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एम.वी. कामथ का जाना

कामथ साहब ने आजीवन जो पत्रकारिता की वह कम गंभीर नहीं थी। वे जहां भी रहे अपने काम की गहराई और गंभीर विवेचना के लिए पहचाने गए। दरअसल, उनका आशय यह था कि एक युवा पत्रकार अपने पेशे पर ध्यान केन्द्रित रखे। पेशेगत जरूरतों और सच्चाइयों को समझे तथा लगातार सक्रिय रहते हुए अपनी योग्यता में निखार लाए।

गत सप्ताह मीडिया-जगत को बड़ी क्षति हुई। पत्रकारिता को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में जिस शख्सियत का नाम अदब से लिया जाता है, वह हमारे बीच नहीं रहे। ९३ वर्षीय माधव विट्ठल कामथ एम.वी. कामथ के नाम से मशहूर थे। उनका सम्पूर्ण जीवन सक्रियता की मिसाल था। आधी सदी से भी अधिक वर्षों तक उन्होंने पत्रकारिता की। लेखन-कर्म तो वे अंतिम समय तक करते रहे। उन्होंने करीब 40 पुस्तकें लिखीं। इनमें नरेन्द्र मोदी पर 'द आर्किटेक्ट आफ ए माडर्न स्टेट' पुस्तक भी शामिल है। उनके लेखन की चर्चा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर की जाती है। जीवन के 30 वर्ष उन्होंने विभिन्न देशों में गुजारे और पेरिस, जिनेवा, न्यूयार्क, ब्रूसेल्स, वाशिंगटन, लंदन जैसे शहरों से भारत के लिए पत्रकारिता की। उनके अनुभवों का दायरा व्यापक था। इसलिए वे पत्रकारिता को भी व्यापक नजरिए से देखते थे। अपनी वैचारिक प्रतिबद्धताओं के बावजूद वे मानते थे कि पत्रकारीय-कर्म विशुद्ध पेशेवर होना चाहिए। एक पत्रकार को सिर्फ एक अच्छा पत्रकार बनने की कोशिश करनी चाहिए और सदैव पाठकों को जेहन में रखना चाहिए। पत्रकार को अपने व्यक्तिगत आग्रह-दुराग्रह से ऊपर उठना चाहिए और अपनी क्षमता, विवेक और समझादारी को लगातार विकसित करना चाहिए। वे एक पत्रकार और समाजोत्थान के लिए कार्य करने वाले कार्यकर्ता के बीच स्पष्ट विभाजक रेखा खींचते थे। उनका यह दृष्टिकोण एक युवा पत्रकार को इंटरव्यू के दौरान स्पष्ट होता है। वे उसकी शंकाओं का समाधान करते हुए कहते हैं- अगर आप एक पेशेवर पत्रकार हैं तो यह मत समझिाए कि आपका काम क्रान्ति लाना है या आप इस दुनिया को बदल कर रख देंगे। यह काम आप क्रान्तिकारियों पर छोड़ दीजिए। विनोद में वे यह भी कह जाते हैं- खुद को इतनी गंभीरता से मत लो बिरादर! लेकिन सचमुच विनोद में ही। वरना कामथ साहब ने आजीवन जो पत्रकारिता की वह कम गंभीर नहीं थी। वे जहां भी रहे अपने काम की
गहराई और गंभीर विवेचना के लिए पहचाने गए। दरअसल, उनका आशय यह था कि एक युवा पत्रकार अपने पेशे पर ध्यान केन्द्रित रखे। पेशेगत जरूरतों और सच्चाइयों को समझो तथा लगातार सक्रिय रहते हुए अपनी योग्यता में निखार लाए। इधर-उधर ध्यान बांटने पर भटकाव होता है। एक अच्छा पत्रकार समाज को बहुत कुछ दे सकता है। यही कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। इसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा- मेरे गुरु एस. सदानन्द जो शीर्षस्थ पत्रकार रहे, कहते थे, आप पत्रकारिता में गंभीर काम करके
बताइए परन्तु अपने आप पर गंभीरता मत लादिए। साफ है, एम.वी. कामथ ने जो पत्रकारिता की, उसे उन्होंने बुलंदियों पर पहुंचाया लेकिन खुद जमीन से
जुड़े रहे।
वे कहते थे, अगर आप पत्रकार हैं तो आपको लगातार काम करते रहना होगा, तभी आपकी पहचान बनेगी। कभी-कभार कोई बड़ी 'स्टोरी' करके बैठ जाने से काम नहीं चलेगा। आपको हमेशा अपने प्रदर्शन से स्वयं को सिद्ध करते रहना पड़ेगा। क्योंकि आप जब अच्छा काम करते हैं तो पाठक की आपसे अपेक्षाएं भी बढ़ जाती हैं। वे कहते थे, लोग आप पर भरोसा करते हैं। उनके भरोसे को कायम रखना आपकी जिम्मेदारी है। कभी-कभार एक पत्रकार वह लिख देता है, जो उसे कभी नहीं लिखना चाहिए। इसके चलते लोगों का भरोसा टूटता है। वह फिर हासिल नहीं होता। पत्रकारिता में यह बहुत खतरनाक स्थिति होती है। इसलिए वे मानते थे- जो आप
लिखते हैं उससे ज्यादा महत्त्वपूर्ण वह है, जो आप नहीं लिखते। उनके सोचने का यह अपना अंदाज था और यही अंदाज उन्होंने अपने जीवन में भी लागू किया। वे उत्कृष्ट पत्रकार थे। इसका प्रमाण उनकी अनेक रिपोर्टें हैं जो उन्होंने लिखी। भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों का दौरा करके उन्होंने एक विस्तृत रिपोर्ट लिखी जो 'इलेस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया' में 'सेवन सिस्टर्स' शीर्षक से प्रकाशित हुई। ७० के दशक की इस रिपोर्ट को आज भी कई पत्रकार याद करते हैं। कश्मीर पर भी उन्होंने निर्भीकता से लिखा। शेख अब्दुल्ला की गिरफ्तारी के दौरान उन्होंने श्रीनगर में रहकर जो रिपोर्टिंग की वह जोखिम भरी थी लेकिन उन्होंने परवाह नहीं की।
कामथ साहब का सुदीर्घ जीवन निरन्तर सक्रियता और उपलब्धियों से परिपूर्ण रहा। लेखन से उन्हें जबरदस्त लगाव था। ९० वर्ष की आयु तक वे करीब-करीब रोजाना लिखते रहे। यह संयोग ही कहा जाएगा कि वे आजीवन प्रिंट मीडिया से जुड़े रहे मगर उम्र के आखिरी पड़ाव के दौर में इलेक्ट्रानिक मीडिया से संबद्ध प्रसार भारती के अध्यक्ष बने। देश को आजादी मिलने से पूर्व १९४६ में उन्होंने अपने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत मुम्बई में 'फ्री प्रेस जनरल' से की। वे संडे टाइम्स के सम्पादक रहे। विदेशों से उन्होंने 'टाइम्स आफ इंडिया' के लिए रिपोर्टिंग की।' इलेस्ट्रेटेड वीकली' साप्ताहिक पत्रिका के सम्पादक के रूप में उन्होंने इसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। वे मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ कम्यूनिकेशन के अध्यक्ष भी रहे। पत्रकारिता, इतिहास, पर्यावरण, राजनीति सहित विभिन्न विषयों पर लिखी उनकी पुस्तकों की लम्बी सूची है जिनमें भारतीय विद्या भवन से प्रकाशित 'रिपोर्टर एट लार्ज' के अलावा 'गांधी, ए स्प्रीचुअल जर्नी', 'ऑन मीडिया, पालिटिक्स एंड लिटरेचर', 'द परसूइट ऑफ एक्सीलेस' की विशेष चर्चा की जाती है। वे 'पद्मभूषण' से नवाजे गए और अनेक मान-सम्मान और पुरस्कार उनके नाम रहे।
कामथ साहब में जो अपने पेशे के प्रति लगाव, अनुशासनप्रियता, निरन्तर लेखन और अध्ययनशीलता थी वह आज के पत्रकारों के लिए एक प्रेरक मिसाल है। उनका जाना अपूरणीय क्षति है। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!

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