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जयपुर करे पुकार

जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि किस तरह जनता को संकट की घड़ी में पीठ दिखाकर खड़े हो जाते हैं-यह देखना हो तो जयपुर चले आएं। मेट्रो रेल की आड़ में अंधाधुंध तोडफ़ोड़ करके शहरवासियों से उनकी प्रिय विरासत छीनी जा रही है। परकोटे में बसे शहर के प्राचीन सौन्दर्य को जिस तरह निर्ममतापूर्वक नष्ट किया जा रहा है- वैसा उदाहरण दुनिया में नहीं मिलेगा।

    मेट्रो निर्माण कार्य जब से भीतरी शहर में शुरू हुआ- कोई न कोई विरासत का कंगूरा रोज ढह रहा है। अखबार खबरों से भरे पड़े हैं मगर सरकार और शहर के जनप्रतिनिधि जनभावनाओं से बेफिक्र हैं। बार-बार की चेतावनियों के बावजूद प्राचीन नवल किशोर मंदिर तथा उदयसिंह की हवेली का हादसा हो गया। लगा, सरकार तोडफ़ोड़ रोककर एकबारगी अपने कामकाज का आकलन जरूर करेगी। पर कुछ खास नहीं हुआ। तोडफ़ोड़ जारी है।
इन हालात में शहर को अपने सीने से लगाए रखने वाला हर शख्स हैरान और मायूस है। वह जनप्रतिनिधियों से आस लगाए बैठा है।  शहर की विरासत का सत्यानाश हो तो जनता शहर के चुने हुए प्रतिनिधियों से उम्मीद नहीं करेगी तो किससे करेगी। हालत यह है कि शहर के आठों सत्तारूढ़ दल के विधायक मौन हैं। सत्ता का नशा उन पर इस कदर हावी है कि अपने ही शहर का भला-बुरा नजर नहीं आ रहा। मेट्रो आज की जरूरत है- यह किसे इनकार है, मगर जब एक-एक करके शहर की प्राचीन संरचनाएं उजाड़ी जा रही हों तो प्राथमिकता चुननी पड़ेगी। आज शहर का बाशिन्दा उनसे यही अपेक्षा करता है कि मेट्रो भले अपना काम करे- लेकिन विरासत को सहेजते हुए। उस पर हथौड़ा चलाते हुए नहीं । हथौड़ा चले तो जनप्रतिनिधि बीच में दीवार बनकर खड़ा हो ताकि जे.एम.आर.सी के इंजीनियर और मिस्त्री  संवेदनशीलता से काम को अंजाम दें। हो इसके विपरीत रहा है। शहर की खूबसूरती में चार चांद जडऩे वाली चौपड़ को तोड़ा गया। कुंड उजाड़े गए। सुरंगें तोड़ी गईं प्राचीन सीढिय़ां उजाड़ी गईं, गौमुख क्षतिग्रस्त किया गया। बरामदों का स्वरूप बदल दिया गया। चूने की संरचनाओं को सीमेन्ट और कंक्रीट के ढांचों में बदला गया। विरासत पर गिरी हर ऐसी गाज पर विधायकों ने मुंह पर पट्टी बांधे रखी। जैसे उनका इस शहर की विरासत से कोई वास्ता न हो। क्या जनता इन्हें शहर का प्रतिनिधि कहेगी? दोनों सांसद भी चुप्पी साधे हैं। और तो और 91 में से अधिकांश पार्षद मौन हैं। सत्तारूढ़ दल के पार्षदों के मुंह से चूं तक नहीं निकल रही।

जनता ने जिसको शहर का सर्वाधिक दायित्व सौंपा, वह महापौर भी शहर की विरासत को चुपचाप उजड़ता हुआ देख रहे हैं। आखिर जनता अपना दर्द किसको सुनाए। कांग्रेस के पूर्व विधायक हार से हताश होकर ऐसे बैठे कि  उन्हें कुछ सूझा ही नहीं रहा। एकाध धरना-प्रदर्शन से आगे नहीं बढ़े। शहर के लिए जनता के साथ मिलकर सरकार से लडऩे की कोई तैयारी नहीं। विरासत को बचाने की जिम्मेदारी जिस पुरातत्च विभाग पर है उसके मुखिया तो हृदयहीन होकर विरासत को बरबाद करने में ही सहयोग कर रहे हैं। उन्होंने अपने विभाग को नाकारा बनाकर रख छोड़ा है। विभाग ने पुरा-महत्व के निर्माणों से छेड़छाड़ करने की जे.एम.आ.सी  को खुली छूट दे दी। जिला कलक्टर, जेडीए आयुक्त, नगर निगम आयुक्त आदि सब को अगर शहर की विरासत से हो रही खिलवाड़ वैधानिक लग रही है तो इन्हें धिक्कार ही कहा जाना चाहिए।
जयपुर की जनता की आस न्यायपालिका से रहती है। जनता से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण मामलों में न्यायपालिका स्वत: प्रसंज्ञान लेक र कार्रवाई करती रही है। पर जनता में अभी इस ओर भी निराशा का भाव है जो अच्छा संकेत नहीं। संवैधानिक पदों पर बैठे जिम्मेदार व्यक्तियों को ऐसे गंभीर मामलों में चुप नहीं रहना चाहिए। शहर की विरासत का प्रश्र दल और राजनीति से ऊपर है। सरकार इसके दूरगामी नतीजों को लेकर न जाने क्यों चिंतित नहीं हैं।
एक तरफ सरकार राज्य में विरासत संरक्षण अधिनियम-2014 लेकर आने की मंशा रखती है। दूसरी तरफ विरासत विनाशक कर्म कर रही है। जयपुर को कौन पर्यटक देखने के लिए आएगा? देश, विदेश के पर्यटक यहां दुर्ग-महल, प्राचीन मंदिर, हवेलियां, कलात्मक जाली-झारोखेयुक्त निर्माण, अद्भुत गुलाबी वास्तुशिल्प, चौपड़ें, बाजार आदि के  सौन्दर्य को निहारने आते हैं। ये उजड़ गए तो जयपुर में क्या बचेगा।
आज जयपुर की यही पुकार है कि शहर का  हर वासी, जनप्रतिनिधि, विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, राजनीतिक दल और सामाजिक संस्थाओं से जुड़े लोग यह संकल्प करें कि मेट्रो से उन्हें गुरेज नहीं-लेकिन विरासत को नष्ट करने वाली शहर की एक भी ईंट नहीं टूटेगी। जिन्होंने अब तक विरासत को उजाड़ा है, उनके खिलाफ नामजद आपराधिक मुकदमा दर्ज होना चाहिए। गैर-जिम्मेदार अफसरों को तुरन्त निलंबित करना चाहिए। कड़ा रुख अख्तियार किए बगैर हम जयपुर की विरासत को बचा नहीं सकेंगे। आने वाली पीढिय़ों के हम गुनहगार होंगे।

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