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तो अब 'डेड न्यूज'भी!

नवीन जिन्दल पहले से ही कठघरे में हैं। जिस तरह जी-न्यूज पर आरोप लगाकर नवीन जिन्दल बरी नहीं हो सकते, वैसे ही जिन्दल पर आरोप लगाकर न्यूज चैनल बरी नहीं हो सकता। जी-न्यूज कोल ब्लॉक्स आवंटन से जुड़ी भ्रष्टाचार की खबरें निरन्तर दिखा रहा था। तभी जी-न्यूज पर यह दुर्भाग्यपूर्ण आरोप लगा कि यह धंधे का हिस्सा था। दुर्भाग्य कि बचाव में जी-न्यूज लचर दलीलें दे रहा है।

खबरों के शौकीन पाठकजी उस दिन बेचैन नजर आए। दो-तीन बार उनका फोन आ चुका था। उन्हें खबरों की चीर-फाड़ किए बगैर चैन नहीं पड़ता। खबरों पर टीका-टिप्पणियां करना और बिन मांगे सलाह देना उनका शौक है। मीडिया सम्बंधी खबरों पर वे पैनी नजर रखते हैं। अक्सर वे मुझासे फोन पर ही बात करते हैं। वे जी-न्यूज- नवीन जिन्दल प्रकरण पर कुछ कहने के लिए उतावले हो रहे थे।
फिर घंटी बजी। इस बार उनसे बात हुई। वे छूटते ही बोले, 'अब तक मीडिया नेताओं का स्टिंग करता था। अब ये नेता लोग मीडिया का स्टिंग करने लगे हैं। कैसा रहा रिवर्स स्टिंग?'
मैं कुछ कहता, उससे पहले वह बोल पड़े, 'पैसा लेकर खबर छापने की बात तो सुनी थी। पैसा लेकर खबर रोकने की बात पहले कभी नहीं सुनी। आपने सुनी क्या? आपको जी-न्यूज के स्पष्टीकरण पर भरोसा हुआ?'
मेरा जवाब सुनने की उन्हें फुरसत नहीं थी। वह बोलते चले गए, 'जी-न्यूज के संपादक ने जो कहा उस पर कौन यकीन करेगा। माना नवीन जिन्दल फंसे हुए हैं। लेकिन आज के जमाने में ऐसा नासमझा कौन होगा, जो अपने खिलाफ खबर रुकवाने के लिए किसी एक न्यूज चैनल से 'सौदा' करेगा? वो भी तब, जब सारे न्यूज चैनल और अखबार उसके खिलाफ खबरें दे रहे हों... देश का सबसे बड़ा घोटाला (कोल ब्लॉक्स आवंटन) हुआ हो... इस घोटाले पर कैग की रिपोर्ट जग-जाहिर हो चुकी हो... रिपोर्ट में कांग्रेस सांसद नवीन जिन्दल की कंपनी का नाम भी शामिल हो... तो कौन मासूम होगा, जो केवल एक मीडिया ग्रुप से सौदेबाजी की कोशिश करेगा? क्या जी-न्यूज के चुप होने पर सारा मीडिया भी खामोश होकर बैठ जाता?' इतने सारे सवाल दागने के बाद जवाब सुनने की पाठकजी को कोई दिलचस्पी नहीं थी। अपनी बात कहकर उन्हें चैन आ चुका था। उपसंहार करते हुए अंत में वे चुटकी लेने से बाज नहीं आए, 'पेड न्यूज के बाद अब मीडिया की नई ईजाद है 'डेड न्यूज'! यह पेड न्यूज से आगे का मामला है भाई। है कि नहीं? अच्छा तो नमस्कार।' कह कर उन्होंने फोन बंद कर दिया।
भारत के नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में १ लाख ८६ हजार करोड़ रुपए के कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले में सांसद व उद्योगपति नवीन जिन्दल की कंपनी जे.एस.पी.एल. का नाम भी शामिल है। मीडिया में खबरें आ रही थीं। इसी बीच गत २५ अक्टूबर को नवीन जिन्दल ने एक प्रेस कान्फ्रेंस में समाचार चैनल जी-न्यूज पर काफी संगीन आरोप लगाया। जिन्दल ने अपनी कंपनी द्वारा कराए गए स्टिंग ऑपरेशन का खुलासा किया। कहा, कंपनी से जुड़ी कोल ब्लॉक की खबरें नहीं दिखाने के बदले चैनल ने उनसे १०० करोड़ रुपए मांगे थे। प्रेस कांफ्रेंस में जी-न्यूज प्रमुख सुधीर चौधरी व जी-बिजनेस चैनल के समीर अहलूवालिया से हुई बातचीत का टेप भी जारी किया गया। जिन्दल का आरोप था कि दोनों चैनल सहित डीएनए अखबार में खबरें रोकने के नाम पर 20 करोड़ की राशि मांगी गई थी, जो बाद में 100 करोड़ तक पहुंच गई। जी- न्यूज प्रतिनिधियों ने जिन्दल के आरोप खारिज किए। कहा, वे तो उल्टे जिन्दल की कंपनी की पोल खोलना चाहते थे कि वह अपने खिलाफ खबरें रुकवाने के लिए किस हद तक जाने को तैयार थी। जी-न्यूज ने नवीन जिन्दल पर १५० करोड़ रुपए की मानहानि का नोटिस भी दिया है।
इस प्रकरण की आमजन में कैसी प्रतिक्रिया है, पाठकजी के फोन से इसकी कुछ झालक मिल जानी चाहिए। आम जनता की जिस तरह राजनेताओं पर पैनी नजर है, उसी तरह मीडिया पर भी है। उसकी निगाहों में धूल झाोंकने की कोशिश निरर्थक है।  जिन्दल की कंपनी ने किस तरह कोयला खदान हथियाई, यह कैग की रिपोर्ट के बाद मीडिया में आई रिपोर्टों में जाहिर हो चुका है। नवीन जिन्दल पहले से ही कठघरे में हैं। जिस तरह जी-न्यूज पर आरोप लगाकर नवीन जिन्दल बरी नहीं हो सकते, वैसे ही जिन्दल पर आरोप लगाकर न्यूज चैनल बरी नहीं हो सकता। जी-न्यूज कोल ब्लॉक्स आवंटन से जुड़ी भ्रष्टाचार की खबरें निरन्तर दिखा रहा था। दर्शक उसकी साहसपूर्ण खबरों की प्रशंसा कर रहे थे। तभी जी-न्यूज पर यह दुर्भाग्यपूर्ण आरोप लगा कि यह सब धंधे का हिस्सा था। दुर्भाग्य की बात यह भी कि बचाव में जी-न्यूज लचर दलीलें दे रहा है। जो प्राथमिक तथ्य सामने आए हैं, उनके मद्देनजर न्यूज चैनल पर कौन भरोसा करेगा? क्यों करेगा? जब आप रंगे हाथ पकड़े जा चुके हों। अगर आपको नवीन जिन्दल की कंपनी का भ्रष्टाचार दिखाना था तो २० करोड़ की पेशकश ही काफी थी। उसे १०० करोड़ तक ले जाने की क्या जरूरत थी? और अगर जी-न्यूज और जी-बिजनेस के हैड जिन्दल की कंपनी से विज्ञापन की कोई डील कर रहे थे, तो सवाल उठता है कि इसकी जरूरत उस वक्त क्यों थी, जब आप कंपनी के खिलाफ लगातार खबरें दिखा रहे थे? न्यूज चैनल आसानी से नहीं छूट पाएगा। जिन्दल की कंपनी ने बाकायदा चैनल के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है। आरोप में दम नहीं होता तो न्यूज चैनलों की संस्था ब्रॉड कास्टिंग एडिटर एसोसिएशन(बीईए) जी-न्यूज के सुधीर चौधरी की सदस्यता रद्द नहीं करती। आरोपों के बाद बीईए ने छानबीन करने के लिए तीन सदस्यों की समिति बनाई थी। समिति की रिपोर्ट के बाद बीईए ने यह फैसला किया। सुधीर चौधरी बीईए के कोषाध्यक्ष भी थे। हालांकि बीईए के फैसले पर सुधीर चौधरी ने अपना विरोध दर्ज कराया है, लेकिन जो दाग लग चुका है उसे हटाने की जरूरत है। यह तभी संभव है, जब आप अपने पाक-साफ होने का प्रामाणिक सबूत भी पेश करें। यह इसलिए भी जरूरी है कि इस घटना ने पत्रकारिता के स्थापित मूल्यों को बहुत क्षति पहुंचाई है। ऐसे तो पत्रकारिता का उद्देश्य खत्म हो जाएगा।
वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने लिखा, 'जब भ्रष्टाचार का मुद्दा राजनीति को हिला रहा है, वही भ्रष्टाचार अगर मीडिया में आ जाए तो सत्ता और सरकार का काम और आसान हो जाएगा' ऐसी स्थिति में आम आदमी का क्या होगा? जिसकी पैरवी करने की मीडिया पर अहम जिम्मेदारी है।

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1 comments:

Shah Nawaz said...

Aaj ka darshak jagruk hai, sarkar, vipaksh aur media ke daanv-pench jaanta hai...

Achchha vishleshan...