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मतदान बाद के चुनाव-सर्वेक्षण

इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के मार्फत मतदान बाद के सर्वेक्षणों को न केवल आम जन ने बल्कि दलों ने भी अपने नजरिए से देखा। इनकी विश्वसनीयता अभी सर्व-स्वीकार्य नहीं हुई है। हम निष्कर्षों पर नजर डालें, तो कहना होगा कि ये काफी हद तक परिणामों के
करीब पहुंचे।

4 दिसम्बर की शाम जब दिल्ली में पांच राज्यों के चुनाव का अन्तिम चरण था तो परिणामों को लेकर लोगों की जिज्ञासाएं भी चरम पर थीं। इसलिए तत्काल बाद आए विभिन्न एजेन्सियों के एग्जिट पोल के निष्कर्ष मीडिया में सुर्खियां बने। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के मार्फत मतदान बाद के इन सर्वेक्षणों को न केवल आम जन ने बल्कि राजनीतिक दलों ने भी अपने-अपने नजरिए से देखा। मतदान पूर्व और मतदान बाद के चुनाव सर्वेक्षण अक्सर विवादों में रहे हैं। कारण इनका अतीत का रिकार्ड है। कई बार सर्वेक्षणों के निष्कर्ष चुनाव परिणामों की सही तस्वीर बताने में नाकाम भी रहे। बल्कि सर्वेक्षणों के निष्कर्ष बिल्कुल उल्टे साबित हुए। इसलिए इनकी विश्वसनीयता अभी तक सर्व-स्वीकार्य नहीं हुई है। लेकिन अगर हम इस बार के चार राज्यों के एग्जिट पोल के निष्कर्षों पर नजर डालें, तो कहना होगा ये काफी हद तक चुनाव परिणामों के करीब पहुंचे। दिल्ली और राजस्थान में दलों की सीटों का आकलन ज्यादातर सर्वेक्षणों में गड़बड़ाया। लेकिन हार-जीत के नतीजे कमोबेश वही रहे। इनमें भी एक एजेन्सी का सर्वे तो चार राज्यों में बहुत करीब तक निष्कर्ष निकालने में कामयाब रहा। इन सर्वेक्षणों के आधार और आंकड़े तो विस्तृत रूप से उपलब्ध नहीं है। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इनकी कवरेज ही यहां चर्चा का विषय है। आइए, एक नजर इन एग्जिट पोल पर डाल ली जाए।
मुख्य तौर पर मीडिया में पांच मतदान बाद सर्वेक्षण (एग्जिट पोल) सामने आए। इंडिया टुडे-ओर.आर.जी., टाइम्स नाउ-सी वोटर, आई.बी.एन.7-सी.एस.डी.एस., ए.बी.पी.-नीलसन और टुडेज-चाणक्य। सभी चुनावी सर्वेक्षणों में चार राज्यों में भाजपा को सबसे आगे बताया गया और कांग्रेस को नं. 2 पर बताया। केवल टुडेज चाणक्य ने दिल्ली में आप को नं. एक और भाजपा को नं.2 पर बताया। हालांकि सीटों में ज्यादा अन्तर नहीं था। चाणक्य के सर्वे में दिल्ली में किसी को स्पष्ट बहमत नहीं मिलने की बात स्पष्ट तौर पर कही गई थी। चाणक्य के एग्जिट पोल में आप को 31, भाजपा को 29 तथा कांग्रेस को 10 सीटें बताई गई थी। यानी त्रिशंकु विधानसभा। दिल्ली का परिणाम सबके सामने है।
अब जरा दिल्ली के ही दूसरे सर्वेक्षणों पर नजर डालिए। टाइम्स नाउ-सी वोटर के सर्वे में भी दिल्ली में त्रिशंकु विधानसभा की बात कही गई थी। हालांकि इसमेें कांग्रेस नं. 2 पर थी और आप को तीसरे नंबर पर बताया गया था। सीटें इस प्रकार थीं-भाजपा 31, कांग्रेस 20 तथा 15 आप। आप का आकलन करने में यह सर्वे जरूर गड़बड़ाया इसलिए कांग्रेस को लेकर भी सही निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा। लेकिन परिणाम के मामले में यह सर्वे भी नतीजों का संकेत करने में सफल रहा। इंडिया टुडे और एबीपी ने दिल्ली में भाजपा को स्पष्ट बहुमत बताया जो गलत साबित हुआ, लेकिन बाकी तीनों राज्यों में इनके निष्कर्ष चुनाव परिणाम के मामले में सही साबित हुए।
मध्य प्रदेश में सभी एग्जिट पोल भाजपा की सत्ता में वापसी दर्शा रहे थे। लेकिन दो-तिहाई सीटों से भाजपा की वापसी का आंकड़ा कोई नहीं छू पाया- सिवाय चाणक्य के। चाणक्य का सर्वे मध्य प्रदेश में काफी सटीक रहा। इस सर्वे में भाजपा को 161 तथा कांग्रेस को सिर्फ 62 सीटें दी गई। मध्य प्रदेश के चुनाव परिणाम रहे- भाजपा-165 तथा 58 कांग्रेस। जबकि अन्य सर्वेक्षणों में भाजपा को 128 से 138 तथा कांग्रेस को 80 से 92 तक सीटें दी गईं। अलबत्ता आई.बी.एन. 7- सी.एस.डी.एस. का सर्वे सीटों के आकलन में काफी करीब (भाजपा 146 व कांग्रेस 67) तक पहुंच पाया।
छत्तीसगढ़ में भाजपा-कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला सभी पांचों सर्वेक्षणों में बताया गया था लेकिन भाजपा को स्पष्ट बहुमत सिर्फ इंडिया-टुडे- ओ.आर.जी. तथा चाणक्य के सर्वे में बताया गया। इंडिया टुडे के अनुसार भाजपा को 53 और कांग्रेस को 33 तथा चाणक्य के सर्वे मेें भाजपा को 51 तथा कांग्रेस को 39 सीटें बताई गई थी। चुनाव परिणाम रहे- भाजपा-49 तथा कांग्रेस-39। अन्य सर्वेक्षणों में भी कड़े मुकाबले के बावजूद भाजपा को बढ़त स्पष्ट तौर पर बताई गई थी।
राजस्थान के मामले में सीटों के बारे में सभी सर्वेक्षणों के निष्कर्ष नतीजों से काफी दूर रहे। कोई भी एग्जिट पोल कांग्रेस की इस कदर दुर्गति का आकलन नहीं कर पाया। हालांकि सभी सर्वेक्षण भाजपा के स्पष्ट बहुमत के आंकड़े दे रहे थे। इनमें भाजपा को 110 से लेकर 147 सीटों का अनुमान शामिल था। लेकिन कांग्रेस को मिलने वाली सीटों का औसतन अनुमान 50 सीटों के आसपास जाकर ठहरता था। कहना होगा राजस्थान के मामले में भी नतीजों को लेकर सर्वेक्षणों के अनुमान सटीक थे, लेकिन सीटों की संख्या का हिसाब सभी में गड़बड़ा गया था। राजस्थान में भाजपा को 162 और कांग्रेस को सिर्फ 21सीटें मिली। कहा जा रहा है चार राज्यों में भाजपा की लहर थी। चारों में से दो राज्यों-छत्तीसगढ़ और दिल्ली के परिणाम इसकी तथ्यात्मक पुष्टि नहीं करते। लेकिन राजस्थान की लहर का कोई भी सर्वेक्षण सटीक अनुमान नहीं लगा पाया, यह स्पष्ट है। इसके बावजूद चारों राज्यों (दिल्ली,मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान) के मतदान बाद के सर्वे चुनाव-नतीजों का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह बताने में काफी हद तक कामयाब रहे। संदेह नहीं मतदान पूर्व और पश्चात किए जाने वाले सर्वेक्षणों का एक वैज्ञानिक आधार है, जिन्हें अपने तय मापदंडों पर किया जाए तो वे नतीजों का पूर्वाभास देने में काफी हद तक सफल हो सकते हैं।
मिजोरम की उपेक्षा
मीडिया ने उत्तर-पूर्व में स्थित हमारे एक छोटे-से मगर खूबसूरत राज्य मिजोरम की चुनाव सर्वेक्षणों में जमकर उपेक्षा की। जैसे यह राज्य भारत का हिस्सा ही न हो। 4 दिसंबर की शाम को जब एग्जिट पोल सामने आए तो किसी में भी मिजोरम का जिक्र तक न था।
गौर करने वाली बात यह है कि मिजोरम के लोगों ने बाकी चारों राज्यों में सबसे ज्यादा (82 फीसदी) मतदान में हिस्सा लिया था। मिजोरम की 40 सीटों की विधानसभा के चुनाव भी इसी दौरान हुए थे और जिसके परिणाम भी आ चुके हैं।

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