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लालच की फीस!

टिप्पणी
खबर पढ़कर आप भी चौंके होंगे। जालोर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में प्राइवेट स्कूलों की पढ़ाई शहरों से भी महंगी है। यह इसलिए ताकि गरीब बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा के बदले में ये स्कूलें सरकार से 'रीइंबर्समेंट' यानी पुनर्भरण के रूप में फीस की अधिक से अधिक राशि वसूल सके। सरकार से अधिकाधिक राशि वसूलने के लालच में ही गांवों की इन प्राइवेट स्कूलों ने अपनी फीस में जबरदस्त बढ़ोतरी की है। बात जालोर जिले तक सीमित नहीं है। जयपुर, जोधपुर, चित्तौडग़ढ़, चूरू आदि दूसरे कई जिलों के समाचार भी सामने आए हैं। राज्य भर में ही ये हालात हों तो कोई आश्चर्य नहीं सरकारी धनराशि वसूली का लालच इस कदर बढ़ गया कि गांव की इन स्कूलों ने पिछले वर्ष की तुलना में 300 फीसदी तक फीस बढ़ा डाली है। गांव ही क्यों कस्बाई और शहरी क्षेत्रों में भी प्राइवेट स्कूलों ने किस कदर लूट मचा रखी है, यह किसी से छिपा नहीं है। राज्य में ३७ हजार प्राइवेट स्कूूलें हैं। इन स्कूलों की फीस पर नियंत्रण रखने के लिए सरकार ने राज्य और जिलों में समितियां गठित कर रखी हैं। इन समितियों की सिफारिश के बाद कोई प्राइवेट स्कूल अपनी फीस तीन साल तक नहीं बदल सकता। इसमें दो राय नहीं पूर्व न्यायाधीश शिवकुमार शर्मा की अध्यक्षता में गठित राज्य स्तरीय समिति के चलते बड़े शहरों की प्राइवेट स्कूलों की फीस के ढांचे में कुछ सुधार हुआ है। लेकिन अभी चंद प्राइवेट स्कूलों पर ही मनमानी फीस वसूलने के लिए शिकंजा कसा जा सका है। बाकी  हजारों स्कूलें अभी भी अभिभावकों से मनमानी फीस वसूली कर रही है, जिस पर जिला समितियों का कोई नियंत्रण नहीं दिखाई पड़ रहा। शिक्षा का अधिकार कानून के तहत प्रत्येक प्राइवेट स्कूल को 25 फीसदी गरीब बच्चों को निशुल्क प्रवेश देना जरूरी है। इन बच्चों की पढ़ाई का खर्चा सरकार उठाती है। इसलिए प्रत्येक गरीब छात्र के हिसाब से सरकार फीस की राशि का पुनर्भरण करती है। इसके लिए स्कूलों को अपना दावा पेश करना होता है। इस वर्ष से सरकार ने गरीब बच्चों को दिए गए नि:शुल्क प्रवेश के बाद पुनर्भरण की राशि बढ़ाकर11 हजार 704 रु. प्रति छात्र कर दी है। लगता है यह राशि देखकर लालची स्कूल संचालकों का मन कुछ ज्यादा ही डोल गया है। सांभर में एक स्कूल ने 350 फीसदी तक फीस बढ़ा दी। जालोर के छोटे से गांव भड़वल की एक स्कूल ने प्रति छात्र 24 हजार 300 रु. की पुनर्भरण राशि की डिमांड कर दी। आनन-फानन फीस बढ़ाकर ये संचालक अपनी जेबें तो भर लेंगे। लेकिन बाकी 75 फीसदी उन विद्यार्थियों का क्या होगा, जिन पर इनके लालच का बोझ भारी पड़ रहा है। क्या गांव के अभिभावक इतनी भारी फीस चुका पाएंगे? गांव ही क्यों शहरी अभिभावक भी फीस का यह ढांचा झोल पाएंगे? अगर नहीं तो क्या ये प्राइवेट स्कूलें दो तरह की फीस वसूली करती है। पुनर्भरण वाले गरीब छात्रों की फीस अलग तथा सामान्य छात्रों की अलग। यानी फर्जीवाड़ा घनघोर  है। सवाल यह है कि प्राइवेट स्कूलों के फीस ढांचे को नियंत्रित करने वाली जिला समितियां क्या कर रही हैं? कहीं ऐसा तो नहीं पुनर्भरण की आड़ में एक नए तरह का शिक्षा माफिया पनप रहा है। शिक्षा निदेशालय का केवल दुगनी-चौगुनी फीस बढ़ाने वाले स्कूलों की जानकारी मांग लेना ही काफी नहीं है। ऐसी स्कूलों की पुनर्भरण राशि तो रोकी ही जानी चाहिए, साथ ही उनका पंजीकरण भी रद्द कर देना चाहिए। इतना ही नहीं राज्य के नए शिक्षा कानून के तहत मनमानी फीस वसूलने पर स्कूल संचालक के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए तथा कानून में 3 साल जेल का जो प्रावधान है, उसका कठोरता से प्रयोग होना चाहिए। अन्यथा राजस्थान विद्यालय (फीस संग्रहण का विनियमन) अधिनियम 2013 कागजी बनकर रह जाएगा।

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