मालवीय नगर, जयपुर से डॉ. पी.सी. जैन लिखते हैं- 'राज्य में अब तक 125 लोगों की मौत और करीब 3000 लोगों को रोग की चपेट में लेने वाले स्वाइन फ्लू से भी खतरनाक एक और महारोग पनप रहा है। और वह है नकली दवाओं का धंधा। 'पत्रिका' में 'जिन्दगी दांव पर' (23 दिसम्बर) व 'नाक के नीचे नकली का धंधा (24 दिसम्बर) शीर्षक से प्रकाशित समाचार ताजा उदाहरण हैं। अब तक तो राज्य में नकली दवाओं का काला कारोबार चल रहा था। माना जाता था, नकली दवाएं अन्य राज्यों से बनकर आती हैं। अब तो नकली दवाएं यहीं बनने लगीं! राजधानी में स्वास्थ्य विभाग के नाक के नीचे!! पता नहीं और कितनी फैक्ट्रियां नकली दवाओं की चल रही हैं। राजधानी ही क्यों अन्य दूर-दराज राज्य के हिस्सों में भी नकली दवाएं बन रही हों तो क्या गारंटी। सनद रहे कि नकली दवाओं का धंधा महामारी से कम खतरनाक नहीं जिस पर कोई एपिडेमिक एक्ट भी बेअसर साबित होगा।' पुनीत शर्मा (जयपुर) ने लिखा- 'औषधि नियंत्रण और स्वास्थ्य विभाग की मिली-भगत बगैर नकली दवाओं का धंधा असंभव है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट भी कहती है कि दुनिया में बिकने वाली 75 फीसदी नकली दवाएं भारत में बनती हैं। ये विभाग कभी अपनी पहल से नकली दवाओं का जखीरा नहीं पकड़ते। कोई इन्हें सूचना देता है तभी ये विभाग हरकत में आने का ढोंग करते हैं।' प्रिय पाठकगण! आज देश भर में आम और खास घरों में अंग्रेजी दवाओं का इïस्तेमाल होता है। स्वास्थ्य और जीवन-रक्षा से जुड़ा देश का दवा उद्योग अरबों रुपए तक पहुंच चुका है। लिहाजा नकली दवाओं के समाचारों पर पाठकों की व्यापक प्रतिक्रियाएं स्वाभाविक हैं। नकली या निम्न मानक दवाओं की बिक्री और इस्तेमाल को लेकर हर व्यक्ति चिन्तित व परेशान है। उनकी राज, समाज और मीडिया से क्या अपेक्षाएं हैं, आइए जानें। पूनम माथुर ने लिखा- 'जयपुर में पकड़ी गई ज्यादातर नकली दवाएं खांसी जुकाम की हैं। इन दिनों इन्हीं बीमारियों का सबसे ज्यादा प्रकोप है। लोग स्वाइन फ्लू के डर से भी मामूली खांसी जुकाम पर ये दवाएं बिना डॉक्टरी परामर्श के धड़ल्ले से खरीद रहे हैं। ऐसे हालात में ये नकली दवाएं कितनी खतरनाक हो सकती हैं, अंदाज लगाना मुश्किल नहीं।' जयपुर से विजय सैनी ने लिखा- 'विशेषज्ञ कहते हैं कि डायबिटीज के रोगी को उपयुक्त एंटीबायोटिक की बजाय नकली दवा देने पर किडनी में इंफैक्शन होकर उसे सैप्टीसीमिया तक हो सकता है। लम्बे समय तक नकली दवा लेने का असर सीधे खून पर पड़ता है। इसकी वजह से हड्डियां और आंख का रैटिना खराब हो सकता है। नकली दवाओं से एलर्जी और रक्त जहरीला बन सकता है। ये ऐसे विपरीत असर हैं जो इन्सान को ता-उम्र भुगतने पड़ते हैं।' विष्णु पुरी (उदयपुर) ने लिखा, 'नकली दवाओं के जानलेवा दुष्परिणामों के चलते माशेलकर समिति ने नकली दवाओं का धंधा करने वालों को मौत की सजा की सिफारिश की थी। ड्रग एक्ट के तहत नकली दवा के धंधे में दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास का प्रावधान है लेकिन आज तक किसी को यह सजा नहीं मिली।' हनुमानगढ़ से हरीश बंसल ने लिखा- 'राज्य सरकार की शुद्ध के लिए युद्ध] अभियान की तरह नकली दवा कारोबारियों के खिलाफ भी मुहिम शुरू करने की घोषणा का स्वागत है। जनता को अब इसके अमल में लाने की प्रतीक्षा है।' जोधपुर से नवनीत परिहार ने लिखा- 'अभियानों से कुछ होने जाने वाला नहीं है। जरू रत सरकारी मशीनरी को सक्षम और दुरुस्त करने की है। नकली दवाओं को जांच करने के लिए देश भर में कुल जमा 37 प्रयोगशालाएं हैं जिनमें सिर्फ 7 काम कर रही हैं। ड्रग इंस्पेक्टरों की भारी कमी हैं। स्वास्थ्यकर्मियों का नेटवर्क नहीं है। दवाओं का विशाल कारोबार और कैमिस्टों की भारी तादाद को देखते हुए जांच मशीनरी और संसाधनों का टोटा है।' नागौर से राजेन्द्र चौधरी ने लिखा- 'सरकार नकली दवा के कारोबार पर अंकुश लगाने में नाकाम रही है। चार माह पहले जयपुर में राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के सामने एक दवा विक्रेता के पास पन्द्रह नकली इंजेक्शन बरामद हुए थे। एक इंजेक्शन की कीमत 19 हजार रुपए थी। इतनी महंगी दवा का नकली पाया जाना और बाजार में बिकने के लिए आना कई शंकाएं और प्रश्न खड़े करती हैं।' पाली से कु. पायल डागा ने लिखा- 'नकली दवाओं की आम आदमी कैसे परख करे, सरकार को इसके लिए प्रचार अभियान चलाना चाहिए। अखबार और टीवी के माध्यम से लोगों को जानकारियां दी जानी चाहिए।' अलवर से हरि शर्मा ने लिखा-'नकली दवा की सूचना सरकार तक पहुंचाने पर 25 लाख रुपए तक के इनाम का प्रावधान है। लेकिन यह जानकारी आम लोगों को नहीं होने से नकली दवाओं की रोकथाम में उनकी भागीदारी शून्य है।' पाठकों की प्रतिक्रियाओं का सार है कि नकली दवाओं का व्यापार हर हाल में रोका जाए। लोग जागरू क हों तथा दवाओं की पहचान के तरीके समझें। मीडिया इन तरीकों की जानकारी लोगों तक पहुंचाए। नकली दवाओं के कारोबार को उजागर करे। प्रिय पाठकगण। मीडिया के लिए भी सचमुच यह एक महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा है। इसे पर्याप्त महत्त्व मिलना चाहिए। 'पत्रिका' सजग है। पाठकों को ड्रग एक्ट, नकली दवाओं की पहचान और परिणाम से जुड़ी कई महत्त्वपूर्ण सूचनाएं समय-समय पर दी गई हैं। नकली दवा पकड़वाओ, इनाम पाओ (17 नवम्बर), नकली और नुकसान (24 दिसम्बर) शीर्षक रिपोर्टें हाल ही में प्रकाशित ताजा उदाहरण हैं।
मुसीबतें भी अलग अलग आकार की होती है
1 year ago
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