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प्रेस की स्वतंत्रता पर आक्रमण

इंदौर में पत्रिका पर हमले की घटना ने देश भर के पाठकों में मानो उबाल-सा ला दिया। पाठक उद्वेलित हैं और हमलावरों की कड़ी भत्र्सना कर रहे हैं। मुझो रोजाना ढेरों प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। कई आप पढ़ चुके हैं। आगे भी पढ़ेंगे। यहां कुछ चुनिंदा प्रतिक्रियाएं। जो समाज के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करती हैं।

प्रिय पाठकगण! पहले एक जरूरी बात। किसी भी विवाद में दो पक्ष होते हैं। यहां भी हैं। एक हमलावर है तो दूसरा हमले का शिकार है। हमले का शिकार कौन? अखबार का पाठक। यानी आम आदमी। आखिर वितरकों-हॉकरों से अखबार के बंडल छीनकर पाठकों को खबरों से वंचित करना उनके हकों पर हमला ही तो है। पाठक जानना चाहते हैं कि ऐसी कौन-सी खबर थी जिसे वे पाठकों की पहुंच से दूर रखना चाहते थे। और क्यों? जयपुर से डॉ। अरविन्द गुप्ता ने लिखा- 'कांपती मथुरा और इंदौर में प्रेस की आजादी पर आक्रमण (७ मई) पढ़कर मुझो घोर आश्चर्य हुआ।

आश्चर्य इस बात का कि सूचना का अधिकार के युग में ऐसे सिरफिरे भी हैं जिन्होंने एक प्रतिष्ठित अखबार को उसके पाठकों से वंचित करने का विफल कृत्य किया। जी हां, विफल। क्योंकि आज के युग में अखबार को रोकना आसान नहीं। आधुनिक सूचना तकनीक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की संवैधानिक व्यवस्था तो है ही। महत्वपूर्ण बात यह है कि जब भी किसी अखबार की स्वतंत्र और निष्पक्ष आवाज को दबाने की कोशिश की गई, वह अखबार पाठकों का और भी चहेता बन गया। मुझो पूरा यकीन है, इंदौर की घटनाओं ने 'पत्रिका' को पाठकों का सबसे चहेता अखबार बना दिया होगा। इंटरनेट पर भी पत्रिका को पढ़ने वालों की संख्या बढ़ गई होगी।'

इंदौर के सामाजिक कार्यकर्ता श्रीधर बापट के अनुसार- 'पत्रिका का ७ मई का अंक देखकर दंग रह गया। अखबार के सैकड़ों बंडल नाले में पड़े थे जिन्हें गुण्डों ने हॉकरों से छीनकर फेका था। पुलिस संगीनें लिए खड़ी है, लेकिन मूकदर्शक।

एक फोटो में मोटरसाइकिलों पर गुण्डों की फौज सवार है। जमीन पर अखबार की फटी हुई प्रतियां उनकी काली करतूत की दास्ता बयां कर रही थी। सचमुच उस दिन इंदौर में गुण्डाराज था जिसने लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को अपमानित करके मुझा जैसे लाखों इंदौरवासियों को शर्मशार कर दिया।'

इंदौर के ही अनिल नागपाल ने लिखा- 'पत्रिका इंदौर के आम आदमी का प्रिय अखबार है। इसका प्रमाण है, गुण्डों द्वारा छीनकर फेंकी गई अखबार की प्रतियों को लोगों ने ढूंढ़-ढूंढ़ कर पढ़ा।' विकास माथुर ने लिखा, 'आखिर पत्रिका ने क्या गलत लिखा? मंत्री और विधायक के भ्रष्टाचार को उजागर करना अखबार का उत्तरदायित्व है। इस उत्तरदायित्व से इंदौर के अन्य अखबारों ने क्यों मुंह फेरा, यह समझा से परे है।'

इंदौर से विजय वर्मा ने लिखा- 'इंदौर शहर में एक बार फिर गुण्डों ने आतंक मचाया और शिवराज में जंगलराज का एक और नमूना दिखाया। माफ कीजिएगा... ये लोग आज अचानक कहीं से पैदा नहीं हो गए। ये पहले से यहीं मौजूद थे। मगर अफसोस किसी ने आंखें खोलना जरूरी ही नहीं समझा।'

भोपाल से एडवोकेट रमेश शर्मा के अनुसार- 'मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला के भ्रष्ट कारनामों की तथ्यों सहित पोल खोली गई तो वे बौखला गए। मध्य प्रदेश में राजनेताओं और अफसरों का भ्रष्टाचार चरम पर है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भ्रष्टाचार के खात्मे की बात करते हैं। लेकिन हकीकत में भ्रष्ट मंत्रियों पर कार्रवाई नहीं करना चाहते। सुगनीदेवी कॉलेज परिसर का भूमि घोटाला बच्चे-बच्चे की जुबान पर है, परंतु मुख्यमंत्री सहित भाजपा के सभी शीर्ष नेता मौन हैं।'

ग्वालियर से संगीता शर्मा (गृहणी) ने लिखा- 'पत्रिका की पहले दिन से ही पाठक हंू। जैसा सुना था वैसा ही पाया। इसलिए पढ़े बगैर चैन नहीं पड़ता। मध्य प्रदेश सहित पूरे देश में भ्रष्टाचार फैला हुआ है। बड़े-बड़े नेता भ्रष्टाचार मिटाने की बात करते हैं। पत्रिका यही तो कर रहा था।'

कोटा से संगीता सक्सेना (शास्त्रीय गायिका) ने लिखा- 'हम पत्रिका के पीढि़यों से पाठक हैं। रोज सुबह ५ बजे टीवी पर स्वामी रामदेवजी का योग कार्यक्रम तथा सवा पांच बजे राजस्थान पत्रिका से अपने दिन की शुरुआत करते हैं। बेबाक, बेखौफ व बुलंद पत्रिका की आवाज को कोई दबाने की कोशिश करता है तो यह सीधा-सीधा जनमानस पर आघात होगा।'

'भ्रष्टाचार के खिलाफ मीडिया की आवाज को कोई दबा नहीं सकता, बशर्त मीडिया यह कार्य पूर्ण निष्पक्षता से करे।' यह प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अजमेर से पूर्व प्राचार्य डा. पुरुषो?ाम उपाध्याय ने लिखा- 'पत्रिका की छवि एक निर्भय और निष्पक्ष अखबार की रही है।

पत्रिका के संस्थापक स्व. कुलिशजी जुझारू पत्रकार थे। वे कभी झाुके नहीं। इसीलिए पत्रिका को विशाल पाठक समुदाय मिला। इंदौर में पत्रिका पर हमले के बाद विभिन्न वर्गों से समर्थन की जो प्रतिक्रियाएं मिल रही है, वही उसकी वास्तविक शक्ति है। इस शक्ति से बौखलाकर कोई भ्रष्ट राजनेता अखबार की आवाज दबाने की हिमाकत करता है तो उस पर तरस ही आता है।'

अहमदाबाद से हरीश पारीक ने लिखा- 'पत्रिका के समाचारों से अगर मंत्री या विधायक को कोई आपत्ति थी तो वे प्रेस कौंसिल में जा सकते थे। कोर्ट के दरवाजे भी खुले हैं। लेकिन यह क्या! अखबार की प्रतियां लूटना, बंडल छीनना, वितरकों/हॉकरों से मारपीट करना लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह सब नहीं चलता।'

प्रिय पाठकगण! पाठकों के सभी पत्रों में लोकतंत्र के चौथे पाए पर हमले की निन्दा की गई है। और यह सवाल उठाया गया है कि प्रेस की स्वतंत्रता को रोकने का किसी को क्या अधिकार है। स?ााधीश मंत्री और विधायक के भ्रष्टाचार को लेकर तथ्यपरक समाचारों को मध्य प्रदेश सहित सभी जगह के पाठकों ने सराहा। कर्नाटक, तमिलनाडू, पं. बंगाल, गुजरात, राजस्थान आदि प्रदेशों के पाठकों की प्रतिक्रियाएं इसका प्रमाण हैं।

कई प्रतिक्रियाओं का सार है कि मध्य प्रदेश के इस राजनीतिक भ्रष्टाचार की लोकायुक्त जांच चल रही है। लेकिन अखबार में जो तथ्य प्रकाशित हुए हैं, वे इतने पर्याप्त हैं कि आरोपित नेताओं को स्वत: ही नैतिकता के आधार पर पद त्याग देने चाहिए अन्यथा शीर्ष नेतृत्व को उन्हें हटा देना चाहिए। जनभावना का यही तकाजा है।

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1 comments:

बालमुकुन्द अग्रवाल,पेंड्रा said...

इंटरनेट पर विचरण करते हुए आपके ब्लाग पर आगमन हुआ.आपके विचारों से अवगत हुआ.यशस्वी एवं सार्थक ब्लाग जीवन के लिए शुभकामनाएं स्वीकारें