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जनता का लोकपाल


(१)  'मैं 24 वर्षीय नवयुवक हूं। मुझे घोर आश्चर्य हुआ, जब मैंने पढ़ा कि लोकपाल विधेयक पिछले ४२ वर्षों से लोकसभा में अटका पड़ा है। देश में भ्रष्टाचार रोकने के लिए यह विधेयक पेश किया गया था। डॉ. राममनोहर लोहिया ने कहा था- जिन्दा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं कर सकती। धन्य हैं हम। 42 साल से चुप बैठे थे। ये तो अन्ना हजारे ने हमें झिझोंड़ दिया वरना न जाने और कितने वर्षों तक चुप रहते। हमारी खामोशी ने हमारा कितना अहित किया। हमारी गिनती भ्रष्ट राष्ट्रों में होती है। 20 लाख करोड़ रुपए तो हमने सिर्फ रिश्वतखोरी में गंवा दिए। 70 लाख करोड़ रुपए का काला धन विदेशी बैंकों में चला गया। इस सारी राशि से करोड़ों गरीबों की किस्मत चमक सकती थी। बहरहाल, देर आयद, दुरस्त आयद। भ्रष्टाचार के खिलाफ चेते हैं तो हमारी जिम्मेदारी बढ़ गई है।' 
दिव्यांशु डोभाल, जबलपुर

(२)  'भ्रष्टाचार इतना बड़ा मुद्दा था। पानी सिर से गुजर चुका था। सरकारें नाकारा हो चुकी थीं। हमें सूझ नहीं रहा था, क्या करें! न्यायपालिका, मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ता समय-समय पर दिशा दे रहे थे। जन-जागरण बढ़ा था, लेकिन 'एक्शन' के लिए किसी पथ-प्रदर्शक की जरूरत थी। वह हमें अन्ना हजारे के रूप में मिला।'
 रवीन्द्र कालरा, बीकानेर

  प्रिय पाठकगण! इन पत्रों के साथ ही अनेक पाठकों की प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई हैं। सभी का एक ही स्वर, भारत से भ्रष्टाचार भगाओ। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पाठक इस स्तंभ में बहुत मुखर होकर राय व्यक्त करते रहे हैं। इसलिए भ्रष्टाचार के खिलाफ चले अन्ना हजारे के अनशन पर पाठकों की प्रतिक्रियाओं का उफान स्वाभाविक है।
जोधपुर से माणिक्य पुरोहित ने लिखा- 'अन्ना हजारे के चार दिन के अनशन के दौरान सरकार ने मांगें मंजूर करने के लिए बहुत पैंतरेबाजी की, लेकिन अन्ना के दृढ़ इरादों ने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया।'
भोपाल से आरिफ अहमद के अनुसार- 'भ्रष्टाचार के खिलाफ अभी लम्बी जंग लड़नी है। सबसे पहले तो लोकपाल विधेयक का सही मसौदा तैयार हो, फिर यह उसी रूप में संसद से पारित हो। यह कार्य एक निश्चित समय-सीमा में हो। नेता और अफसरों का शक्तिशाली गठजोड़ इसमें कदम-कदम पर अड़ंगे लगाएगा।'
अलवर से सिद्धार्थ गुप्ता ने लिखा- 'सरकार को अन्ना हजारे की टीम ने जो जन लोकपाल विधेयक तैयार किया है, उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। सरकार ने जो विधेयक 1968 में लोकसभा में पेश किया था वह कमजोर है। इसमें लोकपाल को कोई शक्तियां ही नहीं दी गईं।'
उदयपुर से कीर्ति श्रीमाली ने लिखा- 'अगर राज्य सरकारें इरादा कर लें तो सख्त कानून बनाने से कोई नहीं रोक सकता। बिहार का उदाहरण सामने है। वह एक मात्र राज्य है जहां भ्रष्टाचारी की सम्पत्ति जब्त करने का कानून है, जिसे नीतीश कुमार की सरकार ने बनाया। अब मध्य प्रदेश ने भी यही पैटर्न अपनाया है।'
ग्वालियर से प्रदीप चौहान ने लिखा- 'जन लोकपाल बिल के तहत प्रधानमंत्री के खिलाफ लोकपाल कार्रवाई कर सकता है। यह संस्था यूरोप के कई देशों के 'ओम्बुड्समैन' जैसी शक्तिशाली होनी चाहिए।'
बैंगलूरु से यशराज मेहता ने लिखा- 'यह विधेयक जन लोकपाल को 'सुपर सरकार' बना देगा। प्रधानमंत्री और कई संवैधानिक प्रमुखों को लोकपाल की दया पर निर्भर होना पड़ेगा। इससे लोकतंत्र कमजोर होगा।'
सूरत से प्रेमशंकर 'उदासी' ने लिखा- 'लोकतंत्र की चिन्ता करने वालों को इस बात का जवाब देना चाहिए कि अब तक 8 बार सरकारी तथा 6 बार गैर सरकारी विधेयक के तौर पर पेश हो चुके लोकपाल बिल को लोकसभा ने आज तक पारित क्यों नहीं किया। स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 2004 में विधेयक को पारित करने का वादा कर भूल क्यों गए?'
इंदौर से सज्जन सिंह ने लिखा- 'भ्रष्टाचारियों, सावधान हो जाओ। जनता का लोकपाल आने वाला है। अब उसे कोई नहीं रोक सकता। दिल्ली के जंतर-मंतर से जो हुंकार उठी है वह मिस्र के तहरीर चौक जैसी है।'
उज्जैन से देशबंधु शर्मा ने लिखा- 'इस आंदोलन की सबसे बड़ी ताकत गांधीवादी तरीका था, जो पूरी तरह अहिंसक रहा। इससे साबित हुआ कि इस देश में कोई बड़ा आंदोलन तभी सफल हो सकता है, जब वह हिंसा से दूर हो। क्या नक्सलवादी इस आंदोलन से कोई सबक सीखेंगे?'
क्रिकेट कूटनीति
आशीब काबरा (जयपुर) ने लिखा- 'मुझे खुशी है, जब पूरा मीडिया भारत-पाकिस्तान मैच के मौके पर क्रिकेटमय हो चला था- लोगों में जुनून और भावनाओं का ज्वार पैदा किया जा रहा था, तब पत्रिका ने सिक्के के दूसरे पहलू की तरफ भी ध्यान खींचा। संपादकीय में 'क्रिकेट के अलावा' (30 मार्च) और पत्रिका व्यू में 'खेल के नाम पर साजिश' (2 अप्रेल) में जिन मुद्दों को उठाया गया था, वे हमारे वर्ल्ड -कप जीतने के बाद भी फीके नहीं पड़े हैं। खासतौर पर यह कि क्या भारत सरकार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को मैच देखने के लिए आमंत्रित करना चाहिए था? मेरा मानना है कि मुम्बई हमलों (26/11) के बाद हमारी सरकार ने जो संकल्प किया था उसे तोड़ दिया। सरकार ने ऐलान किया था कि जब तक पाकिस्तान मुम्बई हमलों के दोषियों को सजा नहीं देगा, हमारी उससे कोई बातचीत नहीं होगी। अफसोस! क्रिकेट कूटनीति के नाम पर हमारी सरकार ने घुटने टेक दिए। टीम इंडिया ने हमारा सिर ऊंचा किया, सरकार ने नीचा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुम्बई में मारे गए निर्दोष नागरिकों और पाकिस्तानी आतंकियों से मुकाबला करते शहीद हुए जवानों की आत्माएं हमसे सवाल पूछ रही होंगी। इधर हम क्रिकेट कूटनीति कर रहे हैं और उधर पाकिस्तान चीन के साथ मिलकर 778 किमी लंबी नियंत्रण रेखा के पास हमारी जड़ें खोद रहा है।'

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