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पाप धोने की कोशिश

 टिप्पणी
सार्वजनिक जीवन को पाक-साफ बनाने से जुड़ा लोकपाल विधेयक एक बार फिर केन्द्र की संप्रग सरकार सहित देश के तमाम राजनीतिक दलों के षड्यंत्रों का शिकार होता नजर आ रहा है। अन्ना हजारे के बार-बार हो रहे अनशन-आंदोलन और देश के चार राज्यों की ताजा करारी हार से डरी संप्रग सरकार ने भले ही रातों-रात इस विधेयक को संसद के इसी सत्र में पारित कराने की मंशा जाहिर की है। लेकिन सब जानते हैं कि राज्यसभा में संप्रग सरकार को बहुमत हासिल नहीं है। इसके बावजूद लोकपाल के प्रति सरकार का यह अचानक प्रेम क्यों उमड़ा?
सरकार का दावा है कि संशोधित विधेयक पर विपक्ष सहमत है। लेकिन अभी यह दूर की कौड़ी लगती है। भ्रष्टाचार और उसके विरोध में उबलते लोगों के गुस्से की संप्रग सरकार ने जिस कदर उपेक्षा की, शायद उसका पश्चाताप करने का यह उसे माकूल समय लग रहा है। दिल्ली में तो जो दल लोकपाल व केन्द्र सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए आन्दोलन से पैदा हुआ था उसी ने सत्तारूढ़ दल की बखिया उधेड़ दी। रही-सही कसर अन्ना हजारे ने अनशन शुरू करके पूरी कर दी। ऐसे में सरकार के पास कोई चारा नहीं था। वह इस विधेयक के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाना चाहती है ताकि लगे कि लोकपाल के लिए वह कितनी आतुर है। यह विधेयक लोकसभा में पहले ही पारित हो चुका था। इसके बाद इसमें कई संशोधन हुए। इसलिए राज्यसभा में पारित होने के बाद यह फिर लोकसभा में लाया जाएगा। इसकी असली परीक्षा तो राज्यसभा में होनी है। अगर राज्यसभा में विधेयक फिर अटक जाता है तो सरकार को अपने आपको पाक साबित करने में मुश्किल नहीं होगी। लोगों से कह सकेगी कि सरकार लोकपाल लाना चाहती है, विपक्ष आड़े आ रहा है। ठीकरा फिर दूसरे के सिर फोड़ दिया जाएगा।
यानी सरकार अब भी अवसर देखकर रंग बदलने की कोशिश कर रही है। उसके प्रयासों में ईमानदारी का अभाव स्पष्ट नजर आता है। अगर सरकार सचमुच लोकपाल के प्रति निष्ठावान होती तो मौजूदा सत्र के एजेन्डे में विधेयक को शामिल करती। राज्यसभा की प्रवर समिति ने 23 नवम्बर, 2012 को ही अपनी रिपोर्ट राज्यसभा को सौंप दी थी। इस रिपोर्ट पर सरकार सोती क्यों रही? दबाव बढ़ा तो केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने प्रवर समिति की सिफारिशों को मंजूरी दे दी। इसके बाद इसे फिर ठंडे बस्ते में डाल दिया।
कैबिनेट की मंजूरी के बाद इसे तत्काल सदन में प्रस्तुत क्यों नहीं किया गया? देखा जाए तो सरकार इस सत्र में भी यह विधेयक लाने को उत्सुक नजर नहीं थी। लेकिन 8 दिसम्बर के बाद हालात बदलते ही सरकार ने भी अपना रंग बदल लिया। अच्छा है, यह विधेयक सत्र में शुक्रवार को रखे जाने के संकेत दिए गए हैं। विधेयक में प्रवर समिति के अधिकांश सुझावों को माना गया है। विधेयक पहले से काफी मजबूत हुआ है।
जितना सच यह है कि लोकपाल विधेयक के खिलाफ कोई भी दल नहीं बोलना चाहता, उतना ही सच यह भी है कि, कोई उसे पास भी नहीं कराना चाहता। सब जनता को भरमाना चाहते हैं। लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि देश की जनता अब पहले सी भोली-भाली नहीं रही। वह सबको देख रही है कि, बिल पर कौन, क्या गुगली खेल रहा है। जब चार माह बाद लोकसभा के चुनाव होंगे तब वह ऐसी गुगली खेलेगी कि सबके विकेट शून्य पर
गिरते नजर आएंगे। अभी भी समय है-सरकार सहित सभी राजनीतिक दल एक संकल्प
के साथ, संसद के चालू सत्र में ही भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए प्रभावी लोकपाल कानून पास करें। शायद उनके पाप कुछ धुल जाएं।

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