एक पाठक की प्रतिक्रिया मिली- 'सीबीआई के पूर्व निदेशक डा। राजेन्द्र शेखर के अनुसार भारत सबसे भ्रष्ट 10 देशों की सूची में शामिल है। यहां 24 करोड़ लोग रोज भूखे सोते हैं और प्रतिवर्ष 26 हजार करोड़ रुपए की घूस दी जाती है।' (पत्रिका 7 नवम्बर)
पाठक ने आगे लिखा- 'मुझे लगता है, घूस का आंकड़ा काफी कम है। जिस देश में मधु कोड़ा जैसे राजनेता हों वहां 26 हजार करोड़ की राशि ऊंट के मुंह में जीरे समान है। अब तक का सबसे बड़ा राजनीतिक घोटाला एक पूर्व मुख्यमंत्री के नाम दर्ज हुआ है। अकेले मधु कोड़ा की 4 हजार करोड़ रुपए की सम्पत्ति का पता चलना इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि देश भ्रष्टाचार के महासागर में डुबकी लगा रहा है। एक मुख्यमंत्री रह चुका व्यक्ति ही दोनों हाथों से बटोरने में लगा हो, तो एक अरब से अधिक आबादी वाले देश में छोटी-बड़ी हैसियत के लाखों व्यक्तियों को काली कमाई करने से कौन रोक सकता है।'
प्रिय पाठकगण!
झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा इन दिनों मीडिया में सुर्खियों में हैं। पिछले दिनों आयकर विभाग ने देश भर में उनके अनेक ठिकानों पर छापे मारकर अरबों रुपए की बेहिसाबी सम्पत्ति का पता लगाया है। छापे की कार्रवाई के बाद वह बीमार हो गए और अस्पताल में भर्ती हैं। यह सही है कि इस मामले की अभी जांच चल रही है और पूरी वास्तविकता सामने आने के लिए हमें प्रतीक्षा करनी होगी लेकिन जो तथ्य सामने आए हैं वे मधु कोड़ा को प्राथमिक तौर पर दोषी सिद्ध करने के लिए काफी हैं। देखें, पाठक क्या कहते हैं।
डी.के. पालीवाल (उदयपुर) ने लिखा- '2004 में चुनाव आयोग को दिए ब्यौरे के मुताबिक मधु कोड़ा की सम्पत्ति सिर्फ 35 लाख रुपए की थी। पांच साल बाद 2009 में कोड़ा ने 30 करोड़ की सम्पत्ति घोषित की। और अब मधु कोड़ा व उनके साथियों की बेहिसाबी बेनामी सम्पत्ति की कीमत 5500 करोड़ रुपए बताई जा रही है। सिर्फ छह माह में उनकी सम्पत्ति 30 करोड़ से अरबों रुपए कैसे हो गई? इसका मतलब है मधु कोड़ा चुनाव आयोग की आंख में धूल झोंक रहे थे।'
एल.एल.बी. के विद्यार्थी दिनेश विजयवर्गीय (दयानंद विश्वविद्यालय) ने लिखा- 'सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद जनप्रतिनिधियों के लिए चुनाव आयोग ने सम्पत्ति का विवरण देना अनिवार्य कर रखा था। वरना चुनाव नहीं लड़ सकते। मधु कोड़ा ने अपनी अरबों की सम्पत्ति छिपाकर इस नियम की धज्जियां उड़ा दी। तो क्या यह माना जाए कि नेतागण चुनाव पूर्व जो सम्पत्ति घोषित करते हैं वह कानून और जनता की आंख में धूल झोंकने के लिए है?'
डा. पुरुषोत्तम जैन (कोटा) ने लिखा- 'कहते हैं कोड़ा पन्द्रह साल पहले तक एक मामूली मजदूर थे। एक मामूली आदमी अरबपति नहीं बन सकता, यह जरू री नहीं। लेकिन कैसे बना यह तो पता चलना चाहिए। कोड़ा दो बार खान मंत्री और एक बार मुख्यमंत्री रहे। यह अवधि कुल मिलाकर पांच साल है। इतने कम समय में उनके पास इतनी दौलत कहां से आई कि वे विदेशों में खानें खरीद सकें?'
दिवाकर शर्मा (बीकानेर) के अनुसार- 'झारखण्ड राज्य का सालाना बजट 8 हजार करोड़ रुपए है। जिसमें 4 हजार करोड़ रुपए का घोटाला अकेले पूर्व मुख्यमंत्री पर आरोपित है। जनता का धन इस कदर लूटने का यह अपूर्व मामला है, जिसकी सारी परतें जनता के सामने उधेरनी होंगी।'
अलवर से रजनी शर्मा ने लिखा- 'कानून का कोड़ा पड़ा तो पूर्व मुख्यमंत्री की तबीयत बिगड़ गई और वे अस्पताल में भर्ती हो गए।'
अजमेर से गजेन्द्र उपाध्याय ने लिखा- 'जिस तेजी से मधु कोड़ा ने धन कमाया वह जाहिर तौर पर भ्रष्ट तरीकों के बगैर संभव नहीं था। लेकिन अफसोस इस बात का है कि समय रहते राजनीतिक दल, सतर्कता एजेंसियां और खोजी पत्रकारिता किसी ने अपना कत्र्तव्य नहीं निभाया। अन्यथा मधु कोड़ा को काफी पहले पकड़ा जा सकता था।'
अहमदाबाद से शालिनी डागा ने लिखा- 'देश के अन्य बड़े घोटालों की तरह यह घोटाला भी दब जाएगा। बड़े-बड़े नेताओं का कुछ नहीं बिगड़ता। सभी राजनीतिक दलों में मधु कोड़ा जैसे लोग बैठे हैं।'
उदयपुर से देवेन्द्र सी.सैनी के अनुसार- 'रिश्वत लेकर संसद में सवाल पूछने वाले दस सांसदों की सदस्यता खत्म कर दी गई थी। लेकिन उन्हीं में से कुछ सांसद चुनकर फिर संसद में आ गए हैं।'
गीता भार्गव (जयपुर) के अनुसार- 'पूर्व लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ठीक ही कहते हैं कि भ्रष्टाचार आतंकवाद से भी बड़ी समस्या है। मेरी राय में देश में राजनीतिक भ्रष्टाचार की समस्या सबसे बड़ी है। भ्रष्टाचार के इस नाग को कुचलने की जरू रत है, लेकिन कुचले कौन?'
प्रिय पाठकगण!
अनेक पाठकों ने यही सवाल उठाया है कि भ्रष्टाचार को आखिर रोके कौन? जनता और सिर्फ जनता। कानून, न्यायपालिका और मीडिया इसमें योगदान कर सकते हैं। कभी जल्दी कभी देर से कानून का शिकंजा सब पर कसता है। दागी और भ्रष्ट जनप्रतिनिधियों को हम चुने ही क्यों? कम-से-कम दागी के तौर पर पहचान होने के बाद हरगिज नहीं। मधु कोड़ा अगर जांच में दोषी पाए जाते हैं, तो फिर उनका विधानसभा या लोकसभा में पहुंचना दूभर ही नहीं असंभव हो जाना चाहिए। और यह आप ही कर सकते हैं।
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