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पड़ोसी मुल्क में उथल-पुथल

पाकिस्तान में मची इन दिनों उथल-पुथल और सरकार, सेना व सुप्रीम कोर्ट में तनातनी के बीच कुछ सवाल उठ रहे हैं। दिलचस्प बात तो यह है कि पाकिस्तान भी भ्रष्टाचार की लड़ाई से जूझ रहा है। राष्ट्रीय सुलह समझौता अध्यादेश (एनआरओ) के बहाने पाकिस्तान में भी भ्रष्टाचार बहस का मुद्दा बन रहा है। तो क्या यह पड़ोसी मुल्क भारत का प्रभाव है? वहां सामान्य हालात बनें, यही सबके लिए हितकर हैं

पाकिस्तान में क्या चल रहा है- यह हर भारतीय जानना चाहता है। इसी तरह भारत में क्या चल रहा है- यह हर पाकिस्तानी जानना चाहता है। यह दिलचस्पी बेवजह नहीं है। आखिर दोनों देशों में रिश्ते ही ऐसे हैं।


प्रिय पाठकगण! पाकिस्तान में मची इन दिनों उथल-पुथल और सरकार, सेना व सुप्रीम कोर्ट में तनातनी के बीच कुछ सवाल स्वाभाविक तौर पर उठाए जा रहे हैं-

१. क्या पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को काले धन और भ्रष्टाचार की सजा मिलेगी?


२. क्या सुप्रीम कोर्ट और सरकार में तनातनी बढ़कर विधायिका बनाम न्यायपालिका की लड़ाई शुरू होगी?


३. क्या सेना और सरकार के बीच बढ़ते टकराव से पाकिस्तान में फिर सत्ता-पलट होगी और फौजी हुकूमत आएगी?

४. क्या मेमोगेट कांड का खुलासा होगा?

दिलचस्प बात यह है कि तमाम हालात के बावजूद पाकिस्तान भी भ्रष्टाचार की लड़ाई से जूझ रहा है। राष्ट्रीय सुलह समझौता अध्यादेश (एनआरओ) के बहाने पाकिस्तान में भी भ्रष्टाचार बहस का मुद्दा बनता जा रहा है। तो क्या यह पड़ोसी मुल्क भारत का प्रभाव है?
इस बार पाक के अन्दरूनी हालात पर भारतीय पाठकों की प्रतिक्रियाएं अपनी बात में।
जयपुर से अशोक जैन ने लिखा- 'आसिफ अली जरदारी के स्विस बैंक खाते में ५ अरब की राशि जमा है। इमरान खान सहित अन्य राजनीतिक दल भी इसे पुख्ता तथ्य बता चुके हैं। मीडिया की खबरों के मुताबिक यह राशि तो जरदारी की वास्तविक सम्पत्ति का एक मामूली हिस्सा है। उनकी अथाह सम्पत्ति और काले कारनामों के बारे में पूरा पाकिस्तान जानता है। वे जेल की सींखचों में भी बंद रहे। लेकिन दुर्भाग्य से उनकी पत्नी बेनजीर भुट्टो की हत्या से उपजी सहानुभूति ने उन्हें पाकिस्तान का राष्ट्रपति बना दिया। एक ऐसा व्यक्ति जिस पर कानून तोड़ने और भ्रष्टाचार के कई आरोप हों- वह मुल्क का राष्ट्रपति बन जाए, इससे अधिक दुर्भाग्य क्या होगा। पाकिस्तान की जनता उन्हें चुनकर शायद अब पछता रही है।'
इंदौर से रवि कान्त 'भारती' ने लिखा- 'कहावत है चोर चोर मौसेरे भाई।' जरदारी और खुद को बचाने की खातिर तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने एन.आर.ओ. कानून बनाया। इस कानून के तहत पाकिस्तान के  8 हजार रसूखदारों को उनके भ्रष्ट कारनामों के लिए माफ कर दिया गया। लेकिन पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने भांजी मार दी। कोर्ट ने इस कानून को अवैध करार दिया। जिसकी लड़ाई अब तक चल रही है।'

रायपुर से डॉ. ललित वर्मा ने लिखा- 'एक भ्रष्ट रसूखदार हमेशा दूसरे भ्रष्ट रसूखदार को बचाने की कोशिश करता है। यही पाकिस्तान में भी हो रहा है। जरदारी को बचाने के लिए प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने सुप्रीम कोर्ट से टकराव मोल ले लिया। वे अवमानना का मुकदमा झोल रहे हैं, लेकिन जरदारी के खिलाफ जांच का आदेश देने के लिए तैयार नहीं हैं। क्या पाकिस्तानी अवाम के प्रति उनकी कोई जवाबदेही नहीं?'
अजमेर से असीमा रावत ने लिखा- 'सुप्रीम कोर्ट से अवमानना का नोटिस मिलते ही गिलानी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे को विधायिका बनाम न्यायपालिका में बदलने की कोशिश शुरू कर दी। सबसे पहले उन्होंने नेशनल असेंबली में प्रस्ताव पास कराया कि संसद सर्वोच्च है। लगता है सभी जगह राजनीति का चरित्र एक जैसा है। भारत में भी अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के मुद्दे को संसद की सर्वोच्चता में उलझााकर किस तरह भटका दिया गया, यह सभी जानते हैं।'
पाली से एम.एस. मेहता ने लिखा- 'यूसुफ रजा गिलानी की नीयत पर सुप्रीम कोर्ट का संदेह स्वाभाविक है। कोर्ट ने दिसम्बर 2009 को पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सरकार पर जरदारी के खिलाफ मामले खोलने को कहा था। लेकिन दो साल बीत जाने के बावजूद गिलानी सरकार ने अदालत के आदेश का पालन नहीं किया।'
कोटा से विजय सिंह दहिया ने लिखा- 'पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हैं, हमारे लिए चिन्ता की यह सबसे बड़ी बात होनी चाहिए। फौजी हुकूमत की अगर वहां फिर आशंका पैदा होती है तो हमें सचेत हो जाना चाहिए। फौज के हाथ में परमाणु बमों का जखीरा किसी भी पड़ोसी राष्ट्र के लिए सुरक्षित नहीं कहा जा सकता।
उज्जैन से धीरेन्द्र शुक्ला ने लिखा 'मेमोगेट कांड को फौजी सत्ता' पचा नहीं पा रही है। जबसे यह प्रकरण सुर्खियों में आया जनरल कियानी की भौंहें तनी हुई हैं। जनरल कियानी कभी भी जरदारी और गिलानी का तख्ता पलट सकते हैं।'
उदयपुर से दीपक श्रीमाली ने लिखा- 'पाकिस्तान की फौज तथा खुफिया एजेंसी आईएसआई ने ही ओसामा बिन लादेन को पनाह दी थी। इसलिए जब लादेन को अमरीकी सैनिकों ने उनके घर में घुस कर मारा तो कियानी तिलमिला उठे। तभी से कियानी तख्ता पलट का मौका तलाश रहे हैं। मेमोगेट की नींव यहीं से पड़ी।'
जोधपुर से जगदीश सोलंकी ने लिखा- 'पाकिस्तान में सैनिक शासन भारत के लिए इसलिए सबसे ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि सेना की शासन पर कोई पकड़ नहीं है। सैनिक शासन में सब तरफ एक अराजक माहौल रहता है। पाक सेना की पोल तो उसी दिन खुल गई जब कुछ आतंककारियों ने मिलकर वहां के नौसैनिक हवाई अड्डे पर ही हमला बोल दिया। कहते हैं इसके बिल्कुल करीब परमाणु हथियारों का जखीरा रखा हुआ था।'

प्रिय पाठकगण! हम तो यही चाहेंगे कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक शासन चले और वह भ्रष्टाचार के मुद्दों का भी निवारण करे। पाकिस्तान में अराजकता का माहौल बने और वहां सत्ता फौज के हाथ में आ जाए, यह पाक के साथ-साथ हमारे हित में भी नहीं होगा। पाकिस्तान की मौजूदा उथल-पुथल शीघ्र खत्म हो और वहां सामान्य हालात बनें, यह सबके लिए हितकर है।
पाकिस्तान में मची इन दिनों उथल-पुथल और सरकार, सेना व सुप्रीम कोर्ट में तनातनी के बीच कुछ सवाल उठ रहे हैं। दिलचस्प बात तो यह है कि पाकिस्तान भी भ्रष्टाचार की लड़ाई से जूझा रहा है। राष्ट्रीय सुलह समझाौता अध्यादेश (एनआरओ) के बहाने पाकिस्तान में भी भ्रष्टाचार बहस का मुद्दा बन रहा है। तो क्या यह पड़ोसी मुल्क भारत का प्रभाव है? वहां सामान्य हालात बनें, यही सबके लिए हितकर हैं।

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