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कार्टून, ज्यादती और मनमोहन सिंह


तीन साल पहले भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को लाखों लोगों की जिन्दगियां बदलने वाला शख्स बताने वाली 'टाइम' पत्रिका ने लिखा, अर्थव्यवस्था के उदारीकरण में वैश्विक प्रशंसा पाने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब सुधारों पर कड़े फैसले लेने के अनिच्छुक लगते हैं। 'टाइम' की यह स्टोरी भारतीय मीडिया में सुर्खियां बनी और लगभग सबने अपने-अपने ढंग से इसकी व्याख्या की।

इस बार हम पिछले दिनों मीडिया की सुर्खियों में रही कुछ घटनाओं पर चर्चा कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में माओवादियों से मुठभेड़ के नाम पर बस्तर के 17 आदिवासियों की मौत की घटना से रमन सिंह सरकार कठघरे में है। 'पत्रिका' ने शुरू से घटनाक्रम को प्रमुखता से उठाया। विभिन्न जांच एजेंसियां इस घटना की परतें उधेड़ रही हैं। राज्य सरकार सवालों से घिरी है। उससे जवाब देते नहीं बन रहा है। केन्द्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को अपना पूर्व बयान बदलकर खेद व्यक्त करना पड़ा।
एन.सी.ई.आर.टी. से जुड़ा कार्टून विवाद फिर सुर्खियां बना। इस बार विवाद का कारण इस मुद्दे पर बनी एस.के. थोराट कमेटी की वह सिफारिश थी, जिसमें पाठ्य-पुस्तकों से 21 कार्टून हटाने की बात कही गई। इस पर कई प्रमुख शिक्षाविदों ने आपत्तियां उठाईं। 'द हिन्दू' और 'इंडियन एक्सप्रेस' ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। परिणामत: एन.सी.ई.आर.टी. ने थोराट कमेटी की रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए केवल दो कार्टून हटाने का निर्णय किया। अमरीका की प्रतिष्ठित पत्रिका 'टाइम' में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर प्रकाशित कवर स्टोरी 'अंडर अचीवर' मीडिया में न केवल खबर का विषय बनी, बल्कि इस पर अच्छी-खासी बहस भी चल पड़ी।
'माओवादियों' से मुठभेड़!
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के कोरसागुड़ा गांव में 28-29 जून की रात को सुरक्षा बलों ने माओवादियों से मुठभेड़ के नाम पर 17 आदिवासियों की हत्या कर दी। प्रदेश में विपक्षी दल कांग्रेस ने इसे सामूहिक नरसंहार बताया और आदिवासी विधायक कवासी लखमा के नेतृत्व में जांच दल गठित किया। बताया गया कि जमीन के किसी विवाद को सुलझाने के लिए ग्रामीण एकत्रित हुए थे। पुलिस ने उन्हें चारों तरफ से घेरकर उन पर फायरिंग की। कांग्रेस के जांच दल की रिपोर्ट के अनुसार मारे गए 17 ग्रामीणों में 9 नाबालिग हैं। इनमें 7 तो 13 से 15 साल की उम्र के स्कूली बच्चे हैं। मृतकों में 2 स्कूली छात्राएं भी शामिल हैं। विपक्षी दल की रिपोर्ट सामने आई तो केन्द्र सरकार ने इस पूरे घटनाक्रम पर केन्द्रीय रिजर्व सुरक्षा बल से रिपोर्ट मांगी। सुरक्षा बल अपनी रिपोर्ट देता, उससे पहले ही दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस करके केन्द्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने घोषणा कर दी, 'कोरसागुड़ा की मुठभेड़ में मारे गए सभी माओवादी थे।' यही नहीं, उन्होंने इस घटना को अंजाम देने वाले पुलिस बल की तारीफ भी की।
'पत्रिका' ने सवाल उठाया कि रिपोर्ट मिले बगैर सभी मृतकों को माओवादी कहना और सुरक्षाबलों की पीठ थपथपाना कहां तक जायज है? लेकिन राज्य सरकार की तरह केन्द्र की आंख पर भी पर्दा पड़ा रहा। दूसरी तरफ, मानवाधिकार आयोग ने स्वत: प्रसंज्ञान लेते हुए सरकार से सम्पूर्ण घटनाक्रम की रिपोर्ट मांगी। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी पूरे घटनाक्रम को गंभीर माना और केन्द्र सरकार से निष्पक्ष जांच कराने तथा मानवाधिकार हनन के दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। पीयूसीएल पीयूडीआर जैसे मानवाधिकार संगठनों ने अपने स्वतंत्र जांच दल गठित किए। अंतत: 4 जुलाई को चिदम्बरम ने इस घटना पर अफसोस जताया। दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार अब भी दोषी पुलिसकर्मियों को बचाने और मामले पर पर्दा डालने की कोशिश में लगी है। निर्दोष ग्रामीणों और बच्चों की हत्याओं को आखिर सरकार कब तक छुपाकर रख पाएगी? बड़ा सवाल यह कि क्या ऐसी दुखद घटनाएं माओवाद को कुचल पाएंगी या उसे और जमीनी मजबूती देंगी?
थोराट कमेटी और कार्टून विवाद
अंबेडकर और नेहरू के कार्टून से उपजे विवाद के बाद सरकार की ओर से गठित एस.के. थोराट कमेटी ने एन.सी.ई.आर.टी. की नौवीं और ग्यारहवीं कक्षा की पाठ्य-पुस्तकों से 21 कार्टून हटाने की सिफारिश की। कमेटी की ओर से पाठ्य-पुस्तकों में प्रतिबंधित कार्टूनों में से कुछ कार्टून 'द हिन्दू' और 'इंडियन एक्सप्रेस' ने 4 जुलाई के अंक में प्रकाशित किए। एक्सप्रेस ने जहां पूरा पृष्ठ इस पर केन्द्रित किया, वहीं 'हिन्दू' ने प्रस्तावित प्रतिबंधित कार्टूनों के अलावा तीखा सम्पादकीय भी लिखा। एक बात स्पष्ट थी कि थोराट कमेटी की सिफारिश राजनेताओं को खुश करने के लिए है। इसका शैक्षणिक गुणवत्ता से कोई सम्बंध नहीं है। जिन कार्टूनों को पाठ्यपुस्तकों से हटाने की सिफारिश की गई, उनके बहुत ही लचर कारण बताए गए। जैसे, शेख अब्दुल्ला के जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बनने पर इंदिरा गांधी द्वारा उन्हें ताज पहनाना। इस कार्टून को हटाने की सिफारिश इसलिए की गई कि इससे प्रांतीय भावनाएं आहत होंगी। एक कार्टून में मतदान केन्द्र पर नेता मतदाता को हाथ जोड़कर कहता है—क्यों परेशान होते हो? जाओ तुम्हारा वोट तो हमने पड़वा दिया! यह कार्टून इसलिए हटाने की सिफारिश की कि इसमें राजनेताओं के विरुद्ध नकारात्मक संदेश है। इसी तरह के कारण गिनाते हुए कमेटी ने 21 कार्टून हटाने की सिफारिश कर दी।  विख्यात इतिहासज्ञ के.एन. पन्नीकर ने थोराट कमेटी की सिफारिशों को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए उसकी कड़ी आलोचना की। हैदराबाद विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर अरुण के. पटनायक ने कमेटी की रिपोर्ट को गलत माना। इसी तरह मृणाल मिरी, जी.बी. देशपांडे और प्रो. एस.एस. पांडियन जैसे ख्याति प्राप्त शिक्षाविद् भी कमेटी की रिपोर्ट से सहमत नहीं हैं। यहां तक कि एन.सी.ई.आर.टी. की निदेशक प्रवीण सिक्लेंर ने भी थोराट कमेटी की रिपोर्ट को अतार्किक बताया। और फिर अखबारों में खबरें छपीं कि एन.सी.ई.आर.टी. ने सिर्फ दो कार्टूनों को हटाने का निर्णय किया है। इनमें एक कार्टून अंबेडकर-नेहरू वाला है। दूसरा कार्टून हिन्दी विरोधी आन्दोलन से सम्बंधित है। निश्चय ही यह एक बेहतर निर्णय है। आखिर शैक्षणिक क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप की जरूरत ही क्या है?
'टाइम' की कवर स्टोरी
'टाइम' पत्रिका ने अपने 8 जुलाई के अंक में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को 'अंडर अचीवर' बताते हुए लिखा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की गति बहुत सुस्त चाल से चल रही है, लेकिन प्रधानमंत्री कोई फैसले नहीं ले पा रहे। भ्रष्टाचार और घोटालों पर भी वे सख्त कदम नहीं उठा पा रहे हैं। विकास दर स्थिर है और महंगाई पर नियंत्रण नहीं हो रहा। तीन साल पहले डॉ. मनमोहन सिंह को लाखों लोगों की जिन्दगियां बदलने वाला शख्स बताने वाली 'टाइम' पत्रिका ने लिखा, अर्थव्यवस्था के उदारीकरण में वैश्विक प्रशंसा पाने वाले मनमोहन सिंह अब सुधारों पर कड़े फैसले लेने के अनिच्छुक लगते हैं। 'टाइम' की यह स्टोरी मीडिया में सुर्खियां बनी और सबने अपने-अपने ढंग से इसकी व्याख्या की। समीक्षकों ने 'टाइम' के इस आकलन की आलोचना की और भारतीय मामलों में एक विदेशी पत्रिका का अनावश्यक दखल बताया। यह सही है कि मनमोहन सिंह पर कुछ टिप्पणियां की गईं। लेकिन यह भी सच है कि कोई नई बात नहीं कही गई। 'टाइम' ने प्रधानमंत्री के बारे में जो लिखा वह भारतीय मीडिया में लगातार छपता रहा है। ऐसे में, 'टाइम' की स्टोरी को अनावश्यक तूल देने की क्या जरूरत है?

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