पुणे विस्फोट पर बेंगलूरु के पाठक एस. जयरामन ने लिखा-
'फग्र्यूशन कॉलेज, पुणे की बी.ए. फस्र्ट इयर की छात्रा अनिन्दी धर ने उस दिन अपनी क्लास में पोएट्री टीचर से बड़ी मासूमियत से मृत्यु का वास्तविक अर्थ पूछा था, क्योंकि कविता में इसका जिक्र आया था। टीचर से जवाब मिला या नहीं, लेकिन अगले ही दिन खुद मौत ने उस मासूम को दबोच लिया। उन्नीस वर्षीय हंसती-मुस्कुराती यह छात्रा अपने भाई अंकिक (23), उसकी दोस्त शिल्पा (23), सहेलियां पी. सुंदरी और विनिता गडानी (22) के साथ रेस्त्रां में पार्टी मनाने आई थीं। वैलेन्टाइन डे की पूर्व संध्या थी, इसलिए रेस्त्रां में जश्न का माहौल था। तभी एक विस्फोट हुआ और ये चारों युवा हमेशा के लिए खामोश हो गए। जर्मन बेकरी रेस्त्रां की वह खुशनुमा शाम एक खौफनाक हादसे में तब्दील हो गई। हादसे में 12 लोग मारे गए, 57 घायल हुए। फिर वही सवाल, क्या ऐसे हादसे रोके नहीं जा सकते?
15 फरवरी के अंक में प्रकाशित केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम के बयान पर एक पाठक देवेश अवस्थी (जयपुर) की आवेश और व्यंग्य मिश्रित प्रतिक्रिया मिली। पहले चिदम्बरम का बयान- 'पुणे विस्फोट खुफिया चूक का परिणाम नहीं था। बल्कि आतंककारियों ने आसान निशाने को लक्ष्य बनाकर वहां धोखे से बम रखा।' देवेश ने लिखा- 'जिस तरह रेत में गर्दन छिपाकर शुतुरमुर्ग सच्चाई की अनदेखी करता है, वैसे ही गृहमंत्री कर रहे हैं। क्या चिदम्बरम देशवासियों को यह संदेश दे रहे हैं कि आतंककारियों के षड्यंत्रों की जानकारी तो सरकार को पूरी है, लेकिन उन्हें रोकना और निर्दोष लोगों को बचाना सरकार के वश में नहीं है। 'आसान निशाने' का क्या मतलब? आतंककारी धोखे से नहीं तो क्या घोषणा करके बम रखेंगे? आतंकियों ने घोषणा करके ही विस्फोट किया था। पुणे विस्फोट से सिर्फ नौ दिन पहले 5 फरवरी को इस्लामाबाद में एक रैली के दौरान जमात-उद-दावा के डिप्टी चीफ अब्दुल रहमान मक्की ने खुला एलान किया था कि जमात के ताजा हमले पुणे, दिल्ली, कानपुर और इंदौर में होंगे। क्या कर लिया सरकार ने? खुफिया चेतावनियां... रेड अलर्ट... महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सिक्योरिटी... बस...! और आम आदमी का क्या। वह बेचारा तो हमेशा असुरक्षित ही रहेगा। आखिर 'आसान निशाना' जो है वह। सचमुच दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर, हैदराबाद, बेंगलूरु आदि कितने ही भारतीय शहरों में हुए विस्फोट और आतंकी हमले खुफिया चूक के परिणाम थोड़े ही थे, आसान निशाना व आतंकियों के धोखे का परिणाम थे। वाह क्या खूब मुगालते में है हमारी सरकार!'
अहमदाबाद से शैलेन्द्र राजपुरोहित ने लिखा- 'मुंबई हमलों के बाद 14 माह तक आतंककारी खामोश रहे। लगा अब हमारे सुरक्षा-तंत्र ने उन्हें उनके बिलों में दुबके रहने को विवश कर दिया। वैसे ही जैसे 9/11 के बाद अमरीका ने किया। लेकिन पुणे विस्फोट ने इस भ्रम को तोड़ दिया है।'
भोपाल के अजय बैरागी के अनुसार- 'पुणे विस्फोट की गंभीरता को सरकार कम नहीं आंके। यह आतंककारियों का भारत के खिलाफ 'टेरर कैम्पेन' है। स्वयं चिदम्बरम ने राज्यसभा में स्वीकार किया था कि भारत पर हमला करने के लिए अलकायदा समेत कई आतंकी गुटों ने आपस में हाथ मिला लिए हैं। ऐसी ही चेतावनी अमरीकी रक्षा सचिव राबर्ट गेट्स ने पिछले दिनों हमारे रक्षा मंत्री ए।के। एंटनी को नई दिल्ली में दी थी। लिहाजा पुणे विस्फोट को आतंककारियों के मंसूबों की फिर से शुरुआत माना जाना चाहिए।' उपरोक्त प्रतिक्रियाओं के विपरीत कोटा से डी।.एस. रांका ने लिखा- 'आतंकी हमलों और विस्फोटों में केवल सरकार की नाकामी को कोसने से काम नहीं चलेगा। इजरायल की तरह आम भारतीयों को भी सुरक्षा और सतर्कता के नियम अपनाने होंगे।'
उदयपुर की सरोजबाला के अनुसार- 'अगर जर्मन बेकरी के बेयरे ने रेस्त्रां में पड़े लावारिस बैग को खोला नहीं होता तो 12 बेकसूर व्यक्तियों की जान नहीं जाती।'
जयपुर से रमेश शर्मा ने लिखा- मुंबई हमलों के बाद भारत सरकार ने स्पष्ट कहा था कि जब तक पाकिस्तान अपने आतंकी अड्डों को नष्ट नहीं करता भारत उससे बातचीत नहीं करेगा। अचानक क्या हो गया कि हम नई दिल्ली में 25 फरवरी को पाक से बातचीत करने जा रहे हैं। जबकि हमारे रक्षामंत्री ने अभी हाल ही (20 फरवरी अंक) बयान दिया है कि आज भी सीमापार 42 आतंककारी अड्डे कायम हैं और पाकिस्तान इन्हें नष्ट करने के प्रति गंभीर नहीं है।'
इंदौर से जितेन्द्र एस चौहान ने लिखा- 'पाक की दादागिरी तो देखिए, वह इस बातचीत में कोई भी मुद्दा उठाने की भारत को धमकी दे रहा है। उसने साफ कहा है कि वह कश्मीर का मुद्दा उठा सकता है। यहां तक कि बलूचिस्तान में कथित भारतीय हस्तक्षेप को भी उठाएगा। पाकिस्तान के नेता वार्ता के लिए भारत की रजामंदी को अपनी फतह के रू प में पेश कर रहे हैं।' कोलकाता से पीयूष खेतान ने लिखा- 'पच्चीस फरवरी को जब भारतीय विदेश सचिव निरू पमा राव पाकिस्तान के विदेश सचिव सलमान बशीर से बातचीत के लिए बैठे तो राव को सबसे पहले पाक को उसकी करतूतों के लिए हड़काना चाहिए। बातचीत के लिए माकूल माहौल तैयार करने की जिम्मेदारी अकेले भारत की नहीं है, पाक की भी है।'
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