भारत में हिन्दी को लेकर भले ही अभी हम संतुष्ट न हों, लेकिन विदेशों में हिन्दी बढ़ रही है। इसका श्रेय एक ओर विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों को है, वहीं विभिन्न देशों के विश्वविद्यालयों, सरकारी व निजी संस्थाओं और संगठनों को भी है, जिनके निरन्तर प्रयास हिन्दी को आगे बढ़ा रहे हैं। अमरीका में रहने वाले प्रवासी भारतीयों द्वारा स्थानीय टीवी पर 'चलो हिन्दी बोलें' नामक कार्यक्रम भी
चलता है।
हंगरी के छात्र पीटर का कहना है— 'हिन्दी भाषा से मुझो अगाध लगाव है। भारतीय राजनीति पर मैं शोध कर रहा हूं। विश्व की सभी भाषाओं में से स्पेनिश के साथ हिन्दी मेरी पसंदीदा भाषा है।'
रूस की छात्रा येव्गेनिया का कहना है— 'मुझो हिन्दी फिल्में देखना अच्छा लगता था। गाने भी पसंद आते थे। सो मैंने फैसला किया हिन्दी पढ़कर रहूंगी। और फिर मैं हिन्दी पढऩे लगी। हिन्दी जुबान ने मेरे दिल को छू लिया।'
इवान पैत्रोव का कहना है— 'स्कूल के बाद जब मुझो फैसला करना था कि मैं किस विषय को चुनूं, तभी मुझो पता चला कि मास्को विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग मौजूद है, तो मैंने वहीं दाखिला ले लिया। अब मैं भारतीय भाषाओं और इतिहास का अध्ययन कर रहा हूं।'
निकिता कुलकोव ने कहा— 'मुझो हिन्दी बोलने पर गर्व महसूस होता है।'
रूस, ब्रिटेन, हंगरी, रुमानिया आदि योरोपीय देशों के छात्र-छात्राएं गत १८ से २८ अगस्त के बीच भारत-भ्रमण पर आए हुए थे। ब्रिटेन की हिन्दी ज्ञान समिति पिछले १० वर्षों से यूरोप के प्रमुख देशों में हिन्दी ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन करती है। इस प्रतियोगिता के आधार पर चयनित विद्यार्थियों को भारत और ब्रिटेन की सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं के सहयोग से भारत-भ्रमण कराया जाता है। भारत में इन हिन्दी प्रेमी विद्यार्थियों को कई शहरों की यात्राओं पर ले जाया जाता है। इसी के तहत मेरठ विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ संवाद कार्यक्रम के दौरान ये विदेशी छात्र अपने अनुभव सुना रहे थे। इन विद्यार्थियों का मानना है कि भारतीय समाज को समझाना है तो हिन्दी को भी गहराई से समझाना होगा। भारतीय संस्कृति के प्रति आकर्षण ही इन्हें हिन्दी की तरफ खींच लाया।
किसी विदेशी को हिन्दी पढ़ते और बोलते देखकर हमें अच्छा ही लगता है। इन हिन्दी प्रेमी विदेशी विद्यार्थियों का भारत में खूब स्वागत हुआ। 28 अगस्त को ये विद्यार्थी भारत की स्मृतियां लेकर अपने देश लौट गए।
भारत में हिन्दी को लेकर भले ही अभी हम संतुष्ट न हों, लेकिन विदेशों में हिन्दी बढ़ रही है। इसका श्रेय एक ओर विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों को है, वहीं विभिन्न देशों के विश्वविद्यालयों, सरकारी व निजी संस्थाओं और संगठनों को भी है, जिनके निरन्तर प्रयास हिन्दी को आगे बढ़ा रहे हैं। न्यूयार्क सिटी के शिक्षा विभाग में नियुक्त सुषमा मल्होत्रा हिन्दी भाषा सिखाने के लिए 'स्टारटॉक' नामक कार्यक्रम का आयोजन करती हैं। इसके तहत प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ अमरीकी युवक भी हिन्दी सीख रहे हैं। 'स्टारटॉक' सरकारी कोष से चलने वाला कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य अमरीकी युवाओं को विदेशी भाषाओं की जानकारी देना है। अमरीका में रहने वाले प्रवासी भारतीयों द्वारा स्थानीय टीवी पर 'चलो हिन्दी बोलें' नामक कार्यक्रम भी चलता है जो काफी लोकप्रिय है।
विख्यात येल विश्वविद्यालय प्रतिवर्ष छात्रों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में चर्चा आयोजित करता है, जो अब अमरीका में एक राष्ट्रीय आयोजन बन चुका है। इस वाद-विवाद आयोजन में हार्वर्ड, प्रिंस्टन, कोलम्बिया जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के छात्र भाग लेते हैं। कुछ माह पूर्व आयोजित चौथी येल हिन्दी चर्चा में पेंसिलवेनिया, कार्नेल, वेल्सली, कैलीफोर्निया, लॉस एंजीलिस और टेक्सास विश्वविद्यालय के विद्यार्थी भी शामिल हुए।
हालांकि आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों के साथ बुरे बर्ताव की घटनाएं बढ़ रही हैं, लेकिन यहां भी हिन्दी की लोकप्रियता कम नहीं है। आस्ट्रेलिया के विक्टोरिया प्रान्त की सरकार ने केन्द्र से हिन्दी को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में शामिल करने का अनुरोध किया है। राज्य सरकार ने अपने पत्र में लिखा है, विक्टोरिया में हिन्दी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली दूसरी भाषा बन चुकी है।
पुर्तगाल में लिस्बन विश्वविद्यालय में हिन्दी पठन-पाठन की व्यवस्था है, तो जापान के ओसाका विश्वविद्यालय में भारत विद्या विभाग देश-विदेश के विद्यार्थियों को हिन्दी में अध्ययन की सुविधाएं प्रदान कर रहा है। चीन में न केवल बिजिंग विश्वविद्यालय बल्कि अन्य कई चीनी विश्वविद्यालयों में हिन्दी का अध्ययन कराया जाता है। चीन में हिन्दी के प्रसार के लिए जिनान विश्वविद्यालय, शेनझोन विश्वविद्यालय व युनान विश्वविद्यालयों में अध्ययन पीठ स्थापित की गई है। अब गुआंगझाग विश्वविद्यालय में भी हिन्दी के लिए पीठ कायम की जा रही है। जर्मनी और रूस का हिन्दी प्रेम सभी जानते हैं।
ऐसा नहीं है कि दुनिया के विश्वविद्यालयों में ही हिन्दी बढ़ रही है। इंटरनेट और सूचना प्रौद्योगिकी में भी हिन्दी को वर्चस्व मिल रहा है। कुछ अरसा पहले गूगल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एरिंक श्मिट की एक टिप्पणी ने हलचल मचा दी थी। उन्होंने कहा, कुछ साल में इंटरनेट पर जिन तीन भाषाओं का वर्चस्व होगा उनमें से एक हिन्दी होगी। कम्प्यूटर कंपनियों के लिए आज हिन्दी में साफ्टवेयर आधारित योजनाओं को लाना फायदे का सौदा साबित हो रहा है। याहू, गूगल, एमएसएन सब हिन्दी में आ रहे हैं। लिनक्स और मैकिन्टोश पर भी हिन्दी आ गई है। यूनिकोड ने हिन्दी को आम कम्प्यूटर उपभोक्ता के लिए सर्वसुलभ बना दिया है। यह सही है कि संचार के माध्यम के रूप में हिन्दी अभी कच्ची है। रोमन लिपि, यूनिकोड के प्रयोग व अनुवाद की भाषा को लेकर हमारे कई हिन्दी विद्वान भले ही आश्वस्त नहीं हों, लेकिन हिन्दी के प्रचलन को लगातार विस्तार मिल रहा है। उसकी लोकप्रियता का ग्राफ निरन्तर ऊंचा उठ रहा है। कोई भाषा तभी निखरती है, जब उसका प्रयोग करने वाले हों। हिन्दी को मिल रहा लगातार विस्तार उसे निखारने में मददगार ही साबित होगा।
हिन्दी चैनल और राज ठाकरे
विदेशों में हिन्दी बढ़ रही है, मगर हमारे देश में राज ठाकरे जैसे नेताओं का हिन्दी पर गुस्सा फूट रहा है। यह हिन्दी का ही असर है कि नफरत की राजनीति करने वाले नेताओं को हिन्दी से डर लगता है।
राज ठाकरे जब भी आग उगलते हैं या विवादास्पद बयान देते हैं तो उसे पूरा मीडिया कवर करता है। लेकिन राज ठाकरे हिन्दी समाचार चैनलों और अखबारों से डरे हुए हैं। कहते हैं डरा हुआ सांप ही फन उठाता है। सो राज ठाकरे ने इस बार हिन्दी समाचार चैनलों को निशाना बना डाला। बिहारियों के साथ उन्होंने महाराष्ट्र से हिन्दी चैनलों को भी खदेडऩे की धमकी दे डाली। ठाकरे कहते हैं, अगर हिन्दी समाचार चैनल उन्हें निशाना बनाना बंद नहीं करेंगे तो वे महाराष्ट्र में हिन्दी चैनल बंद करवा देंगे। ठाकरे साहब, महाराष्ट्र आपकी जागीर नहीं है। इस पर पूरे देश का हक है। जैसे मराठी चैनल और अखबार देश के किसी भी हिस्से में प्रसारित हो सकते हैं, वैसे ही हिन्दी चैनलों व अखबारों को भी महाराष्ट्र में प्रसारित होने से कोई नहीं रोक सकता। यह हक मीडिया को भारतीय संविधान ने दिया है।
चलता है।
हंगरी के छात्र पीटर का कहना है— 'हिन्दी भाषा से मुझो अगाध लगाव है। भारतीय राजनीति पर मैं शोध कर रहा हूं। विश्व की सभी भाषाओं में से स्पेनिश के साथ हिन्दी मेरी पसंदीदा भाषा है।'
रूस की छात्रा येव्गेनिया का कहना है— 'मुझो हिन्दी फिल्में देखना अच्छा लगता था। गाने भी पसंद आते थे। सो मैंने फैसला किया हिन्दी पढ़कर रहूंगी। और फिर मैं हिन्दी पढऩे लगी। हिन्दी जुबान ने मेरे दिल को छू लिया।'
इवान पैत्रोव का कहना है— 'स्कूल के बाद जब मुझो फैसला करना था कि मैं किस विषय को चुनूं, तभी मुझो पता चला कि मास्को विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग मौजूद है, तो मैंने वहीं दाखिला ले लिया। अब मैं भारतीय भाषाओं और इतिहास का अध्ययन कर रहा हूं।'
निकिता कुलकोव ने कहा— 'मुझो हिन्दी बोलने पर गर्व महसूस होता है।'
रूस, ब्रिटेन, हंगरी, रुमानिया आदि योरोपीय देशों के छात्र-छात्राएं गत १८ से २८ अगस्त के बीच भारत-भ्रमण पर आए हुए थे। ब्रिटेन की हिन्दी ज्ञान समिति पिछले १० वर्षों से यूरोप के प्रमुख देशों में हिन्दी ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन करती है। इस प्रतियोगिता के आधार पर चयनित विद्यार्थियों को भारत और ब्रिटेन की सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं के सहयोग से भारत-भ्रमण कराया जाता है। भारत में इन हिन्दी प्रेमी विद्यार्थियों को कई शहरों की यात्राओं पर ले जाया जाता है। इसी के तहत मेरठ विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ संवाद कार्यक्रम के दौरान ये विदेशी छात्र अपने अनुभव सुना रहे थे। इन विद्यार्थियों का मानना है कि भारतीय समाज को समझाना है तो हिन्दी को भी गहराई से समझाना होगा। भारतीय संस्कृति के प्रति आकर्षण ही इन्हें हिन्दी की तरफ खींच लाया।
किसी विदेशी को हिन्दी पढ़ते और बोलते देखकर हमें अच्छा ही लगता है। इन हिन्दी प्रेमी विदेशी विद्यार्थियों का भारत में खूब स्वागत हुआ। 28 अगस्त को ये विद्यार्थी भारत की स्मृतियां लेकर अपने देश लौट गए।
भारत में हिन्दी को लेकर भले ही अभी हम संतुष्ट न हों, लेकिन विदेशों में हिन्दी बढ़ रही है। इसका श्रेय एक ओर विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों को है, वहीं विभिन्न देशों के विश्वविद्यालयों, सरकारी व निजी संस्थाओं और संगठनों को भी है, जिनके निरन्तर प्रयास हिन्दी को आगे बढ़ा रहे हैं। न्यूयार्क सिटी के शिक्षा विभाग में नियुक्त सुषमा मल्होत्रा हिन्दी भाषा सिखाने के लिए 'स्टारटॉक' नामक कार्यक्रम का आयोजन करती हैं। इसके तहत प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ अमरीकी युवक भी हिन्दी सीख रहे हैं। 'स्टारटॉक' सरकारी कोष से चलने वाला कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य अमरीकी युवाओं को विदेशी भाषाओं की जानकारी देना है। अमरीका में रहने वाले प्रवासी भारतीयों द्वारा स्थानीय टीवी पर 'चलो हिन्दी बोलें' नामक कार्यक्रम भी चलता है जो काफी लोकप्रिय है।
विख्यात येल विश्वविद्यालय प्रतिवर्ष छात्रों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में चर्चा आयोजित करता है, जो अब अमरीका में एक राष्ट्रीय आयोजन बन चुका है। इस वाद-विवाद आयोजन में हार्वर्ड, प्रिंस्टन, कोलम्बिया जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के छात्र भाग लेते हैं। कुछ माह पूर्व आयोजित चौथी येल हिन्दी चर्चा में पेंसिलवेनिया, कार्नेल, वेल्सली, कैलीफोर्निया, लॉस एंजीलिस और टेक्सास विश्वविद्यालय के विद्यार्थी भी शामिल हुए।
हालांकि आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों के साथ बुरे बर्ताव की घटनाएं बढ़ रही हैं, लेकिन यहां भी हिन्दी की लोकप्रियता कम नहीं है। आस्ट्रेलिया के विक्टोरिया प्रान्त की सरकार ने केन्द्र से हिन्दी को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में शामिल करने का अनुरोध किया है। राज्य सरकार ने अपने पत्र में लिखा है, विक्टोरिया में हिन्दी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली दूसरी भाषा बन चुकी है।
पुर्तगाल में लिस्बन विश्वविद्यालय में हिन्दी पठन-पाठन की व्यवस्था है, तो जापान के ओसाका विश्वविद्यालय में भारत विद्या विभाग देश-विदेश के विद्यार्थियों को हिन्दी में अध्ययन की सुविधाएं प्रदान कर रहा है। चीन में न केवल बिजिंग विश्वविद्यालय बल्कि अन्य कई चीनी विश्वविद्यालयों में हिन्दी का अध्ययन कराया जाता है। चीन में हिन्दी के प्रसार के लिए जिनान विश्वविद्यालय, शेनझोन विश्वविद्यालय व युनान विश्वविद्यालयों में अध्ययन पीठ स्थापित की गई है। अब गुआंगझाग विश्वविद्यालय में भी हिन्दी के लिए पीठ कायम की जा रही है। जर्मनी और रूस का हिन्दी प्रेम सभी जानते हैं।
ऐसा नहीं है कि दुनिया के विश्वविद्यालयों में ही हिन्दी बढ़ रही है। इंटरनेट और सूचना प्रौद्योगिकी में भी हिन्दी को वर्चस्व मिल रहा है। कुछ अरसा पहले गूगल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एरिंक श्मिट की एक टिप्पणी ने हलचल मचा दी थी। उन्होंने कहा, कुछ साल में इंटरनेट पर जिन तीन भाषाओं का वर्चस्व होगा उनमें से एक हिन्दी होगी। कम्प्यूटर कंपनियों के लिए आज हिन्दी में साफ्टवेयर आधारित योजनाओं को लाना फायदे का सौदा साबित हो रहा है। याहू, गूगल, एमएसएन सब हिन्दी में आ रहे हैं। लिनक्स और मैकिन्टोश पर भी हिन्दी आ गई है। यूनिकोड ने हिन्दी को आम कम्प्यूटर उपभोक्ता के लिए सर्वसुलभ बना दिया है। यह सही है कि संचार के माध्यम के रूप में हिन्दी अभी कच्ची है। रोमन लिपि, यूनिकोड के प्रयोग व अनुवाद की भाषा को लेकर हमारे कई हिन्दी विद्वान भले ही आश्वस्त नहीं हों, लेकिन हिन्दी के प्रचलन को लगातार विस्तार मिल रहा है। उसकी लोकप्रियता का ग्राफ निरन्तर ऊंचा उठ रहा है। कोई भाषा तभी निखरती है, जब उसका प्रयोग करने वाले हों। हिन्दी को मिल रहा लगातार विस्तार उसे निखारने में मददगार ही साबित होगा।
हिन्दी चैनल और राज ठाकरे
विदेशों में हिन्दी बढ़ रही है, मगर हमारे देश में राज ठाकरे जैसे नेताओं का हिन्दी पर गुस्सा फूट रहा है। यह हिन्दी का ही असर है कि नफरत की राजनीति करने वाले नेताओं को हिन्दी से डर लगता है।
राज ठाकरे जब भी आग उगलते हैं या विवादास्पद बयान देते हैं तो उसे पूरा मीडिया कवर करता है। लेकिन राज ठाकरे हिन्दी समाचार चैनलों और अखबारों से डरे हुए हैं। कहते हैं डरा हुआ सांप ही फन उठाता है। सो राज ठाकरे ने इस बार हिन्दी समाचार चैनलों को निशाना बना डाला। बिहारियों के साथ उन्होंने महाराष्ट्र से हिन्दी चैनलों को भी खदेडऩे की धमकी दे डाली। ठाकरे कहते हैं, अगर हिन्दी समाचार चैनल उन्हें निशाना बनाना बंद नहीं करेंगे तो वे महाराष्ट्र में हिन्दी चैनल बंद करवा देंगे। ठाकरे साहब, महाराष्ट्र आपकी जागीर नहीं है। इस पर पूरे देश का हक है। जैसे मराठी चैनल और अखबार देश के किसी भी हिस्से में प्रसारित हो सकते हैं, वैसे ही हिन्दी चैनलों व अखबारों को भी महाराष्ट्र में प्रसारित होने से कोई नहीं रोक सकता। यह हक मीडिया को भारतीय संविधान ने दिया है।
1 comments:
ठाकरे साहब, महाराष्ट्र आपकी जागीर नहीं है। इस पर पूरे देश का हक है। जैसे मराठी चैनल और अखबार देश के किसी भी हिस्से में प्रसारित हो सकते हैं, वैसे ही हिन्दी चैनलों व अखबारों को भी महाराष्ट्र में प्रसारित होने से कोई नहीं रोक सकता। यह हक मीडिया को भारतीय संविधान ने दिया है।
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बहुत सही कहा आपने ..
जाने कुछ लोग भाषा की राजनीति कर अपना उल्लू सीधा करने से बाज नहीं आते हैं ....आम जनता भी जाने ऐसे राजनीति को कब समझ पाएगी
बहुत बढ़िया सकारात्मक प्रस्तुति के लिए आभार
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