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पात्र जुड़ें, फर्जी रुकें

टिप्पणी
चुनावों में ज्यादा से ज्यादा लोग मतदान में हिस्सा लें —  लोकतंत्र की सफलता का यह मूलमंत्र है। हाल ही पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में लोगों ने उत्साहपूर्वक भागीदारी निभाई। मतदान के रिकॉर्ड टूटे। गड़बडिय़ां भी सामने आईं। ऐन वक्त पर कइयों के नाम मतदाता सूचियों से गायब हो गए। लेकिन कुल मिलाकर जो मतदान प्रतिशत रहा, वह उत्साहित करने वाला था। अब आम चुनाव की तैयारी है। जयपुर जिले में मतदाता सूचियों में नाम जुड़वाने वालों की भारी तादाद है। लंबी कतार देखकर थोड़ी हैरत भी होती है। अभी दो माह पहले तक मतदाता सूचियों में नाम जुड़वाने के राज्य भर में कार्यक्रम चल रहे थे। गत वर्ष यह सिलसिला लगातार चलता रहा था। ऐसे में अकेले जयपुर जिले में मतदाता सूची में नाम जुड़वाने वालों की संख्या व आंकड़े चौंकाते हैं। थोड़े से दिनों के चुनाव आयोग के कार्यक्रम में ही करीब 2 लाख लोगों ने मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए आवेदन कर दिए।
विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण नामक इस कार्यक्रम की समय सीमा 7 जनवरी तय थी, लेकिन आवेदनों को देखते हुए अगले दिन भी इन्हें जमा कराने का काम जारी रखना पड़ा। शायद कुछ दिन यह कार्यक्रम और बढ़ाना पड़े। जयपुर जिले की यह बानगी है तो पूरे राज्य की क्या तस्वीर होगी, अनुमान लगाया जा सकता है। दिसम्बर में राज्य विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मतदाता सूचियों में नाम जुड़वाने का क्रम पूरा हुआ था। सवाल है क्या दो माह के भीतर इतनी बड़ी तादाद में नए मतदाता जुडऩे के लिए कतार में लगे हैं या फिर ये वे लोग हैं जो मतदाता सूची में नाम जुड़वाने से वंचित रह गए थे? या फिर ऐनवक्त पर सूचियों से जिनके नाम कट गए, वे लोग हैं ये? मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए 1 जनवरी तक 18 वर्ष की आयु जरूरी है।
संभव है पहली जनवरी के बाद पात्र हुए युवाओं की यह तादाद हो। लेकिन आंकड़े देखकर इसकी पुष्टि नहीं होती। जो आंकड़े सामने आए हैं, उनके अनुसार दो लाख में से 25 फीसदी आवेदक ही इस श्रेणी में है। यानी 75 फीसदी आवेदक विभिन्न आयु वर्ग के हैं। ये सभी लोग पहली बार तो आवेदन कर नहीं रहे होंगे। इनमें से कई अन्य जगहों से स्थानान्तरित होकर आए होंगे। कई वे होंगे, जिन्होंने पहले आवेदन किया था पर सूची में नाम दर्ज नहीं हुआ। ऐसे लोग भी कतार में होंगे, जिनका नाम ताजा सूची से गायब हो गया था। कई फर्जी नाम भी हो सकते हैं। तात्पर्य यह है कि अगर सारे लोग मतदाता सूचियों में नाम जुड़वाना चाहते हैं तो कहीं न कहीं यह चुनाव प्रबंधन की खामियों का नतीजा है। अभी राज्य भर से आंकड़े आना बाकी है।
जयपुर का उदाहरण यह दर्शाता है कि तमाम दावों के बावजूद मतदान सूची में नाम जुड़वाने की प्रक्रिया अभी कई खामियों की शिकार है। यह मानकर भी चलें कि मतदाता सूचियों में नाम जुड़वाने के लिए कोई फर्जीवाड़ा नहीं हो रहा है तो भी थोड़े से अंतराल के बाद ही अगर इतने आवेदक खड़े हो गए हों तो जरूर कहीं न कहीं गड़बड़ी है। नामों की जांच-परख अच्छी तरह से हो। बल्क में आवेदन स्वीकार न हो। 23 हजार आवेदन तो शुद्धीकरण के आए हैं। इससे साफ है सूचियों की जांच का काम लापरवाही से हुआ। इसमें दो राय नहीं कि कोई भी पात्र व्यक्ति सूची में दर्ज होने से वंचित नहीं होना चाहिए, लेकिन यह भी जरूरी है कि सूची पूरी तरह से निर्दोष और मुकम्मल हो। फर्जी नाम दर्ज न हो।

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