बांध बनाने से असम समेत उत्तर पूर्व के राज्यों में पानी की उपलब्धता पर विपरीत असर पड़ेगा।'
जयपुर से प्रसून श्रीवास्तव के अनुसार 'एक तरफ ब्रह्मपुत्र नदी में जल- उपलब्धता को लेकर भारत में विभिन्न स्तरों पर चिन्ता व्यक्त की जा रही है, दूसरी तरफ हमारे विदेश मंत्री हैं जो चैन की बंसी बजा रहे हैं। विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा का कहना है कि हमने अपने सूत्रों से पता लगा लिया कि चीन की इस हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजना से नदी का प्रवाह नहीं रुकेगा। मेरा विश्वास है कि तुरन्त खतरे का कोई कारण नहीं है। मैं विदेश मंत्रीजी से यह जानना चाहता हूं, उनके विश्वास का आधार क्या है? बीसियों बार हम चीन से धोखा खा चुके हैं। वह कभी हमारा विश्वसनीय दोस्त नहीं रहा। हमारे ही रक्षा मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट (पत्रिका 29 जून) में साफ कहा कि हमारे लिए पाकिस्तान नहीं, चीन सबसे बड़ा खतरा है। फिर हमारे विदेश मंत्री किस खामख्याली में हैं।'
प्रिय पाठकगण! भारत की सीमा के निकट तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन एक विशालकाय बांध का निर्माण कर रहा है। ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत से होकर भारत में प्रवेश करती है। शुरू में इनकार के बाद चीन ने अब स्वीकार कर लिया है कि वह इस पर बांध बना रहा है और भारत को इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है। चीन का तर्क है कि यह महज एक 'रन ऑफ द रीवर' योजना है जिसके तहत पानी को रोककर बिजली उत्पादित की जाएगी और बाद में पानी को पुन: नदी में छोड़ दिया जाएगा। भारत सरकार चीन के इस तर्क से आश्वस्त है, लेकिन पाठक नहीं। ज्यादातर पाठकों का कहना है कि चीन भरोसे लायक नहीं है।
भिलाई से देशराज गुप्ता ने लिखा- 'चीन की नीयत पर शक करना इसलिए जायज है कि अगर वह ब्रह्मपुत्र पर बांध बना रहा था तो इस तथ्य को छुपाता क्यों रहा? और अब जब सारे तथ्य नेशनल रिमोट सेन्सिंग एजेंसी ने कमेटी ऑफ सिक्रेटरीज के सामने रख दिए हैं तब भी चीन बांध को लेकर सारी सूचनाएं जाहिर नहीं कर रहा। इसके विपरीत वह भारत को बरगलाने की कोशिश कर रहा है। चीन का कहना है कि इस परियोजना का उद्देश्य सिर्फ बिजली उत्पादन करना है, जबकि कई विशेषज्ञों का मानना है कि चीन बिजली परियोजना की आड़ में ब्रह्मपुत्र की धारा को मोड़कर उत्तरी चीन में ले जाना चाहता है। उसका उद्देश्य ब्रह्मपुत्र के पानी को पम्प कर उत्तरी चीन की पूरी तरह सूख चुकी हुआंग हो नदी को पुनर्जीवित करना है। ऐसा कर वह अपने शिजियांग के रेगिस्तानी इलाके को भी सर-सब्ज कर लेगा।'
इंदौर से आशीष पंवार ने लिखा- 'चीन के लिए अपने राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं- यहां तक तो किसी को ऐतराज नहीं हो सकता, लेकिन वह दूसरे देशों के राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करे- यह हमें मंजूर नहीं। चीन को ब्रह्मपुत्र की धारा मोड़ने का कोई अधिकार नहीं है। हमें उसकी बिजली परियोजना पर नजर रखनी होगी। हमारे हिस्से के पानी पर आंच नहीं आए, इसकी पुख्ता व्यवस्था अभी से कर ली जाए।'
भोपाल से सुभाष तोमर ने लिखा- 'चीन की यह परियोजना उसके उस अभियान का एक हिस्सा भर है, जो वह तिब्बत के विशाल जल भंडारों पर नियंत्रण करने के लिए पूरा करना चाहता है। चीन ने तिब्बत में मेकांग नदी पर बड़े-बड़े बांध बनाकर सारा पानी निचोड़ लिया। अगर चीन इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो वह दक्षिण-पूर्व एशिया के कई राष्ट्रों के हितों को प्रभावित कर सकता है। इसलिए भारत को चीन से कूटनीतिक स्तर पर भी निपटना होगा। हमें नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश, थाइलैंड, कंबोडिया, वियतनाम, लाओस आदि देशों को अपने साथ लेना होगा।'
उदयपुर से कल्याण चन्द्र शर्मा ने लिखा- 'चीन की इस परियोजना को अब तक गुप्त रखने से उसकी बदनीयती साफ झलकती है। वह पानी को भारत के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है। ब्रह्मपुत्र के पानी को रोककर सूखे के हालात पैदा कर सकता है तो अचानक पानी छोड़कर बाढ़ की स्थिति पैदा कर सकता है।'
जोधपुर से विक्रम पुरोहित ने लिखा- 'यह सही है कि आज बाजार का युग है, इसलिए हमें सामरिक मसलों में उलझने की बजाय आर्थिक और विकास के मुद्दों पर सहयोग की बात करनी चाहिए, लेकिन बात जब राष्ट्रीय हितों की हो तो हमें भी चीन की तरह सर्वोपरिता का सिद्धान्त अपनाना चाहिए। आखिर ब्रह्मपुत्र हमारी न केवल अर्थ-तंत्र की बल्कि सभ्यता और सांस्कृतिक तंत्र की भी रीढ़ है। अरुणाचल पर नजर गड़ाते हुए अब चीन की नजर ब्रह्मपुत्र के पानी पर भी पड़ना हमारे लिए शुभ संकेत नहीं है।'
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