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एग्जिट पोल और चुनाव नतीजे

अंतिम मतदान और चुनाव परिणाम की घोषणा के बीच का अधिकांश समय मीडिया में विभिन्न एजेंसियों के एग्जिट पोल पर केन्द्रित विश्लेषणों में गुजरा। एग्जिट पोल कितने उपयोगी और खरे हैं, इस पर फिर बहस हुई।
मतदान करने के बाद हर कोई जानने को उत्सुक रहता है कि चुनाव परिणाम क्या होगा। एग्जिट पोल की संरचना शायद इसीलिए हुई होगी। १२ मई की शाम अब तक का सबसे लम्बा लोकसभा चुनाव सम्पन्न होते ही टीवी चैनलों पर एग्जिट पोल की झाड़ी लग गई। लोगों ने भी इन्हें रुचि लेकर देखा और पढ़ा। नौ चरणों के मतदान की प्रतीक्षा काफी उबाऊ हो चली थी। अंतिम मतदान के बाद सबकी नजरें चुनाव परिणामों पर टिकी थी। इसमें दो राय नहीं कि लोगों की जिज्ञासा का सम्पूर्ण समाधान १६ मई के चुनाव परिणामों से ही हुआ। इस बार देश के करीब ५५ करोड़ नागरिकों ने मतदान में हिस्सेदारी निभाई थी। अंतिम मतदान और चुनाव परिणाम की घोषणा के बीच का अधिकांश समय मीडिया में विभिन्न एजेंसियों के एग्जिट पोल पर केन्द्रित विश्लेषणों में गुजरा। एग्जिट पोल कितने उपयोगी और खरे हैं, इस पर बहस हुई। एग्जिट पोल हमेशा बहस और विवाद का विषय रहे हैं। यहां हम यह जानते हैं कि गत चार माह के दौरान देश में हुए दो चुनावों के दौरान एग्जिट पोल की भूमिका क्या रही। नवम्बर-दिसम्बर 2013 में पांच राज्यों के चुनाव के बाद अप्रेल-मई 2014 में लोकसभा चुनाव हुए। विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यत: पांच एग्जिट पोल सामने आए। ये थे- इंडिया टुडे- ओ.आर.जी., टाइम्स नाऊ- सी वोटर, आई.बी.एन.7- सी.एस.डी.एस., ए.बी.पी.- नीलसन और टुडेज- चाणक्य। लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्यत: छह एग्जिट पोल रहे। ये थे- टाइम्स नाऊ-ओ.आर.जी., सी.एन.एन.आई.बी.एन.- सी.एस.डी.एस., हेडलाइन्स टुडे- सिसरो, ए.बी.पी.- नीलसन, न्यूज 24-टुडेज चाणक्य और सी वोटर-इंडिया टीवी।
लोकसभा चुनाव में सभी एग्जिट पोल में भाजपा नीत एन.डी.ए. को आगे और कांग्रेस नीत यू.पी.ए. को पीछे बताया गया। यहां तक कि सभी सर्वेक्षणों में एन.डी.ए. को पूर्ण बहुमत मिलता बताया गया। केवल टाइम्स नाऊ- ओ.आर.जी. के सर्वेक्षण ने एन.डी.ए. को पूर्ण बहुमत (272) के आंकड़े से दूर (257) रखा। हालांकि यू.पी.ए. को इसने भी काफी पीछे (135) माना। लेकिन नरेन्द्र मोदी या भाजपा के पक्ष में लहर का अनुमान कोई भी नहीं लगा पाया सिवाय एक सर्वेक्षण एजेन्सी के। न्यूज-24 टुडेज चाणक्य ने अकेले भाजपा को पूर्ण बहुमत के आंकड़े से काफी आगे (291) पहुंचा दिया जो चुनाव परिणाम (282) के करीब रहा। इसी सर्वे में एन.डी.ए. को 340 सीटें दी गईं जो अनुमान के काफी करीब 336 (चुनाव परिणाम) रही। लेकिन कांग्रेस की इतनी दुर्गति होगी, इसका अनुमान कोई नहीं लगा पाया। यू.पी.ए. के लिए सर्वाधिक उदार टाइम्स नाऊ का सर्वे रहा जिसने उसे 135 सीटें दी। लेकिन कांग्रेस को सभी ने दो अंकों में ही समेट कर रखा। जहां तक तीसरे मोर्चे या अन्य का सवाल है तो इनके हिस्से में आई सीटों 148 (चुनाव परिणाम) के आस-पास ही प्राय: सभी सर्वेक्षणों के निष्कर्ष रहे। सी.एन.एन.आई.बी.एन.- सी.एस.डी.एस. का एग्जिट पोल को ही अपवाद (170) कह सकते हैं। लोकसभा चुनाव के संदर्भ में अगर इन एग्जिट पोल का आकलन करें तो यह कहना पड़ेगा कि सोलहवीं लोकसभा की तस्वीर कैसी बनेगी, इसका काफी हद तक आभास मतदाताओं को मिल चुका था। बाद में चुनाव परिणाम ने इसकी पुष्टि भी की। यह जरूर है कि भाजपा के प्रति मतदाता ऐसा ऐतिहासिक रुझान दिखाएंगे- यह आकलन एग्जिट पोल नहीं कर सके। लेकिन यह आकलन तो कोई नहीं कर सका था।
भाजपा भी नहीं। एग्जिट पोल लोगों की जिज्ञासाओं को सहलाने का काम कर सकते हैं। शान्त करने का नहीं। एग्जिट पोल चुनाव परिणाम की दिशा बता सकते हैं। और यही एग्जिट पोल ने किया। दिसम्बर माह में हुए पांच राज्यों के चुनावों में भी यही हुआ था। एग्जिट पोल के निष्कर्ष चुनाव नतीजों के काफी करीब रहे। लगभग सभी सर्वे में बताया गया कि दिल्ली में शीला दीक्षित और राजस्थान में अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकारें खतरे में हैं। हालांकि दिल्ली और राजस्थान में दलों की सीटों के आकलन में ज्यादातर सर्वेक्षण गड़बड़ाए लेकिन हार-जीत के नतीजे कमोबेश वही रहे जो चुनाव परिणाम में सामने आए। छत्तीसगढ़ में भाजपा-कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला बताया गया। इसके बावजूद सभी सर्वेक्षणों में भाजपा को बढ़त बताई गई थी। मध्य प्रदेश में सभी एग्जिट पोल में भाजपा की सत्ता में वापसी दर्शाई गई थी। यह दूसरी बात है कि दो-तिहाई सीटों से वापसी का अनुमान सिर्फ एक सर्वे ही लगा पाया। दिल्ली में हालांकि 'आप' पार्टी को लेकर ज्यादातर सर्वेक्षण सही अनुमान नहीं लगा पाए थे लेकिन त्रिशंकु विधानसभा के संकेत जरूर दे दिए थे। राजस्थान में जिस कदर कांग्रेस की दुर्गति हुई, उसका अनुमान कोई एग्जिट पोल नहीं लगा पाया। भाजपा की वापसी के मामले में सबके निष्कर्ष समान थे।
   एक बार फिर यही कि एग्जिट पोल चुनाव परिणाम की केवल दिशा बताते हैं, नतीजे नहीं। यह सही है कि दिशा बताने में भी एग्जिट पोल पूर्व में कई बार चूके हैं इसके बावजूद लोकतांत्रिक ढांचे में इन सर्वेक्षणों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में जो उपयोगिता है, वह बनी रहेगी।

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