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निशाने पर विकीलीक्स!

विश्व राजनीति के इतिहास में इतने बड़े स्तर पर सरकारी राज खोलने का श्रेय 'विकीलीक्स' और इसके संस्थापक जूलियन असांजे को है। इसलिए असांजे के साथ पिछले दो वर्षों से घटित घटनाओं पर न केवल उनके लाखों प्रशंसकों की नजर है, बल्कि कई देश भी जिज्ञासापूर्वक घटनाओं को देख रहे हैं। असांजे के समर्थकों का आरोप है कि उन पर यौन शोषण के आरोप एक गहरी साजिश के तहत लगे हैं।

अपनी वेबसाइट 'विकीलीक्स' के जरिए अमरीकी सरकार के कई महत्वपूर्ण राज उजागर कर अमरीका को पूरी दुनिया के सामने मुश्किल में डालने वाले खोजी पत्रकार जूलियन असांजे इन दिनों खुद मुश्किल में हैं। आखिर ब्रिटेन की सर्वोच्च अदालत ने उन्हें स्वीडन को प्रत्यर्पित करने का आदेश सुना दिया। हालांकि अदालत ने फैसले को चुनौती देने के लिए उन्हें 13 जून तक समय दिया है, लेकिन माना जा रहा है कि असांजे को स्वीडन भेजने की पूरी तैयारी की जा चुकी है।
असांजे स्वीडन जाने का विरोध कर रहे हैं। उनका आरोप है कि स्वीडन में उनके खिलाफ मुकदमा तो एक बहाना है। स्वीडन सरकार उन्हें अमरीका को सौंप देगी। दोनों देशों के बीच यह गुप्त 'डील' हुई है। असांजे किसी सूरत में अमरीका नहीं जाना चाहते। अमरीका उन्हें जानी-दुश्मन समझाता है। अमरीका के हाथ लगे, तो वे जीवित नहीं बचेंगे, ऐसी उन्हें आशंका है।
असांजे ने विकीलीक्स के जरिए और भी कई देशों की सरकारों की पोल खोली है, लेकिन अमरीका उनके खास निशाने पर रहा है। उन्होंने इंटरनेट पर अमरीकी शासन के लाखों गोपनीय संदेश, हजारों खुफिया दस्तावेज और अमरीका को मित्र व शत्रु देशों के समक्ष शर्मिन्दा करने वाले अनेक राज उजागर किए हैं। 'विकीलीक्स' के खुलासों को दुनिया के लगभग सभी प्रमुख अखबारों और न्यूज चैनलों ने अपनी सुर्खियों में स्थान दिया। आज भी 'विकीलीक्स' के खुलासों की विश्व मीडिया-जगत में उत्सुकता से प्रतीक्षा की जाती है। इन खुलासों की वजह से अमरीका असांजे से नाराज है। मित्र देशों में उसकी छवि को 'विकीलीक्स' ने खासा बट्टा लगाया। विकीलीक्स पर रोक के अमरीका ने कई प्रत्यक्ष-परोक्ष प्रयास किए। इसलिए असांजे की आशंका गलत नहीं लगती कि अमरीका में उन्हें सजा-ए-मौत दी जाएगी। 'विकीलीक्स' के पोल खोलने वाले खुलासों के बाद उनके विरुद्ध गतिविधियों पर एक नजर डालना ठीक होगा।
आस्ट्रेलिया के निवासी जूलियन असांजे ने वर्ष 2006 में विकीलीक्स की नींव रखी। शुरुआत में वे इसका कामकाज जमाने में लगे रहे। चर्चा में वे तब आए, जब उन्होंने 'विकीलीक्स' के जरिए 2010 में एक वीडियो जारी किया। इस वीडियो में एक अमरीकी हेलीकॉप्टर को अफगानिस्तान में हमला करते हुए दिखाया गया जिसमें कई लोग मारे गए थे। जाहिर है, इससे अमरीका काफी नाराज हुआ। लेकिन 'विकीलीक्स' ने अपना अभियान जारी रखा। जुलाई 2010 में उसने एक साथ 91 हजार दस्तावेज साइट पर डालकर खलबली मचा दी। इसमें ज्यादातर अमरीकी सेना के गुप्त दस्तावेज थे। अफगान युद्ध से जुड़े इन दस्तावेजों से जाहिर हुआ कि इस युद्ध में अमरीकी शासकों की वास्तविक मंशा क्या थी।
इसके बाद के घटनाक्रम पर गौर करें। जुलाई में 'विकीलीक्स' ने दस्तावेज जारी किए और एक माह बाद असांजे को स्वीडन की एक महिला ने उनके भाषणों का कार्यक्रम तय किया। असांजे 11अगस्त 2010  को स्वीडन पहुंचे। 14 अगस्त 2010 को असांजे ने कथित तौर पर इस महिला से शारीरिक सम्पर्क कायम किया। 17 अगस्त को असांजे ने एक अन्य महिला से कथित रूप से शारीरिक सम्पर्क बनाया, जो उनसे 14 अगस्त के भाषण कार्यक्रम में मिली थी। 18 अगस्त को असांजे ने स्वीडन में रहकर अपनी वेबसाइट विकीलीक्स का आगे का काम जारी रखने के लिए सरकार से इजाजत मांगी। 20 अगस्त 2010 को असांजे के खिलाफ स्वीडन में वारण्ट जारी हो गए। दोनों महिलाओं ने शिकायत की कि असांजे ने उनके साथ बलात्कार किया। दोनों महिलाओं का कहना था कि असांजे के साथ उनके सम्बन्ध आपसी सहमति से शुरू हुए थे, जो बाद में असहमति में तब्दील हो गए। असांजे ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया। आखिरकार 18 नवम्बर 2010 को स्वीडन की अदालत ने असांजे की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए। तब तक असांजे स्वीडन से लौट चुके थे। इस बीच असांजे का विकीलीक्स पर अमरीका के खिलाफ अभियान जारी रहा। 22 अक्टूबर 2010 में विकीलीक्स ने अमरीकी सेना की कोई 4 लाख फाइलें जारी की, जो इराक युद्ध से जुड़ी थी। इतना ही नहीं, विकीलीक्स ने अनेक संवेदनशील सूचनाएं जारी कर दी, जो अमरीकी कूटनीति से संबद्ध थी। इससे अमरीका की काफी बदनामी हुई। बार-बार शर्मिन्दगी से अमरीका काफी परेशान था। 28 नवम्बर को फिर विकीलीक्स ने अमरीकी कूटनीति की संवेदनशील सूचनाएं जारी की। इसके बाद 7 दिसम्बर 2010 को असांजे को ब्रिटेन में स्वीडन के वारण्ट पर गिरफ्तार कर लिया गया। कुछ दिनों में ब्रिटेन की अदालत ने उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया। तब से असांजे ब्रिटेन में है। उनके जुनूनी अभियान में कोई कमी नहीं आई। 'विकीलीक्स' अमरीका को निशाना बनाती रही। बीच-बीच में उसने, चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भारत आदि देशों को लेकर भी कई खुलासे किए, जिनसे वहां की सरकारें भी परेशान हुईं। दरअसल हर देश की सरकारें कई सूचनाएं जनता से छिपाती हैं। इनमें कुछ सूचनाएं तो राष्ट्रीय हितों को लेकर होती हैं, जिन्हें गोपनीय रखने पर शायद किसी को आपत्ति नहीं। लेकिन गोपनीयता की आड़ में वे सभी जानकारियां दबा दी जाती हैं, जो सरकार, शासन, अफसरों और नेताओं की पोल खोलती है। जनहित में होते हुए भी सूचनाओं पर पहरा लगा दिया जाता है। इसलिए जब कोई माध्यम इन सूचनाओं को जारी करने का बीड़ा उठाता है, तो उसे लोगों का समर्थन मिलता है। 'विकीलीक्स' को विश्व भर में मिले समर्थन का कारण भी यही है। एक शक्तिशाली देश की कथनी और करनी में फर्क को 'विकीलीक्स' दुनिया के सामने सप्रमाण लेकर आई। हालांकि सूचनाओं व खुलासों के प्रसंग में 'विकीलीक्स' ने कुछ मर्यादाएं भी भंग कीं, जिनका समर्थन नहीं किया जा सकता। फिर भी विश्व राजनीति के इतिहास में इतने बड़े स्तर पर सरकारी राज खोलने का श्रेय 'विकीलीक्स' और इसके संस्थापक जूलियन असांजे को है। इसलिए असांजे के साथ पिछले दो वर्षों से घटित घटनाओं पर न केवल उनके लाखों प्रशंसकों की नजर है, बल्कि कई देश भी जिज्ञासापूर्वक घटनाओं को देख रहे हैं। जूलियन असांजे पर स्वीडन में दो महिलाओं से बलात्कार के जो आरोप लगे हैं, उन पर कानूनी तौर पर कार्यवाही हो और दोषी पाए जाने पर असांजे को सजा भी हो, इस पर कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन जिस तरह घटनाएं घटी हैं, खासकर 'विकीलीक्स' के खुलासों के बाद, उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। असांजे के समर्थकों का आरोप है कि उन पर यौन शोषण के आरोप एक गहरी साजिश के तहत लगे हैं।
असांजे कह ही चुके हैं कि उन्हें फंसाया जा रहा है। यौन शोषण का आरोप तो एक बहाना है। स्वीडन में उनके साथ क्या होगा, वे जानते हैं। इसलिए उन्होंने ब्रिटेन की अदालत में अपने प्रत्यर्पण का विरोध किया। ब्रिटिश अदालत के आदेश से असांजे संभवत: शीघ्र स्वीडन प्रत्यर्पित कर दिए जाएं, लेकिन पूरी दुनिया की उन पर नजर रहेगी कि असांजे जो आशंकाएं व्यक्त कर रहे हैं, क्या वे सच होंगी? अगर वे सच होती हैं तो यह विकीलीक्स पर निशाना साधना होगा, जो सूचना का अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को शक्तिपूर्वक व योजनाबद्ध ढंग से कुचलने का प्रयास कहा जाएगा।

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1 comments:

dr.mahendrag said...

सत्य को उजागर करने वालों को इस अग्नि परीक्षा से तो गुजरना ही होगा.हो सकता है कि इस प्रयास में उसका अस्तित्व ही ख़तम कर दे.सरकारें ऐसा करने में पीछे नहीं रहती,चाहे वह जनतांत्रिक हो या तानाशाही.और अमेरिका तो कैसा भी कर सकता है.
जरूरत मीडिया को आगे आने की है ताकि अन्सान्जे की स्वंतत्रता सुरक्षित रह सके.देखना होगा की मीडिया की क्या भूमिका रहती है.