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अखबारों की महत्वपूर्ण भूमिका

सबसे बड़ी खामी धारा 66-ए में यह है कि अगर आपकी बात से किसी को नाराजगी हुई तो वह आपके खिलाफ मामला दर्ज करवा सकता है। और इस पर पुलिस का एक सिपाही भी आपको थाने ले जाकर बैठा सकता है। ऐसे में सर्वोच्च अदालत की दखलंदाजी से इस कानून की कमियों, अस्पष्टताओं को दूर करने के हर संभव प्रयास  करने पड़ेंगे

आपको याद होगा, जिस दिन शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे की अन्त्येष्टि हुई, उस दिन समूचा मुम्बई महानगर बंद रहा। बंद डर की वजह से रहा या ठाकरे के प्रति सम्मानवश, इस बहस में पड़े बगैर हम यह कहेंगे कि इस पर भिन्न राय रखने वालों को अपना मत प्रकट करने का पूरा अधिकार है। मुम्बई की दो लड़कियों ने फेसबुक पर अपनी राय जाहिर की। बल्कि राय सिर्फ शाहीन ने जाहिर की थी। उसकी दोस्त रेणु ने महज उसका समर्थन किया था। शाहीन की राय थी कि किसी की मृत्यु पर पूरे शहर को बंद कर देना कहां तक जायज है? इसे पढ़कर शिव सैनिक भड़क गए। शाहीन के चाचा के क्लिनिक पर तोडफ़ोड़ की तथा पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी। पुलिस रात को ही दोनों लड़कियों को पकड़कर ले गई। लड़कियों ने तत्काल माफी मांग ली। अपना फेसबुक अकाउंट भी बंद कर दिया। यह घटना संभवत: मुम्बई के एक इलाके पालघर तक सिमटकर रह जाती। लेकिन इस घटना का विवरण टाइम्स ऑफ इंडिया ने अगली सुबह प्रकाशित कर दिया। अगले दिन बाकी अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी यह घटना सुर्खियों में छा गई। अदालत में जमानत के बाद तीसरे दिन ये लड़कियां जेल से छूट पाईं। महाराष्ट्र सरकार की नींद खुली। लड़कियों के खिलाफ मामला बंद कर दिया गया। इतना ही नहीं, दो पुलिस अधिकारियों को निलंबित भी कर दिया गया। सरकार ने आदेश दिया कि अब से धारा ६६-ए के तहत मामलों को पुलिस महानिरीक्षक स्तर का अधिकारी ही देखेगा।
और अब इस धारा को देश की सर्वोच्च अदालत में चुनौती मिल गई। दिल्ली की छात्रा श्रेया सिंघल की जनहित याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सहित, महाराष्ट्र, प. बंगाल, दिल्ली और पुड्डुचेरी की सरकारों को नोटिस जारी करके चार सप्ताह के भीतर अपना पक्ष रखने को कहा है। इन राज्यों में सूचना तकनीक कानून के दुरुपयोग की घटनाएं पिछले दिनों प्रकाश में आई थीं। कुछ अरसा पूर्व पुड्डुचेरी के रवि श्रीनिवासन को भी पुलिस घर से पकड़कर ले गई थी। रवि ने ट्विटर पर वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम के बेटे कार्ति चिदम्बरम और सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के बारे में समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के आधार पर अपनी राय व्यक्त की थी। इसी तरह पश्चिम बंगाल में जाधवपुर विश्वविद्यालय के दो प्रोफेसरों को भी इसलिए जेल जाना पड़ा, क्योंकि इनमें से एक ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर कार्टून बनाया था और दूसरे ने अन्य लोगों को भेज दिया था। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर व्यक्त की गई अभिव्यक्तियों को जिस तरह से दबाने की कोशिशें की गई, उससे लोगों में यह संदेश गया कि सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने पर तुली है। स्वीकार किया जा रहा है कि सूचना तकनीक कानून के तहत मिले अधिकारों का पुलिस और शासन ने दुरुपयोग ही किया। शासन में बैठे कई लोग इस बात को मानते हैं कि सूचना कानून को सही ढंग से परिभाषित नहीं किया गया। सूचना तकनीक मंत्री कपिल सिब्बल भी मानते हैं कि इस कानून में कई खामियां हैं। सबसे बड़ी खामी धारा 66-ए में यह है कि अगर आपकी बात से किसी को नाराजगी हुई तो वह आपके खिलाफ मामला दर्ज करवा सकता है। और इस पर पुलिस का एक सिपाही भी आपको थाने ले जाकर बैठा सकता है। ऐसे में सर्वोच्च अदालत की दखलंदाजी से इस कानून की कमियों को दूर करने का प्रयास होगा। संसद में हंगामा और बिना बहस कानून पारित होने से ऐसी ही विसंगतियां पैदा होती हैं।
कानून, मीडिया और कोयले की कालिख
सौ करोड़ की जबरन वसूली के मामले में जी न्यूज की दलील काम नहीं आई। अपने दो सम्पादकों की गिरफ्तारी में अभिव्यक्ति की आजादी के मुद्दे पर उसे समर्थन नहीं मिला। उल्टे सोशल मीडिया में लोगों का गुबार फूट पड़ा। मामला जिस रूप में सामने आया उससे जी न्यूज की काफी किरकिरी हुई। लिहाजा कानून को अपना काम करने देना चाहिए।
कानून को कोयले की कालिख भी मिटानी चाहिए। सांसद और उद्योगपति नवीन जिन्दल की कंपनी जिन्दल स्टील एंड पावर लि. जे.एस.पी.एल. पर गंभीर आरोप हैं। इसलिए कहीं जिन्दल दो सम्पादकों के वीडियो टेप के बहाने खुद को पाक साबित करने की कोशिश तो नहीं कर रहे? कैग की रिपोर्ट में बहुत कुछ साफ है। इसके बावजूद सीबीआई जे.एस.पी.एल. व उससे जुड़ी कंपनियों पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं कर सकी है। केन्द्र की सरकार अपने सांसद के कारनामों पर चुप्पी साधे हुए हैं। वह २ जी स्पेक्ट्रम की तरह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बगैर कुछ नहीं करना चाहती। कैग की रिपोर्ट और मीडिया में आए तथ्य बताते हैं कि नवीन जिन्दल की कंपनी कोयला खदानों का आवंटन पाने और गरीब किसानों की जमीनें लेने में अग्रणी है। उनके पास झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और मध्यप्रदेश में कोयला खदानें हैं। कैग की रिपोर्ट के बाद जांच के दौरान यह बात सामने आई कि जे.एस.पी.एल. ने १६ कोयला खदानों के ब्लॉक्स हासिल करने के लिए आवेदन किया था। यह बात भी सामने आई कि कुछ कंपनियां, जिन्हें कोल ब्लॉक्स आवंटित हुए, वे भी नवीन जिन्दल की कंपनी से जुड़ी हुई हैं। इनमें नलवा स्पंज आइरन लि., गगन स्पंज आइरन लि. तथा मोनेट इस्पात एंड एनर्जी लि. कंपनियों के नाम शामिल हैं। मोनेट इस्पात संदीप जाजोडिया की कंपनी है, जो नवीन जिन्दल के निकट रिश्तेदार हैं। इन सभी मामलों की तह में जाने की जरूरत है। कुछ कंपनियां ही कोयला खदानों पर कब्जा जमाने की कोशिश में क्यों लगी हैं? उनके आपस में तार क्यों जुड़े हुए हैं? क्यों वे नाम बदलकर काम करती हैं? उनकी राज्यों व केन्द्र की सरकारों से क्या साठगांठ है? प्रशासनिक तंत्र क्यों उन पर मेहरबान रहता है? ये सारे सवाल मीडिया के सामने चुनौती की तरह हैं। केन्द्रीय जांच ब्यूरो अव्वल तो इनकी तह तक शायद ही जाए। अगर गया भी, तो परिणाम हासिल होगा, इसकी उम्मीद कम है। कई बड़े-बड़े नाम सामने आ चुके हैं। सजा किसी एक को भी अभी तक नहीं मिली। सजा मिलना तो दूर, अभी तक उनके खिलाफ कानून का शिकंजा कसता हुआ भी नजर नहीं आ रहा है।

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