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मतदान और सोशल मीडिया

सोशल मीडिया पर खासकर युवा  परिचितों और विभिन्न समूहों को मतदान के लिए प्रेरित कर रहे हैं। देखने में आ रहा है कि 40 के आस-पास की पीढ़ी भी मतदान के लिए सोशल नेटवर्किंग का भरपूर इस्तेमाल कर रही है।

आम चुनाव का छठा चरण 24 अप्रेल को सम्पन्न होगा जिसमें 12 राज्यों के 117 सीटों पर मतदान होगा। इससे पहले (17 अप्रेल) पांचवें चरण में 121 सीटों पर मतदान के साथ ही देश की तकरीबन आधी संसदीय सीटों पर मतदान हो चुका है। मतदान के आंकड़ों को देखें, तो साफ है कि लगभग सभी राज्यों में मतदान प्रतिशत बढ़ा है। पांचवें चरण के मतदान में मणिपुर जरूर अपवाद है जहां गत बार (2009) की तुलना में तीन फीसदी वोटिंग घटी। शेष राज्यों में मतदान प्रतिशत का आंकड़ा लगातार बढ़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है। इसमें दो राय नहीं कि लोगों में मतदान के प्रति रुझाान बढऩे के कई कारण हैं। इनमें चुनाव आयोग की सक्रियता, सामाजिक संगठनों, संस्थाओं, प्रिन्ट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का पूरा योगदान है। लेकिन विश्लेषकों के अनुसार इसमें सोशल मीडिया की सबसे बड़ी भूमिका है। अब तक के सभी चरणों के मतदान सोशल नेटवर्किंग पर छाये हुए हैं।
सोशल मीडिया पर लोग खासकर युवा फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्स एप, इंस्टाग्राम, लिंक्ड इन आदि पर मित्रों, शुभचिन्तकों, परिचितों और विभिन्न समूहों को मतदान के लिए प्रेरित कर रहे हैं। देखने में आ रहा है कि 40 के आस-पास की पीढ़ी भी मतदान के लिए सोशल नेटवर्किंग का भरपूर इस्तेमाल कर रही है। लोग मतदान के बाद स्याही लगी अंगुली दिखाते हुए तस्वीरें शेयर कर रहे हैं। मतदान वाले दिन तो 'ट्विटर' पर 'आई वोटेड' टॉपिक दिनभर ट्रेंड करता है। व्हाट्स एप पर मतदान के लिए लाखों की तादाद में मैसेज शेयर किए जा रहे हैं। जब आपका कोई परिचित या प्रिय व्यक्ति फेसबुक या व्हाट्स एप पर कहता है, 'मैंने वोट डाला, आप भी डालें', तो इसका आप पर असर जरूर पड़ता है। इस तरह के संदेशों की सोशल मीडिया में जैसे बाढ़ आई हुई है।
हालांकि वर्ष 2009 में भी और कुछ माह पहले हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी सोशल मीडिया का असर देखा गया था। लेकिन आम चुनाव-2014  इस मायने में अब तक के सभी चुनावों में विशेष है। मतदान प्रतिशत बढऩे का कारण कई राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि खास राजनेता और दल के प्रति लोगों का इस बार जबरदस्त रुझान है। कुछ हद तक वे सही हो सकते हैं। लेकिन मतदान बढऩे के पीछे सोशल मीडिया की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता। इस बार का चुनाव अनूठा है कि वर्चुअल संसार राजनीतिक प्रचार का सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। इसका आभास आम चुनाव-२०१४ की घोषणा से काफी पहले हो चुका था। आपको याद होगा आई.आर.आई.एस. नालेज फाउंडेशन तथा इंटरनेट एवं मोबाइल एसोसिशन ऑफ इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में एक अध्ययन किया गया था जिसकी मीडिया में खूब चर्चा हुई थी। 'पत्रिका' के पाठक इस स्तंभ में विस्तृत रूप से    (7 जनवरी 2014) इस बारे में पढ़ चुके हैं। इस अध्ययन में कहा गया था कि 543 लोकसभा सीटों में से 160 सीटों के नतीजों को सोशल मीडिया प्रभावित कर सकता है। इस अध्ययन के बाद देश के राजनीतिक मिजाज में खासा परिवर्तन आ चुका है। हम बात चुनाव परिणामों पर प्रभाव की नहीं कर रहे। हमारा फोकस देशव्यापी मतदान प्रतिशत बढऩे पर है।
अनेक बड़े शहरों में बढ़ता हुआ मतदान का आंकड़ा इस बात का सबूत है कि पढ़ा-लिखा शहरी वर्ग भी वोटिंग के लिए बड़ी तादाद में घर से निकलकर आया है। देश में करीब 20 करोड़ इंटरनेट यूजर्स हैं। फेसबुक के मामले में भारत दुनिया का नं. 2  देश है। यहां करीब 14 करोड़ उपभोक्ता शहरी हैं। वे एक-दूसरे से मनोरंजन के साथ ही ज्वलंत मुद्दों और राजनीतिक विषयों पर खुलकर विमर्श कर रहे हैं। ऐसे में यह विशाल समूह मतदान के प्रति उदासीन रहे, यह संभव नहीं। दूसरी ओर गांवों में भी यह समूह तेजी से विस्तार पा रहा है। इंटरनेट एवं मोबाइल एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की विकास दर शहरों से भी ज्यादा है, जो इस समय 58 फीसदी सालाना तक पहुंच गई है। सोशल नेटवर्किंग पर सक्रिय भारत के गांवों-शहरों में एक विशाल और नए किस्म का राजनीतिक समूह बन चुका है। यह समूह अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हुए नजर आता है।
क्या कहता है विदेशी मीडिया
चुनावों को लेकर देश के मीडिया और राजनीतिक पंडितों के अपने-अपने विश्लेषण और अनुमान है। लेकिन नौ चरणों में हो रहे हमारे इन चुनावों को विदेशी मीडिया किस नजर से देख रहा है, आइए जानें—
गार्जियन ने नरेन्द्र मोदी की चर्चा करते हुए 'मोदी नोमिक्स' यानी गुजरात पैटर्न की अर्थव्यवस्था को तेजी से विकसित जरूर बताया लेकिन अखबार के दृष्टिकोण में गुजरात मानव विकास सूचकांक के मामले में निराश करता है।
द साउथ  चाइना पोस्ट ने भारत के अगले प्रधानमंत्री को सलाह देते हुए लिखा कि उसे चीन और भारत के संदर्भ में व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। अखबार के अनुसार व्यापार और कूटनीतिक सम्बन्ध दोनों देशों के बीच सबसे उत्तम रास्ता है।
फोरेन अफेयर्स का मानना है कि भारत में कोई भी प्रधानमंत्री का पद संभाले, उसके लिए विदेश नीति में कोई नाटकीय और दूरगामी परिवर्तन करना संभव नहीं होगा।
द न्यूयार्क टाइम्स ने मौजूदा चुनावों के संदर्भ में लिखा—तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ऐसी शख्सियत हैं जो अगली किसी भी साझाा सरकार को बनाने या तोडऩे में मुख्य भूमिका अदा कर सकती हैं।

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