tag:blogger.com,1999:blog-1855465386795410021.post6189066658509318109..comments2023-10-09T00:14:48.735-07:00Comments on आनंद जोशी: कुशवाहाजी यादेंआनंद जोशीhttp://www.blogger.com/profile/10751257266659217624noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-1855465386795410021.post-67243486514557159172023-10-09T00:14:48.735-07:002023-10-09T00:14:48.735-07:00मेरी भी यही इच्छा है की अनंत कुशवाहा जी की सभी कहा...मेरी भी यही इच्छा है की अनंत कुशवाहा जी की सभी कहानियां और चित्र कथाएं दोबारा पब्लिश किए जाएं आज की जनरेशन के बच्चों के लिए यह बहुत बहुत आवश्यक है Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1855465386795410021.post-24833473724069771962023-05-24T13:48:04.597-07:002023-05-24T13:48:04.597-07:00मेरा जन्म 1988 का है मैने पढ़ने की और चित्रकथा पढ़...मेरा जन्म 1988 का है मैने पढ़ने की और चित्रकथा पढ़ने की शुरुआत पत्रिका और बालहंस से ही की..<br /><br />पत्रिका में छपने वाली दैनिक कॉमिक स्ट्रिप का मैं रोज इंतजार करता था, लेकिन हमारे घर अखबार नहीं आता था सो स्कूल से आने के बाद पहला काम पड़ोस से मांगकर पत्रिका लाना और पढ़ना हुआ करता था..<br /><br />बालहंस के चित्रकथा विशेषांक इतने रोमांचक होते थे कि मैं कई दिनों तक उन्हें बचा कर थोड़ा थोड़ा पढ़ता था कि कहीं जल्दी खत्म ना हो जाए, ..<br />बहुत समय बाद मुझे पता चला कि यह अनंत कुशवाहा जी का काम है..<br />इस पोस्ट के अनंत जी की जो तस्वीर है, वह पत्रिका के रविवारीय में छपी थी और मैने उसे संभाल कर रखा, अनंत कुशवाहा जी की यह तस्वीर देखकर मेरे मन में उनके प्रति बेहद प्रेम और श्रद्धा उमड़ती है,<br />काश मैं उनसे मिल पाता और उन्हें बता पाता कि उनकी चित्रकथाओं का मेरे बाल मन पर कितना गहरा प्रभाव पड़ा। <br /><br />मेरी दिली तमन्ना है कि <br />अनंत जी के काम को इकट्ठा किया जाए और हो सके तो दुबारा पब्लिश किया जाए..<br /><br />आनंद जी, क्या हम इस और कुछ प्रयास कर सकते हैं?<br /><br />बालहंस के पुराने अंक भी मुझे चाहिएं..<br /> क्या पत्रिका आर्काइव्स से मुझे पुराने अंक मिल सकते हैं?<br />कृपया मदद कीजिए..<br />धन्यवादHimanshu Nandahttps://www.blogger.com/profile/10986869335185797149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1855465386795410021.post-50076172416552510552021-07-02T01:45:08.950-07:002021-07-02T01:45:08.950-07:00बालहंस! आह! बचपन की सारी यादें ताजा हो गईं मेरी अन...बालहंस! आह! बचपन की सारी यादें ताजा हो गईं मेरी अनंत कुशवाह जी का चेहरा आज पहली बार देख रहा हूँ मैं। जबकि बचपन में बालहंस जब महज दो या तीन रूपए में मिला करती थी तब से लगाकर जहां तक मुझे याद आता है संभवतः सन् 1998-99 तक मैं इसका नियमित पाठक रहा हूँ। यदि पत्रिका समूह चाहे तो बालहंस का एक पूर्व पाठक सम्मेलन भी आयोजित कर सकता है। कुशवाह जी का शाॅर्ट फाॅर्म में लिखा हुआ नाम "अकु" आज भी याद है मुझे। भोलाराम,कवि आहत, कूं कूं, हाय कितनी-कितनी सारी स्मृतियां हैं मेरे बचपन की बालहंस के साथ मैं बता नहीं सकता। आज सहज ही ठोलाराम के नाम से गूगल किया तो यह लेख सामने आया इसलिए इस पर कमेंट करके अपना मन कुछ हल्का कर लिया मैंने। हालांकि उस समय भी बालहंस को प्रतियोगिता देने वाले उसके की प्रतिद्वंदी पत्थर पत्रिकाएं जैसे चंपक, चन्दामामा, नंदन, की सारे काॅमिक्स वगैरह मौजूद थीं लेकिन फिर भी बालहंस पढ़ने का अपना ही आनंद था और यह निश्चित रूप से अनंत जी की लेखनी का ही कमाल था। अब तो संभवतः अनंत जी का स्वर्गवास हो गया होगा। यदि वे जीवित हों तो मैं प्रभु से उनके सुदीर्घ और स्वस्थ जीवन के लिए कामना करता हूँ। राम-राम।<br />🙏अमित अरविन्देकरhttps://www.blogger.com/profile/01171242958407681318noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1855465386795410021.post-76843313499901113702014-09-14T23:09:26.734-07:002014-09-14T23:09:26.734-07:00आज यूं ही बालहंस और अनंत कुशवाहा जी के बारे में जा...आज यूं ही बालहंस और अनंत कुशवाहा जी के बारे में जानने के लिए गूगल पर दोनों का नाम टाइप किया। आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है। मेरे जैसे लाखों पाठक कुशवाहा जी को कभी नहीं भूल सकते। लेकिन खेद सहित एक बात कहना चाहूंगा कि बालहंस में अब वो बात नहीं रही जो कभी हुआ करती थी। तब बालहंस पढ़ने के लिए हम बच्चे झगड़ा भी कर लेते थे और मां को बीच-बचाव करना पड़ता था। <br />Rajeev Sharma kolsiya<br />ganvkagurukul.blogspot.comfdfdfdhttps://www.blogger.com/profile/15889641803988218300noreply@blogger.com