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जनता का धन


  •  यह मामला सिर्फ कर चोरी का नहीं है,  देश को लूट कर ले जाया गया है।
  •  देश को लूटने वाले लोगों के नाम बताए सरकार।
  • यह अपराध दिमाग को चकरा देने वाला है।

              ये टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट की हैं, जिसने विदेशी बैंकों में काले धन को लेकर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान हाल ही (पत्रिका:20 जनवरी) में की हैं। क्या काले धन के मामले में सरकार को शर्मसार करने के लिए इससे भी सख्त टिप्पणी का इंतजार है?
         यह प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कोटा के रजनीकांत उपाध्याय ने आगे लिखा- 'लेकिन अफसोस! सरकार शर्मसार होने के बजाय अब भी बेतुकी दलीलें दिए जा रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने साफ कह दिया कि इन लोगों (देश को लूटने वालों) के नाम सार्वजनिक नहीं किए जा सकते, क्योंकि विदेशों से यही करार किया गया है। वाह! क्या अंदाज है, हमारी सरकार का। सुप्रीम कोर्ट जिन्हें देश को लूटने का अपराधी मानता है- सरकार उनके नाम न केवल गोपनीय रखना चाहती है, बल्कि कर चोरी की कोई छोटी-मोटी पैनल्टी लगाकर उन्हें गोपनीय ढंग से ही बरी कर देना चाहती है। सवाल है कि कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बावजूद सरकार इस 'दिमाग चकरा देने वाले अपराध' पर परदा क्यों डालना चाहती है? क्या, विदेशी करार की पुनर्समीक्षा नहीं हो सकती? या करार को महज आड़ की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है? सरकार अगर इन प्रश्नों का देश की जनता को जवाब नहीं देती तो यही माना जाएगा कि सरकार खुद देश को लूटने की जिम्मेदार है।'
        भोपाल से अनिरुद्ध सिंह चौहान ने लिखा- 'विकिलीक्स को स्विस बैंक खातों की जो दो सीडी हाथ लगी हैं, उसमें सैकड़ों गुप्त खातों के ब्योरे हैं। जैसा कि विकिलीक्स ने दावा किया है, वो जल्दी भंडाफोड़ करेगा। तब भारत सरकार क्या करेगी? जिन खातों का पूरा विवरण पूरी दुनिया जान चुकी होगी, क्या हमारी सरकार उन पर परदा डालने की नाकाम कोशिश करेगी? क्या यह बेहतर नहीं होगा कि विकिलीक्स नाम जाहिर करे उससे पहले सरकार खुद ही नाम सार्वजनिक करके ऐतिहासिक पहल करने का श्रेय हासिल करे?'
       प्रिय पाठकगण! विदेशों, खासकर स्विस बैंकों में जमा भारतीयों के काले धन को लेकर बहुत सारे तथ्य उजागर हो चुके हैं। अरबों-खरबों रुपए की यह राशि भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह राशि कैसे वापस भारत में लाई जाए इसे लेकर अनेक पाठकों की तार्किक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई हैं। कई पाठकों की राय में खाताधारकों के नाम नहीं राशि महत्वपूर्ण हैं, तो अनेक पाठकों की राय में नाम सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। अगर काले धन के मालिकों के नाम सामने नहीं आएंगे तो काला धन भी देश को हासिल नहीं होगा, जिसकी असली मालिक भारत की जनता है।
      जयपुर से रमेशचंद्र जैमन ने लिखा- 'केन्द्र सरकार सरासर जनता को यह कहकर भ्रमित कर रही है कि विदेशी सरकारों से समझौते के तहत खाताधारकों के नाम सार्वजनिक नहीं किए जा सकते। जबकि स्विट्जरलैण्ड सरकार ने काफी पहले पेशकश की थी अगर भारत सरकार प्रस्ताव करे तो वह खाताधारियों की सूची सौंप सकती है।'
      बेंगलूरु से के.एम. मैथ्यू ने लिखा- 'भारत सरकार अमरीका की तरह पहल करे तो काला धन वापस लाया जा सकता है। अमरीका ने बाकायदा स्विस बैंकों में खाताधारी भ्रष्ट अमरीकियों की सूची सौंपी और कहा कि इन अमरीकियों ने कर चोरी की तथा विभिन्न कानूनों का उल्लंघन करते हुए अमरीकी धन स्विस बैंकों में स्थानान्तरित किया है। इस पर स्विस सरकार ने अपने बैंकों को धन वापसी के निर्देश दिए थे। मगर भारत ने महज एक खत लिखकर खानापूर्ति की जिसका स्विस बैंक पर कोई असर नहीं हुआ।'
      जोधपुर से दिनेश प्रजापति  के अनुसार- 'भारतीय अमीरों का विदेशी बैंकों में 700 खरब रुपए का काला धन जमा है। यह धनराशि अगर वापस लाई जाए तो देश के हर नागरिक की तकदीर चमक सकती है। इसलिए हमें फिजूल की बहस में पडऩे की जरूरत नहीं है। बहस खाताधारियों के नाम जानने की नहीं होनी चाहिए। बहस इस बात पर होनी चाहिए कि यह सारी धनराशि सरकारी खजाने में कैसे लाई जाए।'
      इंदौर के सत्यप्रकाश ने लिखा- 'चारों तरफ से पड़ रहे दबावों के चलते कई अमीर खाताधारी यह चाहेंगे कि अगर वे बिना किसी झंझट के बरी हो जाएं तो वे अपना काला धन सरकार को समर्पित करने को तैयार हो जाएंगे।'
      अलवर के अरविन्द यादव  ने लिखा- 'ये भ्रष्ट लोग आसानी से नहीं मानेंगे। ये लोग इतने शक्तिशाली हैं कि सरकार की इन पर हाथ डालने की कभी हिम्मत ही नहीं पड़ेगी। पिछले 25 सालों से काले धन की सिर्फ चर्चा ही चल रही है। कभी सरकार ने इन्हें नहीं घेरा? भले ही किसी भी पार्टी का शासन रहा हो।'
      जयपुर से डॉ. रविन्द्र जैन  ने लिखा- 'मनमोहन सिंह के नेतृत्व में चलने वाली यूपीए सरकार विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वालों के खिलाफ आखिर कैसे कार्रवाई कर सकती है, जबकि एस. गुरुमूर्ति           (पत्रिका: 9 जनवरी) के अनुसार यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी का खाता भी स्विस बैंकों में है, और उन्होंने इस सम्बंध में विदेशी और भारतीय मीडिया में प्रकाशित किसी भी रिपोर्ट का आज तक खण्डन नहीं किया है। यूपीए अध्यक्ष पर ही जब अंगुली उठी हुई हो तो यूपीए सरकार से कोई उम्मीद कैसे की जा सकती है।'
      उदयपुर के अजय मेहता ने लिखा- 'ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की भ्रष्ट देशों की सूची में और ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी की काले धन के राष्ट्रों की सूची में भारत का नाम ऊपर से शुरू होता है। यह हम देशवासियों को दुनिया भर में शर्मिन्दा करने के लिए काफी है। भारतीय अमीरों को, जिनका काला धन विदेशों में है, राष्ट्र को सौंपकर मिसाल पेश करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद अब कोई गुंजाइश नहीं बची है। आम जनता भी यही चाहती है।

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      1 comments:

      Unknown said...

      इसमें सिर्फ मै यही कहूँगा कि बड़े लोग कभी अपराधी साबित नहीं होता है. पिसता तो सिर्फ गरीब है. और इसमें भी वह गरीब शामिल है, जिसके पास बीपीएल कार्ड नहीं है