RSS

आप कैसा अखबार पसंद करेंगे?

अंग्रेजी के दो भारतीय अखबारों के बीच ब्रांड की दिलचस्प जंग छिड़ी हुई है। यह जंग यू-ट्यूब, फेसबुक सहित कई सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इन दिनों यूजर्स में चर्चा का विषय बनी हुई हैं। इस विवरण का उद्देश्य सिर्फ यह है कि पाठक जान सकें कि वर्तमान में खबरों की प्रकृति और गुणवत्ता को लेकर क्या चल रहा है। वास्तविक निर्णायक तो पाठक ही हैं कि अखबार का आदर्श रूप कैसा हो खासकर, विशाल युवा पाठक वर्ग।

क्या आप ऐसा अखबार चाहते हैं जिसे पढ़ते हुए आप ऊंघने लगें और सो जाएं? या फिर ऐसा अखबार पढ़ना पसन्द करेंगे जो प्रतियोगिता के युग में आपको पीछे रखे और बुद्धू साबित कर दे?
प्रिय पाठकगण! ये सवाल मेरे नहीं हैं। ये सवाल अंग्रेजी के दो अखबारों के हैं, जो उन्होंने एक दूसरे के खिलाफ अपने विज्ञापन अभियान में उठाये हैं। इन दोनों भारतीय अखबारों के बीच ब्रांड की दिलचस्प जंग छिड़ी हुई है। यह जंग यू-ट्यूब, फेसबुक सहित कई सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इन दिनों यूजर्स में चर्चा का विषय बनी हुई हैं। आइए देखें माजरा क्या है।
पहला अखबार अपनी विज्ञापन फिल्म में सफेद वस्त्रधारी एक ऐसे व्यक्ति को दिखाता है जो हर परिस्थिति में सोता हुआ ही नजर आता है। आप पूछेंगे कौन है यह व्यक्ति? यह व्यक्ति प्रतिस्पर्धी अखबार का पाठक है। इसके हाथ या बगल में वही अखबार सिमटा है।
दृश्य देखिए- विजेता ट्रॉफी के साथ पूरी टीम फोटो खिंचवा रही है। सभी खिलाड़ी चुस्त मुस्कान के साथ गर्व से तने हैं। तभी कैमरे का फोकस इस व्यक्ति पर पड़ता है जो ग्रुप फोटो के दौरान लापरवाही से खर्राटे भरता नजर आता है। पृष्ठभूमि में बजता हुआ मजेदार दक्षिण भारतीय संगीत, इस दृश्य को भरपूर मनोरंजक बना देता है।
दूसरा दृश्य। सार्वजनिक वितरण के लिए पानी का टैंकर खड़ा है। उस पर बेशुमार प्लास्टिक के पाइप लटके हैं। जल संकट के दौर में बस्तीवासियों में पानी भरने की होड़ मची है। लेकिन यह व्यक्ति खाली बरतन के साथ चैन से ऊंघ रहा है। जाहिर है वह सोता रहेगा और खाली हाथ घर लौटेगा। पृष्ठभूमि में वही मजेदार संगीत।
एक और दृश्य देखिए। आतंककारी गोलियां बरसा रहा है। चारों तरफ अफरा-तफरी है। तभी कैमरे का फोकस गली के एक कोने में उभरता है। यह व्यक्ति यहां भी नींद निकाल रहा है। गोली कभी भी इसकी खोपड़ी के आर-पार हो सकती है। लेकिन इसे तो नींद से ही फुरसत नहीं।
ऐसे और भी कई दृश्य हैं। विपरीत, डरावने व चुनौतीपूर्ण हालात में भी यह व्यक्ति सोता रहता है। आखिर करे भी तो क्या। नींद है ही ऐसी चीज! तभी अंग्रेजी में स्लोगन दिखाया जाता है- 'क्या आप ऐसी खबरों से चिपके हैं जिन्हें पढ़कर आपको नींद आती है?' साथ ही मशीन पर धड़ाधड़ छपते हुए पहला अखबार अपना विज्ञापन दिखाता है और 'जागो चेन्नई' का नारा देता है। मानो कहता है 'वह' नहीं 'यह' अखबार पढि़ए। यही है आपको जगाये रखने वाला समाचार-पत्र!!
सहज जिज्ञासा होती है, अब दूसरा अखबार क्या करेगा? दूसरा अखबार भी कम नहीं। उक्त विज्ञापन का करारा जवाब देता है। खास बात यह कि दूसरा अखबार युवा-वर्ग के बहाने प्रतिस्पर्धी अखबार पर निशाना साधता है जो सटीक मार करता है।
देखिए -
एक कॉलेज परिसर में छात्र-छात्राओं पर प्रश्नों की बौछार की जाती है। मानों उनका सामान्य ज्ञान परखा जा रहा हो। प्रश्नकर्ता पूछता है- भारत का उपराष्ट्रपति कौन है? जवाब आते हैं- प्रतिभा पाटिल....आर.आर.पाटिल.......एपीजे अब्दुल कलाम ....(कुछ छात्र सिर खुजलाते हैं, कुछ होंठ चबाते हैं।) दूसरा सवाल पूछा जाता है- हैरी पॉटर शृंखला किसने लिखी? जवाब- जूलियस सीजर...(ज्यादातर छात्र-छात्राएं जवाब ही नहीं दे पाते)। तीसरा सवाल- बिजनेस टायकून रतन टाटा का उत्तराधिकारी कौन है? ज्यादातर छात्रों के जवाब आते हैं- उनका बेटा....रतन टाटा का सन.....एक छात्र नाम बोलता है- मुकेश अंबानी...यानी रतन टाटा का बेटा मुकेश अंबानी!... अगला सवाल- एटीएम का फुल फार्म क्या है? जवाब- एनी टाइम मशीन......ऑल टाइम मशीन... (कुछ छात्र निरुत्तर। खिसियाई हंसी हंसते हैं)। मेजर ध्यानचंद कौनसा खेल खेलते थे? कोई जवाब नहीं दे पाता। लगता है किसी ने उनका नाम ही नहीं सुना। ये सभी युवा बुद्धू साबित होते हैं।
इसके बाद प्रश्नकर्ता उनसे बॉलीवुड सितारों के बारे में सवाल पूछता है। कौनसी हीरोइन का नाम जीरो साइज से जुड़ा है? करीना....करीना...करीना। इस बार जवाबों से परिसर गूंज उठता है। अगला सवाल: रितिक रोशन का उप नाम क्या है? डुगू...डुगू....डुगू... ऐश्वर्या के लड़का हुआ या लड़की? फिर सभी धड़ाधड़ जवाब देते हैं- लड़की...लड़की...!
और फिर आखिरी सवाल। कौन-सा अखबार पढ़ते हैं आप? सभी छात्र एक अखबार का नाम दोहराते हैं जो बीप की ध्वनि में खो जाता है। लेकिन होठों की आकृति से साफ पता चलता है कि वे विपक्षी अखबार का नाम ले रहे हैं। इसी के साथ दूसरा अखबार भी अपना विज्ञापन दिखाता है और स्लोगन देता है- उस अखबार से आपको आगे रखे। युवा वर्ग को लक्ष्य करके किए गए इस प्रहार का जवाब पहला अखबार फिर देता है। इस बार उसके विज्ञापन का केन्द्र भी युवा है। वह उनमें जोश जगाता है- पलक पकड़कर उठो और हवा पकड़कर चलो...तुम चलो तो हिन्दुस्तान चले...चलो अकड़कर चलो।
इस विस्तारपूर्वक विवरण का उद्देश्य सिर्फ यह है कि पाठक जान सकें कि वर्तमान में खबरों की प्रकृति और गुणवत्ता को लेकर मीडिया में क्या चल रहा है। वास्तविक निर्णायक तो पाठक ही हैं कि अखबार का आदर्श रूप कैसा हो खासकर, विशाल युवा पाठक वर्ग। जिसके बारे में विज्ञापन में आंशिक सचाई ही बताई गई। इस वर्ग के बारे में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के एक बड़े हिस्से का खयाल है कि युवा सिर्फ मनोरंजन और फैशन जैसे विषयों को ही पसंद करता है। यही अधूरी सोच आज के मीडिया को भटका रहा है और वह तरह-तरह की बेतुकी सामग्री परोस रहा है। भारत में भ्रष्टाचार को लेकर चले सबसे बड़े आन्दोलन में अन्ना हजारे का साथ देने वालों में  80 फीसदी युवा थे। हरेक सही मुद्दे के साथ आज का युवा खड़ा है। बशर्त है उसे सही नीयत से उठाया जाए। उसे न पाखंड पसन्द है, न बेईमानी। वह पूरी तरह पारदर्शी है। यही आज के आम युवा भारतीय की तस्वीर है। इसे पत्रिका जैसे कुछ अखबारों ने ही समझा है। तभी तो वे विशाल पाठक-वर्ग में पढ़े और सराहे जाते हैं।

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

1 comments:

आनंद जोशी said...

@दिलबाग विर्क
मेरी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत करने के लिए शुक्रिया.