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खोदा पहाड़ निकली चुहिया!

टिप्पणी
राजस्थान में नई सरकार बनने के बाद घोषणा हुई थी कि शीघ्र ही सरकारी विभागों से जुड़ी 60  दिवसीय कार्ययोजना पेश की जाएगी। सुनकर थोड़ी हैरत हुई थी। सिर्फ 60  दिवसीय ही क्यों? पूरे पांच साल की क्यों नहीं? फिर लगा सरकार जनता से जुड़े कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कार्यों की प्राथमिकता तय करना चाहती होगी जो एक निश्चित समय-सीमा के भीतर पूरे हो जाने चाहिए। जनता के भारी ऐतिहासिक समर्थन से चुनी गई सरकार को भी लगा होगा कि उसे जनता का कर्ज लौटाने के लिए कुछ ऐसे काम करने चाहिए जो एक छोटी टाइम लाइन में बंधे हों। यह बात भी रही होगी कि दो माह बाद लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लग जाएगी। शुरू के दो माह आमतौर पर 'हनीमून पीरियड' के निकल जाते हैं। यानी सरकार बनने के चार-पांच माह बाद भी अगर वह कुछ काम न कर पाई तो जनता में बुरा संदेश जाएगा।
सरकार ने सही दिशा में सोचा। लेकिन माह भर इंतजार के बाद सामने आई साठ दिवसीय कार्ययोजना को जब देखा तो सब काफूर हो गया। खोदा पहाड़ और निकली चुहिया! यह कैसी कार्ययोजना। जिसमें न तो कोई प्राथमिकता है और न ही कोई जरूरी-गैर जरूरी कार्यों का विभाजन। 'गैर जरूरी' इस अर्थ में कि इन कार्यों की 60 दिन में क्रियान्विति की न तो कोई जरूरत है और न ही वह संभव है। विभागों ने सतही तौर पर जैसे एक सूची तैयार कर दी, जिसमें बिन्दुवार काम गिना दिए गए हैं। ऐसे-ऐसे काम हैं जिन्हें देखकर साफ है कि इनकी क्रियान्विति तो कोई लक्ष्य ही नहीं है। समय-सीमा के भीतर तो कतई नहीं।
क्या प्रदेश भर में 56 हजार किलोमीटर लंबी सड़कों की मरम्मत 60 दिवस में की जा सकेगी? राज्य में साढ़े चार हजार कम्प्यूटर लैब पांच साल में लगनी हैं तो दो हजार लैब फरवरी तक कैसे स्थापित होंगी! विभागों की कार्य सूची में ऐसे कई कार्य हैं जिन्हें पूरा करने के लिए कुछ साल चाहिए। तो कुछ कार्य ऐसे भी हैं जो 60 मिनट में किए जा सकते हैं। क्या तीन विश्वविद्यालयों के नाम परिवर्तन के लिए भी 60 दिन चाहिए? साफ-सफाई के रूटीन के काम भी शामिल करने की क्या तुक है! सबसे बड़ी बात यह है कि 60 दिन में काम पूरे नहीं हुए तो कौन जिम्मेदार होगा? इस पर खामोशी है।
कार्यों की सूची से साफ है कि नौकरशाही ने अपनी बला टाली है। सरकार का हुकुम था, इसलिए बजा दिया। लगता है इन कार्यों को तय करते समय 4 नामी-गिरामी मंत्रियों की समिति ने कुछ ध्यान ही  नहीं दिया। अफसरों ने जो परोसा वह पेश कर दिया। अफसरशाही की हठधर्मिता तो देखिए कि विभागों को योजना में संशोधन के लिए कहा भी गया तो अफसरों ने सुनी-अनसुनी कर दी।
परिणाम सामने है। जो कार्ययोजना आई है उससे जनता के न हित सधने वाले हैं और न ही उनकी आकांक्षाएं पूरी होंगी। उल्टे सरकार की छवि खराब होगी।

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