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जख्मों पर नमक

प्रिय पाठकगण! 
पेट्रोल के दाम बढ़ने से हर कोई नाराज है। पाठकों का तर्क है कि जब अन्तरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रो-उत्पाद के दाम नहीं बढ़े, तो भारतीय तेल कंपनियों ने क्यों बढ़ाए? पाठकों की राय में तेल कंपनियां जनता को लूट रही हैं। सरकार से इनकी मिलीभगत है। सरकार जनता को राहत की बजाय विभिन्न वस्तुओं के दाम बढ़ाकर और ज्यादा भार डाल रही है। यह जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है।
आइए देखें, पाठक क्या कहते हैं- 
जयपुर
'मुझे उस दिन अखबार (पत्रिका: 16 सितम्बर) पढ़कर लगा जैसे सरकार ने आम आदमी को पेट्रोल से बुरी तरह झुलसा डाला और ऊपर से घावों पर नमक भी छिड़क दिया।'
इन शब्दों में अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए के.सी. गुप्ता ने लिखा- 'फ्रंट पेज पर ही दोनों खबरें छपी थीं। पहली खबर पेट्रोल के दाम फिर बढ़ाने को लेकर थी तो दूसरी खबर रसोई गैस सिलैण्डर पर सब्सिडी हटाने के प्रस्ताव के बारे में थी। एक तीसरी खबर भी नश्तर की तरह चुभ रही थी- किस मंत्री की सम्पत्ति कितनी बढ़ी जिसमें कुछ केन्द्रीय मंत्रियों की बेशुमार बढ़ती दौलत को ग्राफिक में दर्शाया गया था। लगा कि सरकार हम गरीबों पर एक साथ प्रहार करने को आमादा है।'
अजमेर
हरिश्चन्द्र अटलानी ने लिखा- 'पेट्रोल के दाम बढ़ने से कुछ दिन पहले ही राजस्थान में बिजली की दरें बढ़ाई गई थीं। पेट्रोल के दाम बढ़े तो अगले दिन रिजर्व बैंक ने ब्याज दर भी बढ़ा दी। इसके तत्काल बाद राज्य सरकार ने रोडवेज का किराया बढ़ा दिया। फिर सरस घी महंगा किया। अगले दिन सरस दूध के दाम भी बढ़ा दिए। निर्यात पर रोक हटाने से प्याज और ज्यादा महंगा मिलने लगा। क्या राज्य, क्या केन्द्र की सरकार, जिसे मौका मिलता है, वही आम आदमी पर महंगाई रूपी गाज गिरा रही है। क्या ये जन कल्याणकारी सरकारें हैं?'
रतलाम
मुन्नालाल गर्ग के अनुसार- 'भारत में पेट्रोल कंपनियों ने हद कर दी। चारों बड़ी कंपनियों की बेलेंस शीट करोड़ों का मुनाफा बता रही हैं। फिर भी पेट्रोल के दाम मनमर्जी ढंग से बढ़ा रही हैं। सरकार से मिलीभगत के बिना यह संभव नहीं। पेट्रोल कंपनियों से ज्यादा बड़ी गुनहगार सरकार है जिसने उन्हें कीमतों से नियंत्रण मुक्त कर लोगों को लूटने का ठेका दे दिया।'
इंदौर
सुशान्त राघव ने लिखा- 'विश्व के 98 देश ऐसे हैं जहां भारत से सस्ता पेट्रोल मिलता है। क्या वहां की कंपनियां घाटे में चल रही हैं? अलग-अलग देशों की परचेजिंग पावर को ध्यान में रखते हुए देखें तो भारत में पेट्रोल की दर सबसे महंगी है। अगर यही हाल रहा तो जनता भ्रष्टाचार की तरह पेट्रोल के दामों के खिलाफ भी सड़कों पर उतर आएगी।'
जोधपुर
गोपाल अरोड़ा ने लिखा- 'सरकार ने तेल कंपनियों को नियंत्रण मुक्त कर उन्हें जनता को लूटने के लिए छोड़ दिया। तीन वर्ष पहले जब पेट्रोल का अंतरराष्ट्रीय भाव 138 डॉलर प्रति बैरल था तब भारत में पेट्रोल 50 रुपए लीटर था। अब जब भाव गिरकर 111 डॉलर प्रति बैरल हो गया तो पेट्रोल के दाम 71 रुपए लीटर जा पहुंचे।
भोपाल
रविन्द्र भदौरिया ने लिखा- 'केन्द्र सरकार पेट्रोल-डीजल से भारी-भरकम राजस्व की वसूली करती है। वर्ष 2009-10 में पेट्रोल-डीजल से 90 हजार करोड़ रुपए लोगों से वसूले गए। वर्ष 2010-11 में यह राशि एक लाख करोड़ रुपए से भी ऊपर पहुंच गई। इसके बाद राज्य सरकारें वैट और सैश के नाम पर जो शुल्क वसूलती हैं, वह अलग है।'
रायपुर
सुबोधकान्त ने लिखा- 'पेट्रोल पर लोगों की निर्भरता इतनी बढ़ गई कि दाम बढ़ते ही उनका बजट लडख़ड़ा जाता है। हमारी सरकार अदूरदर्शी है। उसे बॉयो फ्यूल उत्पादन पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में बॉयो फ्यूल की अपार संभावनाएं हैं।'
कोटा
राम स्वरूप राही के अनुसार- 'अब समय आ गया है कि हम पेट्रो-पदार्थों के विकल्पों की ओर बढ़ें। बैट्री और सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहनों को बढ़ावा दें ताकि तेल कंपनियों का एकाधिकार खत्म हो। एथेनॉल और बॉयो फ्यूल भी विश्व भर में पेट्रो-विकल्प के तौर पर देखें जा रहे हैं।'
अलवर
निधि अग्रवाल ने लिखा- 'राजस्थान में अन्य कई राज्यों से पेट्रोल महंगा है। इसलिए पत्रिका की मुहिम 'नो व्हीकल डे' (पत्रिका: 19 सितम्बर) अच्छा सुझाव है। राजस्थान विश्वविद्यालय की तरह उम्मीद है, अन्य संस्थाएं और संगठन भी आगे आएंगे।'
सीकर
गजेन्द्र सोलंकी ने लिखा- 'पेट्रो पदार्थ वैसे भी दुनिया में बहुत सीमित मात्रा में बचे हैं। इसलिए पेट्रोल-डीजल के विकल्पों के अलावा हमारे पास कोई चारा भी नहीं है।'
उदयपुर
गजेन्द्र पालीवाल ने लिखा- 'भारत में पेट्रोल पर सरकार लालची व्यापारी की तरह 50 फीसदी तक टैक्स वसूलती है। अगर सरकार इस दर को तर्क सम्मत बना दे तो भारत में भी अमरीका व चीन की तरह सस्ता पेट्रोल मिल सकता है।'
प्रिय पाठकगण! पेट्रोल के दाम बढ़ने से लोगों की मुश्किलें बढ़ी हैं। इसलिए आम आदमी सरकार को कोस रहा है। सरकार का दायित्व है, वह तेल कंपनियों की दरें बढ़ाने पर निगरानी रखे। यह भी सच है कि हम पेट्रो-पदार्थों के विकल्पों पर जोर दें तथा पेट्रोल बचत के उपायों को भी रोजमर्रा की जिन्दगी में अपनाएं।

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