RSS

फैसला शानदार, लागू हो पूरे देश में

टिप्पणी
 गेहूं की बर्बादी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जो सख्त रुख अपनाया है उसकी जितनी तारीफ की जाए, कम है। कोर्ट की लखनऊ बेंच का यह आदेश कि जिन अधिकारियों की वजह से अनाज सड़ता है, उनके वेतन से इस नुकसान की भरपाई की जानी चाहिए— पूरे देश के गैर-जिम्मेदार अधिकारियों के लिए एक नजीर है।
गेहूं की बर्बादी पर कोर्ट अनेक बार चिन्ता जाहिर कर चुका है। देश की सर्वोच्च अदालत तक कह चुकी है कि अनाज बर्बाद करने से अच्छा यह है कि उसे गरीबों में मुफ्त बांट दिया जाए। लेकिन न तो सरकार और न ही अधिकारियों ने न्यायालय के निर्देशों की परवाह की। उल्टे केन्द्र सरकार ने उपेक्षापूर्ण रुख अपनाया और बेशर्मीपूर्वक कह दिया कि नीतिगत रूप से यह सही नहीं होगा कि लोगों को मुफ्त में अनाज बांट दिया जाए। लगता है सरकार और उसके कारिन्दों की जनता के प्रति न तो कोई जवाबदेही है और न ही परवाह। उन्हें अपने वेतन-भत्तों और सुख-सुविधाओं के सिवा कुछ सूझता ही नहीं। इलाहाबाद न्यायालय ने यह आदेश एक जनहित याचिका पर दिया जिसमें कहा गया कि लखीमपुर खीरी में एक हजार बोरियों से ज्यादा गेहूं बारिश की वजह से सड़ गया। बारिश से गेहूं सड़ जाने के ऐसे समाचार राजस्थान हो या मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ हो या पश्चिम बंगाल देश के हर राज्य से मिलते हैं। और हर साल मिलते हैं। यानी लाखों टन गेहूं सिर्फ इसलिए बरबाद हो जाता है कि उसे रखने के लिए सरकार के पास जगह नहीं है। कृषि प्रधान देश में इससे बड़ी कोई विडम्बना नहीं हो सकती कि अच्छी मात्रा में पैदा हुए अन्न को रखने के लिए भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं है।
कुछ समय पहले ही सरकार ने संसद में सदस्यों के चिन्ता जाहिर करने पर आश्वस्त किया था कि गेहूं के भंडारण की समुचित व्यवस्था की जाएगी। लेकिन सरकार का यह वादा खोखला साबित हुआ। इसका प्रमाण है कि मानसून पूर्व बारिश के दौरान ही जगह-जगह से गेहूं की बोरियां भीगकर सडऩे के समाचार मिलने लगे और अब तक हजारों टन अनाज सड़ चुका है। जिस देश में ३०-३५ करोड़ लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब न हो, वहां ऐसे हालात दयनीय हैं। होना तो खुश चाहिए कि इस बार लक्ष्य से ज्यादा अनाज का उत्पादन हुआ, लेकिन दिल रोने को कर रहा है। क्योंकि हमारी आंखों के सामने अनाज बरबाद हो रहा है। दरअसल, भंडारण की व्यवस्था तो एक आड़ है जिसे देश की नाकारा नौकरशाही ने जानबूझाकर ओढ़ रखी है। सारी दिक्कत अधिकारियों के कुप्रबंधन की है। पिछले साल यूपी के भंडारागार निगम के ११ में से ६ गोदाम एक निजी कंपनी को किराए पर दे दिए गए थे, जिसमें उसने कोल्ड ड्रिंक, सिगरेट और शराब की बोतलें भंडारित कर रखी थीं। दूसरी तरफ गेहूं बाहर सड़ रहा था। कमोबेश ऐसे हालात सभी राज्यों में हैं। अधिकारियों की अन्न के प्रति यह बेकद्री इसलिए है कि उनके पेट भरे हुए हैं। अनाज सडऩे पर उनसे कोई सवाल नहीं पूछता। सरकार और उसके मंत्री सोए हुए हैं। उल्टे वे भ्रष्ट और लापरवाह अधिकारियों को प्रश्रय ही देते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला उनकी नींद उड़ाने वाला साबित होगा। देश भर में यही हालात हैं, ऐसे में इलाहाबाद कोर्ट का यह फैसला देश के सभी राज्यों पर लागू होना चाहिए। नुकसान की भरपाई जब अधिकारियों के वेतन से होगी, तब आप देखिएगा कि कैसे अनाज की हिफाजत होती है और कैसे गेहूं की बोरियां सुरक्षित रहती हैं। सड़ा हुआ अनाज शराब बनाने के काम भी आता है, जो शराब कंपनियों को नीलामी में बेचा जाता है। कहीं यह सब भ्रष्ट अफसरों और शराब कंपनियों की मिलीभगत का खेल तो नहीं— इसकी तहकीकात की भी जरूरत है।

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

0 comments: