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समाज, बाजार और मीडिया

सच है कि समाज के अन्य अंगों की तरह मीडिया भी बाजारवाद से प्रभावित है। बल्कि उसके बहुत बड़े हिस्से पर बाजार की शक्तियां हावी हो गई हैं। 'मिशनरी' पत्रकारिता से 'व्यावसायिक' पत्रकारिता का सफर एक सच्चाई है। लेकिन 'व्यावसायिक' पत्रकारिता और मूल्यहीन पत्रकारिता में कोई अनिवार्य अन्तर्संबंध देखना भूल है।

हाल ही मुझे एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में शामिल होने का अवसर मिला। चर्चा का केन्द्र-बिन्दु लोकतंत्र के स्तंभों—विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया—में आम आदमी के सरोकारों से जुड़ा था। मीडिया से सम्बंधित चर्चा के दौरान कुछ ऐसे सवाल उठाए गए, जो इधर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लगातार उठाए जा रहे हैं। उल्लेखनीय बात यह है कि संगोष्ठी एक छोटे-से कस्बे में कन्या शिक्षा से सम्बंधित एक निजी संस्थान द्वारा आयोजित की गई थी। बीकानेर जिले के नोखा कस्बे में श्री जैन आदर्श सेवा संस्थान के विशाल परिसर में कन्या शिक्षा से जुड़ी विभिन्न शिक्षण संस्थाएं संचालित हैं। संस्थान के 25 वर्ष पूर्ण होने पर रजत जयंती समारोह की शृंखला में 28 जुलाई को आयोजित इस संगोष्ठी में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के आर्थिक सलाहकार और ख्यात अर्थशास्त्री प्रो. विजय शंकर व्यास मुख्य वक्ता थे। प्रो. व्यास ने आर्थिक नीतियों और आम आदमी के अन्तरसम्बंधों पर सारगर्भित व्याख्यान दिया। अन्य विषयों पर भी आम आदमी पर केन्द्रित सार्थक चर्चा हुई। यहां मैं मीडिया के दायित्व-बोध पर हुई चर्चा पर रोशनी डालना चाहूंगा।
मीडिया को लेकर विभिन्न मंचों पर जो बात लगातार कही जा रही है, वही संगोष्ठी में भी उभर कर आई। ...वर्तमान परिवेश ने मीडिया को 'मिशन' से 'व्यवसाय' बना दिया है। वह बाजार की कठपुतली बन गया है। मीडिया जैसा शक्तिशाली माध्यम का इस्तेमाल करने वाला बाजार न तो किसी आचरण संहिता को मानता है और न ही किसी नैतिक मर्यादा को। एडमंड बर्क ने लोकतंत्र में प्रेस के महत्व व उपयोगिता को अभिव्यंजित करने के उद्देश्य से उसे चौथा स्तंभ कहा, लेकिन आज मीडिया के बाजारवाद की प्राथमिकता ने लोकतंत्र के इस स्तंभ से मूल्यपरक पत्रकारिता को छूमंतर कर दिया। पूंजीवाद से पोषित अर्थव्यवस्था में पल-बढ़ रहे मीडिया ने आम आदमी को भुला दिया है। वह संवेदनहीन हो गया है और उसका सामाजिक दायित्व-बोध नष्ट हो चुका है।...
उपरोक्त भाव मैंने एक प्रतिभागी डॉ. प्रतिभा कोचर के व्याख्यान से उद्धृत किए हैं, जो मीडिया पर व्यक्त किए जा रहे विचारों व धारणाओं की प्रतिनिधि अभिव्यक्ति है।
सच है कि समाज के अन्य अंगों की तरह मीडिया भी बाजारवाद से प्रभावित है। बल्कि उसके बहुत बड़े हिस्से पर बाजार की शक्तियां हावी हो गई हैं। 'मिशनरी' पत्रकारिता से 'व्यावसायिक' पत्रकारिता का सफर एक सच्चाई है। लेकिन 'व्यावसायिक' पत्रकारिता और मूल्यहीन पत्रकारिता में कोई अनिवार्य अन्तर्संबंध देखना भूल है। व्यावसायिक होते हुए भी मूल्यपरक पत्रकारिता की जा सकती है जिसमें पाठक केन्द्र में रहता है। जबकि बाजार प्रेरित मीडिया के केन्द्र में पाठक या दर्शक या श्रोता उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना बाजार और उसकी जरूरतें महत्वपूर्ण है। हमें मीडिया का आकलन करते समय इनमें अन्तर करना होगा ताकि सभी मीडिया संस्थानों को एक ही लाठी से न हांका जाए।
इसलिए जब संगोष्ठी के संयोजक और कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. वेद शर्मा ने मुझो मीडिया की ओर से विचार रखने के लिए आमंत्रित किया तो मैंने 'राजस्थान पत्रिका' के एक समाचार अभियान के हवाले से अपना मंतव्य स्पष्ट किया। यह समाचार अभियान जयपुर शहर में मोबाइल टॉवरों से होने वाले रेडिएशन और लोगों पर पड़ रहे उसके दुष्प्रभावों को लेकर शुरू किया गया था, जो बाद में राज्य भर में फैला और अन्तत: एक राष्ट्रव्यापी बहस का मुद्दा बना। मोबाइल कंपनियों की ओर से गली-गली में अंधाधुंध ढंग से लगा दिए गए उच्च क्षमता के ये टॉवर लोगों के स्वास्थ्य के साथ किस तरह खिलवाड़ कर रहे हैं, इसकी असलियत उजागर की गई। अलग-अलग गली-मोहल्लों में रेडिएशन का स्तर क्या है? उसका जन स्वास्थ्य पर क्या दुष्प्रभाव पड़ रहा है? विशेषज्ञ क्या कहते हैं? आम लोगों की क्या प्रतिक्रिया है? मोबाइल कंपनियों के प्रतिनिधियों का क्या कहना है? ये सभी मुद्दे तथ्यात्मक आंकड़ों व सम्पूर्ण ब्योरों के साथ एक समाचार अभियान के रूप में लगातार प्रकाशित किए गए। अभियान का लोगों पर असर पड़ा। लोग अपने-अपने गली-मोहल्लों और कॉलोनियों में निकलने लगे। रेडिएशन से प्रभावित लोग मुखर होकर बोलने लगे। मोबाइल टॉवरों के खिलाफ प्रदर्शन करने लगे। न केवल कॉलोनियों में एक ही इमारत पर लगे कई टॉवरों का विरोध हुआ, बल्कि स्कूलों, अस्पतालों आदि संवेदनशील जगहों पर लगे मोबाइल टॉवरों को तत्काल हटाने की मांग जोर पकडऩे लगी। अपने घर में लगे टॉवर को कुछ मकान मालिकों ने स्वयं ही हटवाने का निर्णय किया। कैंसर जैसे जानलेवा रोग और रेडिएशन के अंतरसंबंधों पर विशेषज्ञों के विचार सामने आए। जन विरोध को देखते हुए राज्य सरकार ने जांच कमेटी बनाई। दूसरी ओर शिक्षा मंत्री ने शिक्षण संस्थानों पर लगे टॉवर हटाने की घोषणा की।
इधर राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश से भी जांच कमेटी बनाई गई। केन्द्रीय दूरसंचार मंत्रालय ने न्यायालय में बाकायदा शपथ पत्र पेश करके घोषणा की कि वह सितंबर 2012 से मोबाइल टॉवरों के मौजूदा 4500 मिलीवाट प्रति वर्ग मीटर रेडिएशन को 10 गुणा घटा देगा। जयपुर शहर के नागरिकों से प्रेरित होकर राज्य के कई शहरों में मोबाइल टॉवरों के खिलाफ धरने-प्रदर्शन हुए और जन स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का माहौल बना। राज्य की सीमा से निकलकर यह अभियान देश के अन्य शहरों में भी फैला। अब यह एक राष्ट्रव्यापी अभियान बन चुका है। जयपुर शहर में यह अभियान नवम्बर 2011 में शुरू हुआ था। इसके बाद से अब तक यानी गत आठ माह से कोई नया टॉवर नहीं लग पाया। केन्द्र सरकार मोबाइल टॉवर स्थापित करने की सर्वमान्य नीति पर विचार कर रही है। माना जाता है, मोबाइल कंपनियां टॉवर स्थापित करने के मामले में विकासशील और विकसित देशों में अलग-अलग मापदंड अपनाती हैं। विकसित देशों में कम फ्रिक्वेंसी के टॉवर लगाए जाते हैं, ताकि उनसे निकलने वाले रेडिएशन का स्तर कम हो। कई यूरोपीय देशों ने इन टॉवरों की क्षमता तय कर रखी है, जिससे अधिक क्षमता का टॉवर लगाने की अनुमति नहीं है। भारत जैसे विकासशील देश में ऐसे प्रतिबंध नहीं है। लिहाजा मोबाइल कंपनियों ने इसका फायदा उठाकर उच्च क्षमता के टॉवरों का देश भर में जाल फैला दिया है। यह लोगों के स्वास्थ्य के साथ कैसा खिलवाड़ है? पत्रिका के अभियान ने नीति-निर्माताओं को भी सोचने पर विवश किया। जाहिर है, मोबाइल कंपनियों की इस अभियान पर अनुकूल प्रतिक्रिया नहीं हुई है। उन्होंने टॉवरों से रेडिएशन को बेबुनियाद बताया और पत्रिका के समाचारों के विपरीत प्रचार अभियान चलाया, पर लोग भ्रमित नहीं हुए। आखिर रेडिएशन के दुष्परिणामों के वे भुक्तभोगी हैं। पत्रिका ने तथ्यों सहित सारी जानकारियां जुटाईं। यही कारण है कि इस मुद्दे से लाखों लोग जुड़े और यह राष्ट्रीय बहस का विषय बना। क्या बाजार की शक्तियों के हाथों की कठपुतली बनकर कोई मीडिया संस्थान ऐसा जनोन्मुखी कार्य कर सकता है? 'पत्रिका' ने सामाजिक सरोकार के ऐसे अनेक जनोन्मुखी कार्य किए हैं। बाजार के दबाव से ग्रस्त कोई मीडिया ऐसा शायद ही कर पाए।

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1 comments:

Shah Nawaz said...

Sahmat hoon aapse...