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कथनी और करनी का फर्क

उस दिन अखबारों में भ्रष्टाचार सम्बन्धी दो खबरें छपी थीं। पहली थी—भ्रष्टाचार पर रोक लगाने वाले ऐतिहासिक लोकपाल बिल के पास होने की खबर। खबर महत्त्वपूर्ण थी, लिहाजा सुर्खियों में थीं। दूसरी थी—मुम्बई के आदर्श हाउसिंग सोसाइटी के कुख्यात घोटाले से जुड़ी खबर। यह सामान्य खबर की तरह लगभग सभी अखबारों में हाशिये पर छपी थी। 45 साल से जो बिल लटका हुआ था, वह राज्यसभा के बाद लोकसभा में भी सिर्फ 40 मिनट में पास हो गया था। बड़ी कामयाबी थी। अन्ना हजारे ने अनशन समाप्त कर दिया था। यूपीए सरकार, खासकर पांच राज्यों के चुनाव परिणाम से मायूस कांग्रेस नेताओं की आवाज फिर गले से निकलने लगी थी। लोकपाल की बधाइयां ली जा रही थी। दावे किए जा रहे थे—आर.टी.आई. भी हम लेकर आए थे और अब लोकपाल भी आखिरकार हम लेकर आए।
और इधर महाराष्ट्र में क्या हो रहा था, जहां कांग्रेस-राकांपा की गठबंधन सरकार है। आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाले को दफन किया जा रहा था। उस घोटाले को जिसकी जांच रिपोर्ट में कांग्रेस के चार मुख्यमंत्रियों के नाम हैं। लोकपाल वाले दिन ही महाराष्ट्र के राज्यपाल के. शंकरनारायणन ने सी.बी.आई. की पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण पर मुकदमा चलाने की अर्जी नामंजूर कर दी थी। यही खबर उस दिन अखबारों में हाशिये पर थी। शायद देश को मिले पहली बार लोकपाल के जश्न में यह बड़ी खबर ओझाल हो गई थी। आदर्श घोटाला उजागर होने के बाद महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक राव चव्हाण ने 9 नवम्बर 2010 को पद से इस्तीफा दे दिया था। वे इस घोटाले के 13 आरोपियों में शामिल थे। आपको याद होगा, मुम्बई में आदर्श हाउसिंग सोसाइटी की विवादास्पद 31 मंजिला बिल्डिंग का निर्माण करगिल शहीदों के परिजनों को घर देने के लिए किया गया था। लेकिन तत्कालीन राजस्व मंत्री पद पर रहते हुए अशोक चव्हाण ने 40 फीसदी घर अन्य लोगों को दे दिए थे। इसमें उनके कुछ करीबी रिश्तेदार भी शामिल थे। बाद में अशोक चव्हाण मुख्यमंत्री बन गए। उन्होंने सी.बी.आई. के आरोप-पत्र में खुद का नाम शामिल किए जाने को चुनौती देते हुए दलील दी कि उन पर मुकदमे के लिए राज्यपाल से अनुमति नहीं ली गई। इस दौरान हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जे.ए. पाटिल के नेतृत्व में दो सदस्यीय जांच आयोग बनाया गया। आयोग का निष्कर्ष था— 'यह घोटाला नियमों को तोडऩे वाली एक शर्मनाक कहानी है जिसमें लालच, पक्षपात और भाई-भतीजावाद जमकर हुआ।' इस आयोग ने आदर्श सोसाइटी के 102 में से 44सदस्यों को घर आवंटित करने में घोटाला पाया। इसके लिए आयोग ने अशोक चव्हाण सहित पूर्व मुख्यमंत्रियों सुशील कुमार शिन्दे, विलासराव देशमुख तथा शिवाजीराव निलंगेकर को भी जिम्मेदार माना। कंडक्टर और ड्राइवर के नाम पर भी फ्लैट आवंटित थे। जबकि फ्लैट की कीमत लाखों रुपए थी।
चव्हाण के एतराज के बाद में सी.बी.आई. राज्यपाल के पास मुकदमे की मंजूरी के लिए गई। राज्यपाल की नामंजूरी के दो दिन बाद ही अखबारों में फिर खबर आई— 'महाराष्ट्र सरकार ने चर्चित आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाले की जांच-रिपोर्ट खारिज कर दी।' यानी जिस रिपोर्ट ने इस घोटाले को 'एक शर्मनाक कहानी' बताया उसे पृथ्वीराज चव्हाण की सरकार ने खारिज कर दिया। रिपोर्ट क्यों खारिज की गई, सरकार ने इसका कोई खुलासा नहीं किया। अलबत्ता किसी अधिकारी के हवाले से यह जरूर कहा गया कि जांच आयोग के निष्कर्षं से सरकार संतुष्ट नहीं है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट अप्रेल में ही सरकार को सौंप दी थी, लेकिन उसके निष्कर्षों से असंतुष्ट होने में सरकार को आठ माह लग गए। मौका भी कब चुना, जब भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए उसी दल की सरकार केन्द्र में लोकपाल बिल पास कराने का श्रेय ले रही है।
आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला लम्बे समय तक मीडिया में छाया रहा था। यह एक संवेदनशील मुद्दा बन गया था, क्योंकि सोसाइटी करगिल के शहीदों के परिवारों के लिए बनी थी। हालांकि आयोग ने रिपोर्ट में इसे शहीद परिवारों की योजना नहीं माना। लेकिन आरोपों में एक बिन्दु यह भी था कि शहीद परिवारों के नाम से योजना पास कराने के बाद इसे राजनीतिक संरक्षण में बदल दिया गया था। सोसाइटी से जुड़ी फाइलें महाराष्ट्र के शहरी विकास विभाग, यहां तक कि केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय तक से गायब हो गई जिसकी पुलिस में रिपोर्ट दर्ज हुई थी। हाईकोर्ट के निर्देश पर इसकी जांच भी सी.बी.आई. को दी गई। इतना ही नहीं सोसाइटी के नक्शे तक गायब कर दिए गए। आरोप था कि मुम्बई में बिल्डरों और नेताओं का गठजोड़ इतना ताकतवर है कि पूरे मामले को सरकारी संरक्षण देकर योजना को वैधता प्रदान की गई। लिहाजा यह मामला देश के चर्चित घोटालों में शुमार हो गया था। संवेदनशीलता का एक कारण और था। मुम्बई के जिस इलाके में आदर्श हाउसिंग सोसाइटी की यह इमारत खड़ी की गई, वह सेना की इंजीनियरिंग ट्रांसपोर्ट फेसिलिटी से सिर्फ २७ मीटर दूरी पर स्थित है। यहां सेना के हथियारबंद वाहन पार्क किए जाते रहे हैं। सेना और नौ-सेना के डिपो, जिनसे सैनिकों को हथियारों, विस्फोटकों और संवेदनशील उपकरणों की आपूर्ति की जाती रही है, इस इमारत से सिर्फ सौ मीटर दूर हैं। कोई भी इमारत की ऊंची छत से खड़ा होकर हमारे इन प्रतिष्ठानों को आसानी से निशाना बना सकता है। २६/११ के हमले के बाद तो संवेदनशीलता और बढ़ गई थी। संभवत: इसीलिए आदर्श हाउसिंग सोसाइटी की सौ मीटर ऊंची इमारत देश में भ्रष्टाचार की सर्वाधिक कलंकित नजीर बन चुकी थी। लेकिन सत्ताधीशों की क्या कहें! कथनी कुछ और करनी कुछ और। आचरण और व्यवहार की यह असंगति ही राजनेताओं को अविश्वसनीय बनाती जा रही है। लेकिन राजनेता है कि इससे कोई सीख लेते नजर नहीं आते।

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1 comments:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन मोहम्मद रफ़ी साहब और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।