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खुलेपन की आड़ में

माउस के एक क्लिक पर ऐसी दुनिया खुल जाती है, जहां कोई नैतिक या सामाजिक वर्जना नहीं। इस बारे में हिन्दी व अंग्रेजी की कई प्रतिष्ठित कही जाने वाली पत्रिकाएं कुछ ज्यादा ही एक दूसरे से होड़ करती हुई लगती हैं। खुलेपन की आड़ में अश्लीलता परोसी जा रही है। प्रतिष्ठित पत्रिकाएं यह सब बौद्धिकता के आवरण में लपेटकर कर रही हैं।


यह सही है कि युवा पीढ़ी की सोच में काफी खुलापन आ गया है। यह भी सच है कि सिनेमा व टीवी इसमें अहम भूमिका निभा रहे हैं, रही-सही कसर इंटरनेट पूरी कर रहा है। माउस के एक क्लिक पर ऐसी दुनिया खुल जाती है, जहां कोई नैतिक या सामाजिक वर्जना नहीं। सारी हदें पार हो जाती हैं। ऐसे में युवा-वर्ग को पत्र-पत्रिकाओं से जोड़े रखने की बड़ी चुनौती है।
इस चुनौती का जवाब प्रिंट मीडिया दो तरीके से दे सकता है। एक तो यह कि वह भी वो सब करने लगे जो ये इलेक्ट्रॉनिक्स माध्यम कर रहे हैं। या फिर दूसरा तरीका यह कि प्रिंट मीडिया अपनी अलग उपयोगिता और पहचान को मजबूत बनाए। दैनिक अखबार खबरों व सूचनाओं के माध्यम से इस चुनौती का काफी हद तक मुकाबला करने में सफल हुए हैं। लेकिन अनेक साप्ताहिक व मासिक पत्रिकाएं सस्ती लोकप्रियता के दलदल में धंसती हुई नजर आती हैं। इस बारे में हिन्दी व अंग्रेजी की कई प्रतिष्ठित कही जाने वाली पत्रिकाएं कुछ ज्यादा ही एक दूसरे से होड़ करती हुई लगती हैं। यह होड़ युवाओं के भविष्य की आवश्यकताओं और उनकी समस्याओं को लेकर होती तो कुछ और बात थी। होड़ इस बात को लेकर है कि युवाओं को रिझाने में कौन-सी पत्रिका आगे है। कुछ पत्रिकाएं तो सस्ती 'ए' फिल्मों व पोर्न साइटों को भी पीछे छोडऩा चाहती हैं। खुलेपन की आड़ में युवाओं को अश्लीलता परोसी जा रही है।
दिलचस्प बात यह है कि प्रतिष्ठित पत्रिकाएं यह सब बौद्धिकता के आवरण में लपेटकर कर रही हैं। कभी फिटनेस व सौन्दर्य के नाम पर, तो कभी प्रेम व रोमांस के नाम पर, कभी कला व साहित्य के नाम पर, तो कभी आधुनिक लाइफ स्टाइल और सेक्स सर्वे के नाम पर युवाओं को गुमराह किया जा रहा है। हर दूसरे-तीसरे माह सेक्स पर इन पत्रिकाओं के विशेष अंक आप देख सकते हैं। अगर यह नहीं तो कवर स्टोरी जरूर होगी। पोर्न स्टार सन्नी लियोन और मॉडल पूनम पांडे के उत्तेजक फोटोग्राफ्स बड़े चाव से छापे जा रहे हैं। हिन्दी-अंग्रेजी की कुछेक पत्रिकाएं तो इस बात के लिए जानी जाने लगी हैं कि वे साल में एक-दो 'धांसू' सेक्स सर्वे अंक जरूर निकालेंगी। सामग्री का स्तर, खासकर प्रस्तुतीकरण देखकर कोई भी अंदाज लगा सकता है कि इनका वास्तविक उद्देश्य क्या है। फोटो का चयन, शीर्षक-उपशीर्षकों की भाषा, उत्तेजक विवरण, कथन आदि को बॉक्स बनाकर अलग से हाईलाइट करने की शैली इन पत्रिकाओं को खूब आती है।
दिल्ली की एक मशहूर हिन्दी पत्रिका ने इस बार (14 नवम्बर 2012) साहित्य में सेक्स विषय पर कवर स्टोरी प्रकाशित की है। इसमें 'दुनिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली इरॉटिक किताब' के बारे में जानकारी देते हुए बताया गया है कि इसे हिन्दी में लाने की तैयारी की जा रही है। साथ ही कवर पर पत्रिका ने पूछा कि 'क्या हिन्दी समाज स्त्री के लिखे सेक्स साहित्य के लिए तैयार है?' पत्रिका ने कुछ देसी-विदेशी 'इरॉटिक' किताबों के चटखारेदार अंश भी प्रकाशित किए हैं।
इसमें दो राय नहीं कि सेक्स कोई वर्जित विषय नहीं है। लेकिन इसे प्रस्तुत किस नीयत से किया गया है, यह देखना जरूरी है। विषय का प्रस्तुतीकरण इसका प्रमाण आप देता है। अधिकांशतया इन विषयों को पत्रिकाएं चटखारेदार बनाने की कोशिश कर रही हैं। इस कोशिश में श्लील-अश्लील के बीच की झाीनी रेखा पाट दी जाती है। चूंकि ये पत्रिकाएं घरों में पढ़ी जाती हैं, इसलिए चिन्ता करने की जरूरत है। श्लील और अश्लील की बहस होती रही है। लेकिन भारतीय मूल्यों में विश्वास रखने वाले परिवार यह अच्छी तरह समझाते हैं कि दोनों में फर्क करने वाली बारीक रेखा कब, कहां और क्यों शुरू होती है।
इसके बावजूद बुद्धिजीवियों का एक तबका इस विषय को केवल पश्चिम के नजरिए से देखता है और अपने निष्कर्ष भारतीय समाज पर थोपने की कोशिश करता है। यह तबका पश्चिमी लोगों के यौन व्यवहार में  बी.डी.एस.एम. (बॉन्डेज, डिसीप्लिन, सैडिज्म और मैसोथिज्म) का बहुत रस लेकर बखान करता है और ब्रिटिश लेखिका ई.एल. जेम्स की किताब 'फिफ्टी शेड्स ऑफ ग्रे' पर फिदा है। यह तबका मानता है कि अंग्रेजों के साथ ही भारतीय मध्य वर्ग ने भी विक्टोरिया के जमाने की नैतिकता को किनारे लगा दिया है। ये पत्रिकाएं भी यही कर रही हैं, जिसका बुरा असर न केवल युवाओं पर बल्कि किशोर-किशोरियों व बच्चों पर भी पड़ रहा है।
ताकतवर कौन?
ताकतवर लोगों के परिजनों के भ्रष्टाचार पर अगर आप ट्विट करते हों, तो सावधान हो जाएं! पुलिस आपको पकड़कर बंद कर सकती है। पुड्डूचेरी के इंजीनियर रवि श्रीनिवास के साथ पिछले दिनों ऐसा ही हुआ। उन्होंने केन्द्रीय वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम के बेटे कार्ति चिदम्बरम और सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के बारे में प्रकाशित खबरों पर ट्विट किया था। इसे एक मामूली बात समझकर वे भूल भी गए थे कि अचानक सुबह-सुबह पुलिस उनके घर पहुंच गई और गिरफ्तार करके ले गई। बीबीसी की हिन्दी सेवा से बातचीत में रवि श्रीनिवास ने बताया कि पुलिस स्टेशन पर उन्हें बताया गया कि कार्ति चिदम्बरम ने उनके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है, इसलिए उन्हें गिरफ्तार किया गया।
रवि के अनुसार, एक पुलिस वाले ने मुझसे संकेत में ही पूछा कि तुमने ताकतवर लोगों को छूने की कोशिश क्यों की? रवि को शिकायत है कि ट्वीटर पर मैंने इससे भी ज्यादा तीखे ट्वीट देखे हैं। मैं अभी तक समझ नहीं पाया हूं कि उन्हें एक ऐसे आदमी की परवाह क्यों हुई, जो सिर्फ 16 लोगों के लिए ही ट्विट करता है। यह गौरतलब बात है कि रवि श्रीनिवास के ट्विटर पर सिर्फ 16 फॉलोअर्स थे, लेकिन इस घटना के बाद यह आंकड़ा ढाई हजार को पार कर गया है। इसे कहते हैं असली ताकत! अभिव्यक्ति की इसी शक्ति से अच्छे-अच्छों के पसीने छूट जाते हैं।

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