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दाग ही दाग

  जयपुर से जयकुमार मंगल ने लिखा- 'दामन में दाग ही दाग' (पत्रिका, 26 नवम्बर) समाचार पढ़ा तो एक दिन पहले की सारी खुशियां काफूर हो गईं। समाचार था- नवनिर्वाचित बिहार विधानसभा में कुल 243 विधायकों में 141 विधायक दागी छवि के चुने गए।
दस साल पहले मुझे रोजगार की तलाश में बिहार छोड़ना पड़ा था। बिहार की खराब छवि के चलते एक आम बिहारवासी को अन्य प्रांतों में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। नीतीश कुमार के शासन में बिहार की छवि बदली। इसलिए उनके फिर शासन में आने से अन्य प्रांतों में रहने वाले बिहारी भी बहुत खुश हैं। लेकिन उक्त समाचार से वे जरूर निराश हुए होंगे। कम-से-कम मुझे तो निराशा हुई। जिस 'दागी' छवि ने बिहार को गर्त में धकेल रखा है- उससे उबरने में अभी पता नहीं कितना समय लगेगा। नि:संदेह नीतीश कुमार पर अभी तक ऐसा कोई 'दाग' नहीं है। तभी तो बिहारवासियों ने उन्हें भारी मतों से जिताया है। उन पर भी भारी उत्तरदायित्व है कि वह 'दागियों' से अपने को दूर रखें। अच्छा तो यही होता कि वे दागियों को टिकट ही नहीं देते।'
   प्रिय पाठकगण! बिहार में विधानसभा चुनावों पर पूरे देश की नजर टिकी थी। विश्लेषक इन चुनावों को कई मायनों में भिन्न बता रहे थे। चुनाव परिणाम के बाद अलग-अलग विश्लेषण भी सामने आए। पाठकों का विश्लेषण क्या है, यह भी जान लीजिए।
उदयपुर से प्रताप सिखवाल ने लिखा- 'बिहार में जद (यू)-भाजपा गठबंधन सरकार ने इस बार दो नए रिकार्ड कायम किए हैं। एक तो यह कि किसी गठबंधन सरकार को इतना भारी बहुमत पहले कभी नहीं मिला। दूसरा यह कि इतनी तादाद में 'दागी' उम्मीदवार पहले कभी नहीं जीते। यह बिहार विधानसभा का नया रिकार्ड है, जिसमें 141 'दागी' माननीय विधायकों में 85 माननीय वे हैं जिन पर हत्या और हत्या का प्रयास जैसे संगीन जुर्म के मामले चल रहे हैं। गुलाब कोठारी जी (काले हीरे, 27 नवम्बर) ने सही लिखा- 'बिल्ली को दूध की रखवाली का ठेका!' जिस विधानसभा में बहुमत दागी सदस्यों का हो, वह जनता का भला कर पाएगी- यह नीतीश कुमार के लिए सबसे बड़ी चुनौती का सबब होगा।'
कोटा से अश्विनी श्रीवास्तव ने लिखा- 'राजनीतिक दलों में स्वच्छ छवि का उम्मीदवार चिराग लेकर ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगा, यह बात तो समझ में आती है। लेकिन गुंडा तत्वों को राजनीतिक दलों का टिकट कैसे मिल जाता है? यह सोचने की बात है। दिखने में ये सब उम्मीदवार चुनाव जीतकर आए हैं, इसलिए लोकतांत्रिक हैं। परन्तु हकीकत यह है कि जनता के सामने कोई विकल्प नहीं है। मैं 'काले हीरे' में व्यक्त किए गए इस विचार से पूर्णत: सहमत हूं कि चुनाव आयुक्त को ही आपराधिक छवि के लोगों पर चुनाव लड़ने से रोक लगा देनी चाहिए। राजनीति में सफाई अभियान तभी शुरू होगा। इस सम्बन्ध में मुझे राजनीतिक दलों से कोई उम्मीद नजर नहीं आती।'
भोपाल से विवेक तोमर ने लिखा- 'राजनीतिक दलों की हालत चुनाव परिणाम के बाद प्रकाशित हुए तथ्यों से स्पष्ट है जिनमें जद (यू), भाजपा, राजद, लोजपा, कांग्रेस आदि सभी दल शामिल हैं। जो दल जितनी ज्यादा सीटें जीता उसके उतने ज्यादा प्रत्याशियों पर ही संगीन केस दर्ज हैं। जद (यू) के विजयी 115 विधायकों में आधे से ज्यादा (58) दागी और इनमें भी 43 वे हैं जिन पर हत्या और हत्या के प्रयास के मामले दर्ज हैं। एक सदस्य तो ऐसा है, जिस पर अकेले हत्या के दस और हत्या के प्रयास के आठ मामले समेत कुल 17 केस दर्ज हैं। आश्चर्य होता है, जब 'पार्टी विद् डिफरेंस' का नारा देने वाली भाजपा के विजयी 91 उम्मीदवारों में से 58 दागी सदस्य चुनकर आ गए। लालू की राजद और पासवान की लोजपा की बात छोड़ दें तो विजयी 4 कांग्रेसियों में से 3 दागी हैं।'
उज्जैन से चन्द्रकान्त पाण्डे ने लिखा- 'बिहार में नीतीश कुमार का अब तक का शासन आश्चर्यजनक उपलब्धियों से भरा है। बिहार का मतलब कुछ साल पहले तक भ्रष्टाचार, अपराध, गरीबी और बेरोजगारी था, जिसे नीतीश के सुशासन ने एक नई पहचान दी। यह नीतीश के शासन में ही हुआ, जब चुनाव के दौरान कोई बूथ कैप्चरिंग नहीं हुई। कोई हत्या नहीं हुई। प्रदेश का विकास करने वाली राज्य सरकारों का पार्टी मतभेदों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन होना चाहिए। चाहे वह नीतीश की सरकार हो या नरेन्द्र मोदी की या फिर नवीन पटनायक की। इन सभी मुख्यमंत्रियों ने अच्छा कार्य करके दिखाया है।'
अहमदाबाद से सुषमा बिरवानी ने लिखा- 'लोग अब नतीजे देने वाली सरकारों को वोट देने लगे हैं- यह शुभ लोकतांत्रिक संकेत हैं। राष्ट्रव्यापी दुष्प्रचार के बावजूद नरेन्द्र मोदी को गुजरात की जनता ने भारी मतों से जिताया था। भाजपा के सहयोग के बगैर नवीन पटनायक उड़ीसा में बहुत अच्छी तरह से शासन कर रहे हैं। साफ है, जो काम करेगा, जनता उसी को चुनेगी।'
जोधपुर से दीपेश प्रजापति ने लिखा- 'सुशासन देने वालों को जनता पसंद करती है, इसका मतलब यह नहीं है कि आपराधिक और भ्रष्ट छवि के लोगों को भी जनता पसंद करती है।'
कोटा से कौशल गुप्ता ने लिखा- 'बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने अच्छा काम किया तो जनता ने उन्हें पुरस्कार भी दे दिया। लेकिन बिहार की राजनीति को अगर नीतीश साफ-सुथरा नहीं बना सके तो यह उनकी विफलता होगी। वे दागियों से दूरी रखें। उन्हें बिहार की सूरत के साथ-साथ बिहार की राजनीति की सीरत भी
चमकानी होगी।'

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