टिप्पणी
गरीबों को सस्ता गेहूं मुहैया कराने के सरकारी दावे की पोल एक बार फिर खुल गई। मरे जानवर जैसी बदबू वाला सड़ा हुआ गेहूं रविवार रात जब ट्रेन से जयपुर के कनकपुरा रेलवे स्टेशन पहुंचा, तो सड़ांध के मारे जी मिचलाने लगा। यह गेहूं 53 हजार कट्टों में पंजाब से आया था और फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया के गोदाम में भरा जा रहा था। 'पत्रिका' में सड़े गेहूं के कट्टों का फोटो व खबर छपने के बाद एफसीआई के अफसर लीपापोती कर रहे हैं। दरअसल, एफ.सी.आई. का ऐसे मामलों में यही तर्क होता है कि सड़ा हुआ अनाज लोगों में नहीं बांटा जाता। इसे वे 'नान इश्यू व्हीट' के खाते में डाल देते हैं। अव्वल तो इस बात का कोई भरोसा नहीं कि सड़ा गेहूं लोगों को नहीं बांटा जाता। मीडिया में अगर खबर नहीं आई होती, तो गेहूं चुपचाप न केवल गोदाम में भर दिया जाता, बल्कि लोगों के घरों में भी पहुंच जाता तो कोई आश्चर्य नहीं और यह मान भी लिया जाए कि कार्पोरेशन के अफसर इतने सतर्क हैं कि वे सड़े गेहूं को बांटने नहीं देते, तो सैकड़ों कट्टों को गोदाम में रखा क्यों जा रहा था? अधिकांश कट्टों की हालत इतनी खराब थी कि वह बाहर पड़े रहते तो जानवर भी उनमें मुंह नहीं मारते। यह जनता के साथ धोखा है। इस गेहूं का आटा लोगों तक पहुंच जाता तो? उनके स्वास्थ्य के साथ अक्षम्य खिलवाड़ होता। गरीबों को दो जून की रोटी नसीब नहीं। लेकिन खाये-अघाये अफसरों को कोई फिक्र नहीं। सड़ता है तो सड़े अनाज! उनकी तनख्वाह पक्की! अनाज की ऐसी दुर्गति अक्सर क्यों होती है, कोई पूछने वाला नहीं। यह कैसा राज है? एक तरफ देश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लाने की तैयारी की जा रही है और दूसरी ओर ऐसे नारकीय दृश्य। आखिर कोई तो इसके लिए जिम्मेदार होगा? सरकार को तत्काल जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दायर करना चाहिए। राज्य सरकार भी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। खाद्य विभाग का सतर्कता दस्ता क्या कर रहा था? सड़ा हुआ अनाज गोदाम तक पहुंचना भी गंभीर मामला है। लापरवाही चाहे एफसीआई के अफसरों की रही हो, ऐसा अनाज ट्रेन से जयपुर में उतरना ही नहीं चाहिए था। मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि राज्यपाल को दखल करना पड़ा है।
1 comments:
Heart touching...
This Diwali Use Some Graphics on Blog
Post a Comment