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ऐसा हो लोकपाल


पाठक इसी स्तंभ में राय व्यक्त कर चुके हैं कि देश में भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए एक लोकपाल की नियुक्ति शीघ्र होनी चाहिए। सरकार के भरोसे पिछले 42 वर्षों से लोकपाल विधेयक अटका रहा। अन्ना हजारे ने अनशन किया तो सरकार हरकत में आई। आनन-फानन में समिति बनी और तय समय में लोकसभा में विधेयक भी पेश हो गया। इसलिए अब बहस का विषय यह नहीं है कि लोकपाल की नियुक्ति हो, बल्कि यह है कि सशक्त लोकपाल की नियुक्ति हो। ऐसे लोकपाल की जो भ्रष्टाचार का खात्मा करने में सक्षम हो।
क्या सरकार ने जो विधेयक पेश किया है वह इस उद्देश्य को पूरा करता है?
या अन्ना हजारे ने जो मसौदा रखा, वह इस उद्देश्य के ज्यादा नजदीक है। यानी आज बहस का विषय है कि देश का लोकपाल कैसा हो।
जैसा अन्ना हजारे और सिविल सोसाइटी चाहती है वैसा हो, क्योंकि...
या
जैसा यूपीए सरकार और गठबंधन दल चाहते हैं वैसा हो, क्योंकि...
लोकपाल पर समूची बहस इन दो बिन्दुओं में सिमट आई है। सरकार के अपने तर्क हैं, अन्ना हजारे के अपने। एक को सरकारी लोकपाल कहा जा रहा है। दूसरे को जन लोकपाल जो अन्ना हजारे और सिविल सोसाइटी के आंदोलन का मुख्य मुद्दा है। आखिर इन दोनों में क्या फर्क है, इस पर मीडिया में खूब चर्चा हो चुकी है। अनेक विशेषज्ञों के विचार सामने आ चुके हैं। पाठकों के क्या विचार हैं, यह जानना भी महत्वपूर्ण है। लोकपाल कैसा हो-इस पर पाठकों की राय जनभावनाओं का प्रतिबिम्ब है।
भोपाल से आरिफ अहमद ने लिखा-'जैसा अन्ना हजारे और उनकी टीम चाहती है वैसा लोकपाल ही नियुक्त होना चाहिए, क्योंकि यही जनभावनाएं हैं। देश के आम नागरिकों की भावनाओं का सच्चा प्रतिनिधित्व अन्ना का जन लोकपाल ही करता है, न कि सरकारी लोकपाल जिसका मसौदा संसद में पेश किया गया है। यह कपिल सिब्बल, प्रणव मुखर्जी जैसे घाघ सत्ताधीशों ने तैयार किया है। इस विधेयक के पारित होने से भ्रष्टाचारियों का बाल तक बांका नहीं होगा।'
कोटा से ज्योति जैन ने लिखा-'यह प्रणव मुखर्जी वहीं हैं जिन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल में लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को शामिल करने की सिफारिश की थी। मुखर्जी लोकपाल का मसौदा तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष थे और तब विपक्ष में नेता थे। लेकिन आज सत्ता में आकर उन्होंने गिरगिट की तरह रंग बदल लिया।'
जयपुर से दिनेश पालीवाल ने लिखा-'सरकारी लोकपाल विधेयक की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि यह भ्रष्टाचार की शिकायत करने वाले को ही कटघरे में खड़ा कर देता है। अगर भ्रष्टाचार की शिकायत गलत पाए जाने पर किसी को जेल हो सकती है तो कोई भ्रष्टाचार की शिकायत करेगा ही क्यों?'
इंदौर से संजय नागौरी ने लिखा-'लोकपाल ऐसा होना चाहिए, जिसे भ्रष्ट व्यक्ति को दंडित करने और उसकी सम्पत्ति जब्त करने का सम्पूर्ण अधिकार हो। केवल सिफारिश करने में लोकपाल से कोई नहीं डरेगा। दोषी व्यक्ति अपनी तिकड़म और ताकत से सरकार में पूरी दखल रखता है। इसलिए वह साफ बच निकलेगा।'
उदयपुर से कैलाशचन्द गुप्ता ने लिखा-'अन्ना हजारे का लोकपाल एक शक्तिशाली लोकपाल है, जिसकी आज देश को सख्त जरूरत है। क्योंकि देश में भ्रष्टाचार अपनी चरम स्थिति में पहुंच चुका है। लोकसभा में कुल 543 सांसदों में 162 सांसद दागी हैं। 76 सांसद तो ऐसे हैं जिन पर संगीन आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। देश में प्रतिनिधित्व जब ऐसे लोग करेंगे तो आम जनता का क्या होगा।'
रायपुर से अनिल बिस्वाल ने लिखा-'काले धन की समस्या का समाधान सशक्त लोकपाल ही कर सकता है। सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल की कोई हैसियत नहीं होगी कि वह भ्रष्टाचारियों की काली कमाई विदेशों से लाकर जब्त कर ले। काला धन आज देश का लाइलाज रोग बन चुका है। ताज्जुब होता है जब यह सुनते हैं कि भारत का लगभग 280 लाख करोड़ रुपए स्विस बैंकों में जमा है। ये कालाधन आजादी के 64 साल में देश से भ्रष्टाचारियों ने लूटा है। अंग्रेजों ने भारत पर करीब 200 साल राज किया और करीब एक लाख करोड़ रुपए लूटे, लेकिन ये भ्रष्टाचारी तो अंग्रेजों से गए-गुजरे हैं जिन्होंने महज 64 वर्षों में देश का 280 लाख करोड़ रुपए लूट लिया।'
अजमेर से दीप साहनी ने लिखा-'लोकपाल के गठन में जब 9 में से 5 सरकार के लोग होंगे तो वे शक्तिशाली लोकपाल का चुनाव करेंगे? कौन मूर्ख होगा जो अपनी सर्वशक्तिमान सत्ता को किसी दूसरे को सौंप कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेगा।'
श्रीगंगानगर से कुलदीप चढ्ढा ने लिखा-'लोकपाल की नियुक्ति और गठन का अधिकार नागरिकों की समिति को ही दिया जाना चाहिए। भ्रष्टाचार करने वाले ही जब लोकपाल का चयन करेंगे तो निश्चय ही एक भ्रष्ट व्यक्ति को ही चुनेंगे।'
इसके विपरीत कुछ पाठकों ने राय व्यक्त की है कि लोकपाल के मुद्दे पर अन्ना हजारे और सिविल सोसाइटी को लचीला रुख अपनाना चाहिए और प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट को मुक्त रखना चाहिए।
ग्वालियर से देवेन्द्र कौशिक ने लिखा-'अन्ना हजारे का जन लोकपाल न्याय प्रक्रिया में स्थापित सिद्धांत का उल्लंघन करता है। न्याय का सिद्धांत है कि अपराध का संज्ञान लेने वाली, जांच करने वाली तथा अभियोजन करने वाली संस्थाएं अलग-अलग होनी चाहिए। लेकिन जन लोकपाल में अकेले में सारी प्रक्रियाएं समाहित की गई हैं। लोकपाल ही पुलिस, लोकपाल ही वकील और लोकपाल ही न्यायाधीश का काम करेगा। ऐसे में जन लोकपाल में एक निरंकुश, सर्वशक्तिमान अधिपति की बू आती है।'
उज्जैन से रामकृष्ण दाधीच  ने लिखा-'अत्यन्त शक्तियों से परिपूर्ण जन लोकपाल कहीं भष्मासुर का दूसरा अवतार नहीं बन जाए।'
बीकानेर से पूनमचंद सुथार ने लिखा-'भारत में सरकारी कर्मचारियों की संख्या करोड़ों में है। अकेला जन लोकपाल इन सबके भ्रष्ट कारनामों पर कैसे नजर रखा पाएगा?'
प्रिय पाठकगण! जन लोकपाल बनाम सरकारी लोकपाल की शक्तियों और कमजोरियों पर पाठकों ने खुलकर प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं, जिनसे यह तो स्पष्ट है कि देश के लिए एक सशक्त लोकपाल की जरूरत है। सरकार का लोकपाल कहीं बहुत कमजोर तो नहीं कि उसके अस्तित्व का औचित्य ही खत्म हो जाए तथा जन लोकपाल कहीं इतना ताकतवर तो नहीं कि अधिनायक बनकर लोकतंत्र को ही लील जाए। पाठकों की ये प्रतिक्रिया इसी चिन्ता की अभिव्यक्ति है। लेकिन भ्रष्टाचार के भस्मासुर का खात्मा हो, यह हर आम आदमी चाहता है। क्योंकि वहीं इससे पीडि़त है। इसलिए लोकपाल सशक्त, स्वतंत्र और सक्षम हो-यह लोकतंत्र ही नहीं देश की सेहत के लिए भी बहुत अच्छा रहेगा।
सभी पाठकों को 65वें स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं।

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2 comments:

ZEAL said...

भ्रष्टाचार हमारी खुशियों को पहले ही लील रहा है , जिसके लिए लोकपाल बिल की बेहद ज़रुरत है । हमें लोकपाल बिल से कोई खतरा नहीं है । हाँ सरकार की नीति से अवश्य आपति है।

DR. ANWER JAMAL said...

इसे निश्चित ही सकारात्मक लेखन कहा जाएगा।
हम हिंदी ब्लॉगिंग गाइड लिख रहे हैं, यह बात आपके संज्ञान में है ही।
क्या आप इस विषय में तकनीकी जानकारी देता हुआ कोई लेख हिंदी ब्लॉगर्स के लिए लिखना पसंद फ़रमाएंगे ?
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